द पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) पिछले कई दिनों से भारतीय डेयरी कंपनी अमूल को निशाना बना रहा है। दरअसल, अमेरिकन एनिमल राइट्स ऑर्गनाइजेशन पेटा ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में हो रहे बदलावों को लेकर अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर आरएस सोढ़ी को एक पत्र लिखकर डेयरी दूध के बजाए शाकाहारी दूध का प्रोडक्शन करने का आग्रह किया, जिसके बाद ट्विटर पर इसे लेकर बहस छिड़ गई है।
आरएस सोढ़ी ने इसको लेकर पेटा के सुझाव पर करारा जवाब दिया है। मैनेजिंग डायरेक्टर ने ट्विटर पर PETA से पूछा कि क्या शाकाहारी दूध पर स्विच करने से 100 मिलियन (10 करोड़) डेयरी किसान, जिनमें से 70 फीसदी भूमिहीन हैं, उनकी आजीविका चल जाएगी? क्या वो अपने बच्चों की स्कूल फीस भर सकेंगे और भारत में कितने लोग वास्तव में लैब में बना दूध खरीद सकते हैं?
सोढ़ी ने स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-समन्वयक अश्विनी महाजन के एक ट्वीट को रीट्वीट किया है। इस ट्वीट में लिखा है, ”क्या आप नहीं जानते कि ज्यादातर डेयरी किसान भूमिहीन हैं। इस विचार को लागू करने से कई लोगों की आजीविका का स्रोत खत्म हो जाएगा। ध्यान रहे दूध हमारे विश्वास में है, हमारी परंपराओं में, हमारे स्वाद में, हमारे खाने की आदतों में पोषण का एक आसान और हमेशा उपलब्ध स्रोत है।” मालूम हो कि अमूल भारतीय डेयरी सहकारी सोसाइटी है जिसका प्रबंधन गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन करता है।
Some organisations, including those foreign funded, including @PETA are trying to malign dairy, which provides employment to 10 crore families, on the pretext of cruelty to animals. “ASCI observed that plant-based milk is not covered under the .. https://t.co/YsDn8bCPlk” pic.twitter.com/fcsknrpnvh
— ASHWANI MAHAJAN (@ashwani_mahajan) May 26, 2021
उन्होंने कहा कि पेटा चाहती है कि अमूल 100 मिलियन (10 करोड़) गरीब किसानों की आजीविका छीन ले और 75 वर्षों में किसानों के पैसे से बनाए गए अपने सभी संसाधनों को ज्यादा कीमतों पर समृद्ध बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNC) को सौंप दे, जिसे औसत निम्न मध्यम वर्ग वहन ही नहीं कर सकता। सोढ़ी ने कहा कि शाकाहारी दूध पर स्विच करने से मध्यम वर्ग को जो चीज आसानी से मिल पा रही है, वो मिलना मुश्किल हो जाएगी, क्योंकि कई लोग शाकाहारी दूध का खर्च नहीं उठा पाएँगे।
Will they give livelihood to 100 million dairy farmers (70% landless) , who will pay for children school fee .. how many can afford expensive lab manufactured factory food made out of chemicals … And synthetic vitamins .. https://t.co/FaJmnCAxdO
— R S Sodhi (@Rssamul) May 28, 2021
बता दें कि पेटा ने अपने पत्र में वैश्विक खाद्य निगम कारगिल की 2018 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया है कि दुनिया भर में डेयरी उत्पादों की माँग घट रही है, क्योंकि डेयरी को अब आहार का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं माना जाता है। उसने कहा कि नेस्ले और डैनोन जैसी वैश्विक डेयरी कंपनियाँ बाजार में बदलाव के हिसाब से काम कर रही हैं और अमूल को भी ऐसा ही करना चाहिए। हम अमूल को फलते-फूलते शाकाहारी भोजन और दूध के बाजार से लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहेंगे।
पेटा ने सुझाव दिया था कि अमूल को देश में उपलब्ध 45,000 विविध पौधों का उपयोग करना चाहिए और शाकाहारी वस्तुओं के लिए उभरते बाजार का लाभ उठाना चाहिए। हालाँकि, ट्विटर पर नेटिजन्स के निशाने पर आने के बाद पेटा ने अपने बयान में बदलाव करते हुए कहा कि सिर्फ अमूल को शाकाहारी खपत के मौजूदा रुझानों के बारे में सूचित कर रहा था और सहकारी को मौजूदा रुझानों के जवाब में स्मार्ट व्यवसाय विकल्प बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था।