आयुष्मान योजना ने किस कदर लोगों की मदद की है, इसे जानने के लिए गाँवों की तरफ रुख करना होगा। ग्रामीण, गरीब, किसानों से मिलने पर पता चलता है कि किस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘आयुष्मान भारत’ न सिर्फ ज़िंदगियाँ बचा रही बल्कि उन्हें जीने का सम्बल भी दे रही है। लोकसभा चुनाव की रिपोर्टिंग के दौरान जब पत्रकार विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों में कवरेज के लिए गए हैं तो वहाँ किस तरह से विभिन्न सरकारी योजनाओं ने कितना लाभ पहुँचाया, कहाँ-कहाँ अभी भी सुधार की जरुरत है, ये सब बाहर आ रहा है।
दैनिक जागरण ने एक ग्रॉउंड रिपोर्ट पब्लिश की है पलामू का, बताता चलूँ कि पलामू लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र झारखंड के 14 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। दो जिलों के कुछ हिस्सों को मिलाकर इस संसदीय क्षेत्र का गठन किया गया है।
पलामू की ही एक कहानी है विनोद की, कि किस तरह से एक बदहवास-सा मजदूर पिता अपनी सतमासी बेटी को लेकर दौड़ता हुआ अस्पताल पहुँचा। बिटिया के जन्म के साथ ही डॉक्टर ने जवाब दे दिया था। बड़े अस्पताल के लिए रेफर तो कर दिया गया पर पैसा न विनोद के पास और न ही उनके रिक्शा चलाने वाले पिताजी शिवनारायण चौधरी के पास, बेटी के जन्म के समय ही नीजि डॉक्टर के यहाँ नौ हजार रुपए खर्च करने के बाद, जमीन बेचने का मन बना चुके विनोद के अस्पताल पहुँचते ही उनका गोल्डन कार्ड बन गया। पता लगा आयुष्मान योजना के तहत बेटी का इलाज शुरू हो गया। बिना एक पैसा खर्च किए। यह उनके लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था। आज विनोद की बेटी अच्छी है। जमीन बेचने की नौबत नहीं आई। आयुष्मान योजना ने उसकी जमीन बचा दी और बच्ची भी।
जागरण की रिपोर्ट में ही एक और घटना जिक्र है कि पांकी के पगार खुर्द के सलोक का, सलोक एक बीघा जमीन के मालिक हैं, माँ-बेटी की जान बचाने के लिए डॉक्टर ने बड़े अस्पताल के लिए रेफर तो कर दिया। पिताजी छठू साव राँची में रिक्शा चलाते हैं। माली हालत ऐसी नहीं थी कि जमा पैसे से इलाज करा पाते। सलोक ने जमीन बेचकर भी इलाज कराने का फैसला किया और पहुँच गया पलामू। 42 दिनों से एनआइसीयू में भर्ती बेटी का, रोजाना तीन-चार हजार रुपए के हिसाब से कोई डेढ़ लाख रुपए का बिल बन गया लेकिन आयुष्मान भारत योजना से पूरा इलाज हुआ, उसकी भी जमीन बिकने से बच गई।
गाँव में एक कहावत है कि ‘जिसे अस्पताल और अदालत का चक्कर लगा वह बर्बाद हो गया।’ सोचिये फिर उन गरीबों पर क्या बीतती होगी जिन्हें खाने के लाले पड़े हैं या बस किसी तरह से गुज़ारा कर रहे हैं।
आयुष्मान भारत योजना ने किसी तरह मजदूरी का जीवन यापन करने वाले गरीबों के लिए, किसानों के लिए, यह योजना बहुत बड़ा सहारा है। पाँच साल के बीजेपी के शासन काल में जहाँ उनकी बाकी ज़रूरतें उज्ज्वला, अन्त्योदय सहित विभिन्न योजनाओं से पूरी हो रही थी। आयुष्मान योजना ने सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित कर दिया।
जागरण के रिपोर्ट के अनुसार ही बता दें कि पलामू के अस्पतालों में विनोद और सलोक जैसे कोई 6200 मरीज थे जिनका एक साल के भीतर इलाज हुआ। इस मद में करीब साढ़े छह करोड़ रुपए खर्च हुए। अनेक गरीबों की जमीन बिकने से बची तो अनेक सूदखोरों के चंगुल में फँसने से बचे।
रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ पलामू में ही 65 हजार से अधिक लोगों के गोल्डन कार्ड बन चुके हैं। ये सभी सूचीबद्ध 37 सरकारी गैर सरकारी अस्पतालों में इलाज करा सकते हैं। पाँच लाख तक का मुफ्त इलाज सेवा का लाभ लेने वालों के दिल से योजना चलाने वाले के लिए आयुष्मान भव: का आशीर्वाद निकलना अस्वभाविक नहीं है।
ये आँकड़े तो सिर्फ एक लोकसभा क्षेत्र के हैं। आज देश में इस योजना ने गरीबों, वंचितों, किसानों को उस बेबसी और लाचारी से बाहर लाने में बड़ी मददगार सिद्ध हुई है। अब उन्हें पैसों की किल्लत की वजह से अपनों को नहीं खोना पड़ेगा। हालिया संशोधनों के बाद आयुष्मान भारत योजना के तहत देश के सभी बड़े विशेषज्ञ चिकित्सकों को इससे जोड़ा जा रहा है, ताकि देश का कोई भी गरीब, वंचित वर्ग बीमारी की लाचारी में अपने जमीन और जीवन भर की कमाई से वंचित न हो।