तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने तीसरे मोर्चे के लिए जद्दोजहद शुरू कर दी है। गैर कांग्रेसी और गैर भाजपा दलों को एक साथ जोड़ने के लिए प्रयासरत केसीआर ने तेलंगाना का चुनाव जीतने के बाद ही राष्ट्रीय राजनितिक पटल पर बड़ी भूमिका का ऐलान कर दिया था। तेलंगाना में उनके गठबंधन साथी असदुद्दीन ओवैसी ने तो उन्हें प्रधानमंत्री का दावेदार भी बताया था। पिछले दिनों तेलंगाना में कांग्रेस के चार विधान पार्षद भी केसीआर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति में शामिल हो गये थे जिसके बाद से ही कांग्रेस उन पर हमला करती रही है। विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि टीआरएस कांग्रेस मुक्त तेलंगाना का लक्ष्य ले कर चल रही है। टीआरएस के एक नेता ने तो यहाँ तक दावा किया था कि अगर तेलंगाना में कांग्रेस के 19 में से 8 विधायकों को अपने पाले में करने में कामयाब हो जाती है तो देश की सबसे पुरानी पार्टी से राज्य में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी छिन जायेगा।
ऐसे में केसीआर का तीसरे मोर्चे को लेकर कमर कसना कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बन गया है और कांग्रेस नेता लगातार उन पर हमले कर रहे हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने रविवार की शाम उड़ीसा के अपने समकक्ष नवीन पटनायक से उनके भुवनेश्वर स्थित आवास पर मुलाकात की। नवीन पटनायक उड़ीसा में सत्तारूढ़ पार्टी बीजू जनता दल के अध्यक्ष भी हैं। इस मुलाकात के बाद राव ने बयान देते हुए कहा था;
“हमारा मानना है कि देश में भाजपा व कांग्रेस के खिलाफ एक विकल्प होना चाहिए। ऐसे में देश में क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने की जरूरत है। देश को परिवर्तन की आवश्यकता है, जिसके लिए संवाद शुरू हो गया है। हालांकि अभी तक इस मसले पर कुछ ठोस परिणाम सामने नहीं आए हैं, ऐसे में हमें और अधिक नेताओं के साथ बात करने की जरूरत है। हमने समान विचारधारा वाले दलों के बीच मित्रता सहित कई चीजों पर चर्चा की है।”
उसके बाद केसीआर ने कोलकाता स्थित राज्य सचिवालय में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी मुलाकात की। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद केसीआर ने कहा था;
“दीदी के साथ चर्चा हमेशा होती है। जब दो राजनीतिक नेता मिलते हैं, तो वे निश्चित रूप से आपसी हित और राष्ट्रीय हित के मामलों पर चर्चा करते हैं। हमारी बहुत सुखद चर्चा हुई। हम अपनी चर्चा जारी रखेंगे। एक संवाद है जो मैंने कल शुरू किया था। हमारी बातचीत जारी रहेगी। बहुत जल्द ही हम एक ठोस योजना के साथ आयेंगे।”
बता दें कि केसीआर का उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों अखिलेश यादव और मायावती से मिलने का भी कार्यक्रम तय है। ऐसे में कांग्रेस का भौंहे सिकोड़ना लाजिमी है। खबर ये भी है कि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा में गठबंधन को ले कर चल रही बातचीत में कांग्रेस को दरकिनार कर दिया गया है। ऐसे में कांग्रेस का राजग के खिलाफ देश भर में एक महागठबंधन खड़ा करने के दावों को जोरदार झटका लगा है। तमिलनाडु में द्रमुक सुप्रीमो एमके स्टालिन द्वारा राहुल गाँधी को महागठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किये जाने की अपील को चंद्रबाबू नायुडू सहित कांग्रेस के कई साथियों ने ही तवज्जो नहीं दी है। टीआरएस सुप्रीमो के ताजा मुलाकातों पर तंज कसते हुए कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों से कहा;
“लोकतंत्र में नेताओं के एक दूसरे से मिलने-जुलने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। मगर इसमें कोई संदेह नहीं कि फेडरल फ्रंट स्पष्ट तौर पर केंद्र की सत्तारूढ़ का पर्दे के पीछे का सियासी खेल है और विपक्षी खेमे की कोई भी पार्टी नये विकल्प के झांसे और कपट में नहीं आएगी। केसीआर का प्रयास भाजपा की मदद के लिए हो रहा है।”
सिंघवी ने केसीआर पर हमला बोलते हुए आगे कहा कि अगर आप बहिष्कार की बात करते हैं और कांग्रेस के साथ सहयोगी बनने की इच्छा रखने वाले के सहयोगी नहीं बनना चाहते हैं तो आप ‘अलगाव की राजनीति’ कर रहे है और आप सत्ताधारी पार्टी की मदद करना चाहते है। वहीं कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने एक ट्वीट के माध्यम से राव पर निशाना साधा।
KCR’s move to create a Federal front to effectively divide the combined opposition resolve to remove the BJP government from office is aimed to help BJP, more be design than by default. KCR is actually an agent of Modi-Shah combine to divide democratic and secular forces.
— Anand Sharma (@AnandSharmaINC) December 24, 2018
राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा;
“भाजपा सरकार को पद से हटाने के लिए संयुक्त विपक्ष के प्रस्ताव को प्रभावी ढंग से विभाजित करने के लिए केसीआर का संघीय मोर्चा बनाने के लिए उठाये गए कदम का उद्देश्य भाजपा की मदद करना है। केसीआर असल में मोदी-शाह के एजेंट हैं जिन्हें धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों को को विभाजित करने का काम दिया गया है।”
बताया जा रहा है कि तीसरे मोर्चे के गठन के लिए सक्रिय केसीआर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति ने उनके लिए एक महीने के लिए एक स्पेशल एयरक्रॉफ्ट भी किराए में ले लिया है। इस से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह गैर कांग्रेस-गैर भाजपा गठबंधन के लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं। अगर सीटों के आंकड़ों की बात करें तो अभी नवीन पटनायक की बीजद का उड़ीसा की 21 में से 20 लोकसभा सीटों पर कब्जा है तो ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की झोली में पश्चिम बंगाल की 42 में से 34 सीटें हैं।