Sunday, September 8, 2024
Homeराजनीतिनेहरू के हजारों लाशों वाले कुम्भ से बदली नीयत वाली सरकार के कुम्भ तक:...

नेहरू के हजारों लाशों वाले कुम्भ से बदली नीयत वाली सरकार के कुम्भ तक: बदलाव हर तरफ

पहले कुम्भ मेले में भ्रष्टाचार की बातें सामने आती थीं। इस बार मेला हुआ, शान से माथा ऊँचा हो गया। एक आरोप नहीं लगा। पहले मेला होता था तो यह चोरी हो गया, वो चोरी हो गया, शिकायत आती थीं। इस बार चोरी, मारधाड़ की कोई शिकायत नहीं आई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को उत्तरप्रदेश के कौशाम्बी में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा कि 1954 में कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान जब पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू कुम्भ में आए थे, तब भगदड़ मच गई थी। हजारों लोग मारे गए थे। तब सरकार की लाज बचाने के लिए, पंडित नेहरू पर कोई दाग न लग जाए, इसके लिए खबरें दबा दी गईं। मगर इस बार कुम्भ में करोड़ों लोग आए, लेकिन कोई भगदड़ नहीं हुई, कोई नहीं मरा। व्यवस्थाएँ कैसे बदलती हैं, यह उसका उदाहरण है।

ऑपइंडिया ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट छापी थी जिसमें नेहरू के समय के कुम्भ में क्या हुआ था इसका विस्तृत वर्णन था। उसी रिपोर्ट से:

प्रधानमंत्री नेहरु के संसदीय क्षेत्र प्रयाग में आजादी के बाद आयोजित प्रथम कुम्भ की दर्दनाक भगदड़

जब भी कुम्भ मेले की भगदड़ों का नाम आता है तो वर्ष 1954 के प्रयाग कुम्भ का रक्तरंजित इतिहास आँखों के सामने आ जाता है। ‘द गार्जियन’ के अनुसार 3 फरवरी, 1954 को मौनी अमावस्या के दिन शाही स्नान में 800 से अधिक श्रद्धालुओं की भयानक भगदड़ में मौत हुई। ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के अनुसार यह आँकड़ा हजार मौतों से ज्यादा का है। तत्कालीन प्रधानमंत्री और इलाहबाद से सांसद जवाहरलाल नेहरू उस दिन कुम्भ मेला क्षेत्र में ही उपस्थित थे। सरकार द्वारा केवल कुछ भिखारियों के मरने का दावा किया गया था। लेकिन तत्कालीन नेहरू सरकार का ‘सरकारी झूठ’ तब सामने आया जब एक पत्रकार ने गहनों से लदी महिलाओं की लाशों की तस्वीर अख़बार में छाप दी थी।

प्रयागराज (इलाहबाद) की इस भयावह घटना के गवाह कुछ लोग बताते हैं कि मृतक संख्या कम दिखाने के लिए शासन द्वारा दर्जनों शव पेट्रोल डाल कर जला दिए गए थे। हालाँकि, यह सब आधिकारिक रिकॉर्ड्स में कब दर्ज होता है? लाशों के कई ढेर पुलिस की घेराबंदी करके जलाए गए लेकिन कुछ पत्रकार फिर भी तस्वीरें खींच लाए। हादसे की तस्वीरें खींचने वाले अकेले फोटो पत्रकार एनएन मुखर्जी ने संस्मरण में बताया था कि दुर्घटना के अगले दिन अख़बारों में शवों की तस्वीरें देखकर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंदबल्लभ पंत ने दाँत पीसते हुआ कहा था, “कौन है ये हरामज़ादा फ़ोटोग्राफ़र?”

कुम्भ मेले में भगदड़ से मौतों का सिलसिला यहीं नहीं थमा। ‘द गार्जियन’ के अनुसार, मार्च 1986 के हरिद्वार कुम्भ मेले में हुई 3 भगदड़ों 600 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई। इसी साल 1986 में ही जनवरी में हुए प्रयाग कुम्भ मेले में भगदड़ में 50 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।

सरकार बदली, नियत बदला तो बदलाव दिख रहा है

मोदी ने कहा कि मुझे पिछली बार कुम्भ में अनेक बार आने का मौका मिला। जब सरकार बदलती और नीयत बदलती है तब कैसा परिणाम आता है, यह प्रयागराज ने इस बार दिखा दिया है। पहले कुम्भ होता था तो खबरें आती रहती थीं कि अखाड़ों के बीच जमीन को लेकर विवाद है। किसी को इतनी जमीन दी, किसी को यह किया। पहले कुम्भ मेले में भ्रष्टाचार की बातें सामने आती थीं। इस बार मेला हुआ, शान से माथा ऊँचा हो गया। एक आरोप नहीं लगा। पहले मेला होता था तो यह चोरी हो गया, वो चोरी हो गया, शिकायत आती थीं। इस बार चोरी, मारधाड़ की कोई शिकायत नहीं आई।

मोदी ने बताया कि इस बार कुम्भ का मेला दुनियाभर के अखबारों में छपा है। पहले सिर्फ नागा साधुओं के बारे में छपता था। इस बार कुम्भ में सफाई के बारे में छपा। पहले कहा जाता था उत्तर प्रदेश में व्यवस्था की बातें हो ही नहीं सकतीं। इस बार यूपी ने दिखा दिया कि आप लोग बहादुर हैं और व्यवस्था को मानने वाले हैं।

मोदी ने कहा कि पंडित नेहरू जब प्रधानमंत्री थे, तब वे एक बार कुम्भ के मेले में आए थे। मैं जो बात आज बता रहा हूँ, उसे पाँच-छह दशक में दबा दिया गया, छिपा दिया गया। असंवेदनशीलता की सीमा पार की गई। जब नेहरू जी आए तो मेला इतना बड़ा नहीं होता था। दूसरी पार्टियों का तो निशान भी नहीं था। केंद्र और राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार थी। तब कुम्भ में भगदड़ मच गई थी। हजारों लोग कुचल के मारे गए थे। लेकिन सरकार की लाज बचाने के लिए, पंडित नेहरू पर कोई दाग न लग जाए, इसके लिए खबरें दबा दी गईं। कुछ अखबारों में कोने में खबर छिपा दी गई। इसमें पीड़ितों को भी कुछ नहीं दिया गया। ऐसा पाप देश के पहले प्रधानमंत्री के काल में हुआ। इस बार करोड़ों लोग आए लेकिन कोई भगदड़ नहीं हुई, कोई नहीं मरा।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

ग्रामीण और रिश्तेदार कहते थे – अनाथालय में छोड़ आओ; आज उसी लड़की ने माँ-बाप की बेची हुई जमीन वापस खरीद कर लौटाई, पेरिस...

दीप्ति की प्रतिभा का पता कोच एन. रमेश को तब चला जब वह 15 वर्ष की थीं और उसके बाद से उन्होंने लगातार खुद को बेहतर ही किया है।

शेख हसीना का घर अब बनेगा ‘जुलाई क्रांति’ का स्मारक: उपद्रव के संग्रहण में क्या ब्रा-ब्लाउज लहराने वाली तस्वीरें भी लगेंगी?

यूनुस की अगुवाई में 5 सितंबर 2024 को सलाहकार परिषद की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि इसे "जुलाई क्रांति स्मारक संग्रहालय" के रूप में परिवर्तित किया जाएगा।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -