चुनावी रुझान जैसे-जैसे सामने आ रहे हैं देश के कुछ घरों और कार्यालयों में ‘पाकिस्तान’ जैसा माहौल होता जा रहा है। अभी तक जनता के बीच ‘हेट पॉलिटिक्स’ का बाजा बजाकर भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने की गुहार लगाने वाले अब अपने घर के केबल, डीटीएच की तारों को बेदर्दी से उखाड़ रहे हैं। उन्हें यकीन नहीं हो पा रहा है कि ‘सेकुलर’ नागरिक के घर में लगी एलईडी इतने कट्टर रुझान कैसे दिखा सकती है।
एनडीटीवी जैसे न्यूज चैनल्स के लिए अपने विशेष दर्शकों को समझा पाना बहुत मुश्किल हो रहा है कि अभी तक परिणाम नहीं आए हैं, इसलिए वो आखिरी समय तक उम्मीद न खोएँ और प्रियंका गाँधी की बात मानकर मतगणना केंद्र के बाहर शाम तक अड़े रहें। माहौल किसी भी हालात में शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा है। स्थितियाँ बिगड़ती जा रही है, इसे कुछ लोग ‘तथाकथित सेकुलरों’ पर खतरे की तरह देख रहे हैं।
हालाँकि, देश में ऐसी गंभीर स्थिति 2014 में भी आई थी, उस समय उदार होकर लोगों ने अपनी विचारधारा की गाइडलाइन अनुरूप संयम बरत लिया था और 2019 में जनता खुलकर लोगों को बरगलाने की जमीनी कोशिशों में जुट गए थे। लेकिन, अब अपने इरादों में खुद को ‘नाकाम’ होता देख, ये लोग अपना आपा खो चुके हैं और पाकिस्तान से प्रेम-भाव की बात करते-करते उन्हीं के दिखाए ‘हिंसक’ मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं।
गुप्त सूत्रों के मुताबिक जिन लोगों को पहले अंदाजा था कि उनका कोई भी ‘न्याय’ ‘पूर्ण राज्यों’ को भाजपा की ‘कट्टरता’ से मुक्त नहीं करवा सकता है। उन्होंने पहले ही अपने घरों में स्पेशली ‘अमेजन’ से हथौड़े और खुरपे मँगवा लिए थे, ताकि परिणाम वाले दिन टीवी से लेकर उस हर उपकरण को तोड़ सकें जिसमें देश भगवा होता दिखेगा, लेकिन प्रियंका के ऑडियो जारी होने के बाद उस पैकेट को खोला नहीं गया था। ऐसे में अब जब स्थिति हाथ से बाहर होती जा रही है, महागठबंधन की गाँठ केवल ‘बुआ-बबुआ’ तक सीमित नजर आ रही है, तो ’10 डे रिप्लेसमेंट गारंटी’ जैसा कोई विकल्प नहीं शेष है। अमेजन के पैकेट फट चुके हैं, गोरिल्ला ग्लास वाली एलईडी टीवी और मोबाइल पर लोग मिलकर हथौड़े चला रहे हैं।
प्रतीकात्मक तस्वीर की तरह हमारे देश में भी कुछ लोग अपनी टीवी लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। पुरानी एलईडी का कचूमर उनके गुस्से को शाँत नहीं कर रहा है और वो शोरूम से नई एलईडी खरीद-खरीद कर उस पर ताबड़तोड़ बेरहमों की तरह वार कर रहे हैं। ईवीएम से पूरी तरह ये लोग विश्वास खो चुके है और दोबारा नेहरू-इंदिरा युग में जाने की बातें अपनी चरम पर है।
हमेशा से शांति अमन चाहने वाले विशेष गिरोह के लोगों द्वारा देश में टेलीविजनों पर इतने ‘निर्मम’ वार होंगे, ऐसा कभी किसी ने सोचा भी नहीं था। लेकिन भाजपा के कारण ऐसा हो रहा है। परिणाम आने से पहले ही देश में हिंसा का माहौल देखने को मिल रहा है। इसलिए ये बेहद गंभीर मामला है इसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। मुमकिन है अपने दर्शकों और पाठकों को ‘न्याय’ देने के लिए लिबरल गिरोह इसपर प्राइम टाइम और स्पेशल रिपोर्ट करें। और पूरी संभावना है कि इन हिंसक घटनाओं को भावी विपक्ष भी अपना अगला मुद्दा बनाए। बता दें जगह-जगह से टूटी-फूटी टेलीवीजनों का डाटा कलेक्ट होना शुरू हो चुका है।