बीते कुछ सालों में हिंदू धर्म को ‘हिंसात्मक धर्म’ बताने की पुरजोर कोशिशें हुई हैं। एक निश्चित विचारधारा द्वारा इस समाज मे हिंदू धर्म के खिलाफ माहौल बनाने का भरसक प्रयास किया गया। उदाहरण के लिए आप साध्वी प्रज्ञा के पूरे मामले को तह तक पढ़ सकते है, जहाँ बिना आरोपों के सिद्ध हुए, सिर्फ़ भगवा धारण करने के कारण उन्हें ‘हिन्दू आतंकवाद’ का चेहरा करार दे दिया गया। सोशल मीडिया पर तो ये माहौल है कि जो कोई भी सामान्य रहते हुए हिंदू धर्म पर लिखने का प्रयास करता है उसे कट्टरता का चेहरा करार दे दिया जाता है। इसके अनेकों उदाहरण आपको आए दिन देखने को मिल जाएँगे।
Sitaram Yechury, CPI(M): Ramayana & Mahabharata are also filled with instances of violence & battles. Being a pracharak, you narrate the epics but still claim Hindus can’t be violent? What is the logic behind saying there is a religion which engages in violence & we Hindus don’t pic.twitter.com/S3ZpDj102u
— ANI (@ANI) May 3, 2019
खतरनाक बात तो ये हैं कि ऐसे माहौल को बनाने वालों में कोई ‘अनपढ़’ या ‘भटका’ गली का नौजवान ही नहीं बल्कि शिक्षित और राजनैतिक पार्टियों के दिग्गज नेता भी शामिल हैं। जिन्होंने अपनी विचारधारा को परोसने के लिए हिंदुओं को सिर्फ़ इसलिए निशाना बनाया है कि कहीं एक धर्म उनकी विचारधारा या मजहब पर हावी न हो जाए। सीपीआई के नेता सीताराम येचुरी ने सार्वजनिक तौर पर हिंदुओं को हिंसक साबित करने के लिए धर्म ग्रंथों का जिक्र किया। उन्होंने रामायण और महाभारत में हुए युद्धों का वर्णन करते हुए यह बताने का प्रयास किया कि हिंदु धर्म के प्रचारक इन दोनों महाकाव्यों का वर्णन करते हैं और फिर भी दावा करते हैं कि वो हिंसक नहीं हो सकते? ये कैसा तर्क है कि जब हिंदुओं का धर्म हिंसा से घिरा हुआ है तो हिंदू हिंसक कैसे नहीं हो सकते?
सीताराम येचुरी के इस बयान में केवल एक बात की संतुष्टि है कि कल तक इन महाकाव्यों के औचित्य पर सवाल उठाने वाले लोग अब ये मानते हैं कि वो हिंदुओं का धर्म ग्रंथ है। वरना सीताराम येचुरी के सवाल किसी भटके नौजवान के प्रश्नों से अधिक कुछ भी नहीं हैं। सोचिए रामायण और महाभारत में हुए युद्धों को आज के समय के साथ प्रासंगिक बनाकर पेश करना किस प्रकार से उचित हो सकता है। वो युद्ध थे, जिनमें भगवान ने असुरों का संहार करने के लिए धरती पर रूप लिया था। वो युद्ध थे जब स्वाभिमान की परिभाषाएँ तय हुई। समाज को बचाने के लिए धर्म की नीतियाँ निर्धारित हुई, उनका संदर्भ कलयुग में इस्तेमाल करना मानसिक रूप से बीमार होने से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं।
धर्मनिरपेक्षता की आड़ में देश के बहुसंख्यकों पर हमला करना कौन से मानवाधिकारों के तहत आता है, ये बात मेरी समझ से बाहर हैं। मुझे हैरानी है कि एक ओर आप उस धर्म की आलोचना करते नहीं थक रहे हैं जिसने आपके नाम (सीताराम) तक को सांस्कृतिक रूप से परिभाषित किया है और दूसरी ओर उन मजहबों का कोई जिक्र भी नहीं है कि जिनके अस्तित्व की धरातल ही ‘व्यवहारिक’ हिंसा से पनपी। येचुरी जी, बतौर देश का नागरिक मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं कि आप कौन-सी विचारधारा को प्रमोट करते हैं, लेकिन मुझे इस बात से दिक्कत है कि आप अपनी राजनीति खेलने के लिए, अपने वोटर्स बनाने के लिए हिंदू धर्म और हिंदू ग्रंथों का गलत प्रतिबिंब तैयार करें।
कम्युनिस्टों के नाम पर चीनी विचारधारा को संजोने वाले जब धर्म और ग्रंथों पर बात करते हैं तो जाहिर हैं उससे ज्यादा हास्यास्पद कुछ नहीं होता। चूँकि देश में विभिन्नताएँ धर्म के आधार पर भी देखने को मिलती हैं, ऐसे में सीताराम येचुरी इतना तो कर ही सकते हैं कि यदि वे किसी भी ग्रंथ के किसी हिस्से का संदर्भ दे रहें हैं तो वह पहले उसकी पृष्ठभूमि पर बात करें और उसका दूसरे मजहबों के साथ तुलनात्मक अध्य्यन करें।
याद करिए हिंदुओं में राजवंशी परंपरा के कारण कितनी लड़ाइयाँ आम मानस ने लड़ी है? आपने कभी सुना है क्या किसी हिंदू ने धर्म प्रचार-प्रसार के लिए किसी पर आक्रमण किया हो, हमने कभी अगर किसी पर आक्रमण भी किया है तो सिर्फ़ खुद को और अपने धर्म को सुरक्षित रखने के लिए किया है। हमारा इतिहास भले ही राजाओं की परंपरा के अधीन हो, लेकिन बेवजह आक्रमक होना हमारी पहचान नहीं हैं। आज जब अनेकों अपराधों को आए दिन हिंदुओं के चेहरे के साथ बाँधने का प्रयास किया जाता है तब मालूम चलता है कि देश में तथाकथित सेक्युलरों का गिनती कितनी अधिक बढ़ गई हैं।
मुझे लगता है येचुरी अपनी विचारधारा से प्रताड़ित हो चुके इंसान हैं, जो हिंदुओं को हिंसा का प्रतीक बना रहे हैं और अल्पसंख्कों के तमगा देकर उस मजहब को प्रोटेक्ट कर रहे हैं जिसके चलते आए दिन हिंदू और अन्य किसी भी धर्म के लोग काफ़िर करार दिए जाते हैं। जिसका इतिहास ही मजहब को पूरी दुनिया में फैलाने की धरातल पर है, उस पर येचुरी चाह कर भी कोई बात नहीं कर सकते हैं क्योंकि यहीं से तो उनकी पार्टी को गिनी चुनी साँसे मिल रहीं हैं। सोचिए यदि कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा समाज के लिए इतनी ही लाभप्रद होती तो क्या 1960 में समाज पर पकड़ बनाने वाली वामपंथी आज आईसीयू में वेंटीलेटर पर होती?
रामायण में राम के चरित्र का वर्णन हर जगह मर्यादापुरुषोत्तम के रूप में हुआ है। तब भी जब उन्होंने रावण के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ा। इसी तरह पांडवों का जिक्र भी महाभारत में अधिकार के लिए युद्ध लड़ने वालों में आता है। जिन्होंने न्याय के नाम पर केवल 5 ग्राम की माँग की थी, लेकिन फिर भी उन्हें उनके अधिकार से वंचित किया गया, जिसके कारण खुद कृष्ण भगवान ने धर्म की लड़ाई में पांडवों का साथ दिया क्योंकि धर्म अपने अधिकारों के लिए लड़ने की सीख देता है, न कि किसी के अधिकारों को छीनने की। जहाँ येचुरी को जिहाद के बारे में बात करनी चाहिए थी वे वहाँ हिंदुओं को ले आए। उनके बयान को देखकर-पढ़कर लगता है कि यदि वे वाकई हिंदू विरोधी है और इसे साबित करने के लिए उन्हें ग्रंथों का उदाहरण देना है तो कम से कम पहले उन्हें उसके बारे में अच्छे से पढ़ लेना चाहिए ताकि वे अर्थों का अनर्थ न करें और समाज में घृणा नफरत का प्रचार प्रसार न करें। जिसका दोष मजबूरन हमें उनकी विचारधारा को ही देना पड़ता है।