सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा 8 मार्च को एक समिति का गठन किया गया है। जिसका कार्य 26 साल पहले ओबीसी ‘क्रीमी लेयर’ के लिए बने नियमों की समीक्षा करना है। समिति को 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है।
1993 में ओबीसी ‘क्रीमी लेयर’ के लिए कुछ नियम तय किए गए थे, जिनकी समीक्षा अब तक नहीं हुई थी। 2019 में 26 साल बाद सरकार ने इन नियमों की समीक्षा के लिए कुछ विशेषज्ञों की समिति का गठन किया है। जिसका नेतृत्व भारत सरकार के पूर्व सचिव बीपी शर्मा द्वारा किया जाएगा।
The Centre has been applying this “exclusion criteria” for wards of persons employed in central and state governments, but in case of PSUs and banks, the Centre has been calculating the “creamy layer” on the basis of salaries of parents https://t.co/MNuIHnlLfH
— EconomicTimes (@EconomicTimes) March 15, 2019
इस समिति का कार्य 1993 में प्रसाद समिति द्वारा तय नियमों की समीक्षा करना है, ताकि क्रीमी लेयर की अवधारणा को फिर से परिभाषित करने, सरल बनाने और सुधार करने के लिए सुझाव दिए जा सकें। यह समिति इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई व्यव्स्थाओं को ध्यान में रखते हुए नियमों की समीक्षा करेगी।
दरअसल, 26 साल बाद इन नियमों में समीक्षा करने की जरूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग पीएसयू में कार्यरत लोगों को ‘क्रीमी लेयर’ वर्ग का तय करने के लिए पारिवारिक आय के अलग-अलग पैमानों को आधार बनाता है। जिसके कारण विवाद पैदा होता है। इस मुसीबत का असली कारण यह है कि पीएसयू में पदों को ग्रुप ए, बी, सी और डी में बाँटा नहीं गया है जबकि सरकारी नौकरियों में अलग-अलग ग्रुपों का प्रावधान है। इससे कारण बहुत कंफ्यूजन होता है।
बता दें कि यहाँ ‘क्रीमी लेयर’ का प्रयोग ओबीसी वर्ग में आर्थिक रूप से संपन्न लोगों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इन लोगों को मंडल आयोग में किए गए आरक्षणों के प्रावधान का पात्र नहीं माना जाता है। इसलिए इन्हें आरक्षण के लाभ से बाहर रखने के लिए प्रसाद कमिटी की रिपोर्ट पर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के 1993 के मेमोरंडम द्वारा नियम तय किए गए थे।
हालाँकि, नियमों पर समीक्षा के लिए समिति के गठन से ‘पिछड़ा वर्ग अधिकार’ के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता नाराज़ हैं और इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा सदस्यों पर आधारित एनसीबीसी (राष्ट्रीय पिछड़ आयोग) के पास ओबीसी से जुड़े प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सुझाव देने की शक्ति है, इसलिए ऐसे में एक अलग समिति की कोई जरूरत नहीं है।