Saturday, November 23, 2024
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पहले कहते थे मंडियाँ खत्म हो जाएँगी, अब उसी में किसान जला रहे 100 किलो लहसुन: कृषि कानून होते तो नहीं आती ये नौबत, जानिए कैसे

अगर कृषि कानून होते तो उक्त किसान को लहसुन की फसल करने के लिए मध्य प्रदेश के बाहर की किसी कंपनी का अनुबंध भी मिल सकता था, जो उसे फसल उपजाने के लिए धन और उपकरण भी देती।

मध्य प्रदेश के मंदसौर में एक किसान ने अपनी 1 क्विंटल (100 किलो) लहसुन की फसल को आग के हवाले कर दिया। दावा है कि उसे उसकी मेहनत का उचित दाम नहीं मिल रहा था। मंदसौर कृषि उपज मंदिर में उसने इस घटना को अंजाम दिया। किसान ने बताया कि लहसुन की फसल करने में उसे ढाई लाख रुपए का खर्च आया था, लेकिन उसके बदले सिर्फ एक लाख ही मिल रहे थे। किसान ने कहा कि उसे सरकार से कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ अपनी फसल का उचित दाम चाहिए।

यशोधर्मन पुलिस स्टेशन ने इस घटना की पुष्टि की है। पुलिस ने बताया कि फसल का उचित दाम न मिलने के कारण किसान नाराज़ था और उसने 1 क्विंटल लहसुन की फसल को आग के हवाले कर दिया। शुरुआती जाँच में पता चला है कि आसपास किसी को कुछ नुकसान नहीं पहुँचा है। क्या राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, गुरनाम सिंह चढ़ूनी, हन्नान मोल्लाह और दर्शन पाल जैसे किसान नेता बता सकते हैं कि मंडियों के होने के बावजूद उसी मंडी में फसल जलाने की नौबत क्यों आन पड़ी?

अगर कृषि कानून होते तो उक्त किसान को लहसुन की फसल करने के लिए मध्य प्रदेश के बाहर की किसी कंपनी का अनुबंध भी मिल सकता था, जो उसे फसल उपजाने के लिए धन और उपकरण भी देती। बाद में उसकी फसल को उचित दाम पर खरीद भी लेती। लेकिन, अफवाह फैलाई गई थी कि तीनों कृषि कानूनों से मंडियाँ ख़त्म हो जाएँगी, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। अब उसी मंडी में फसल जलाए जा रहे। लेकिन, 1 साल तक दिल्ली और आसपास के इलाकों को बंधक बना कर रखा गया।

केंद्र सरकार पर दबाव बना कर कृषि कानूनों को वापस कराने से किसानों को घाटा हुआ है। इसमें बदलाव के लिए सरकारी तैयार थी और कई दौर की बैठकें भी हुईं, लेकिन किसानों से बात नहीं बनी। असल में समस्या ये है कि किसानों की पहुँच बाजार तक नहीं है, खासकर बड़े बाजार तक। न ही उन्हें नए-नए फसलों की खेती के तौर-तरीकों के लिए उचित प्रशिक्षण और उपकरण उपलब्ध हैं। कृषि कानून होते तो अनुबंध करने वाली कंपनियाँ ही उन्हें सब कुछ उपलब्ध करा देती।

कृषि कानूनों से उपज के साथ-साथ उत्पाद भी बढ़ता। अब कृषि कानूनों के वापस लिए जाने के बावजूद आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है और ‘किसान नेता’ राकेश टिकैत नए-नए मुद्दे लेकर आ रहे हैं। लेकिन, कोई भी पार्टी अपने वोट नहीं गँवा देगी। किसानों की पहुँच तकनीक और बाजार तक नहीं होगी तो फसल का उचित दाम कैसे मिलेगा? सरकार आगे कोई भी कदम उठाने से पहले सौ बार सोचेगी कि कहीं फिर हालत न बिगड़ जाएँ। फसल बेचने के लिए और विकल्प मिले तो फायदा ही है न? न मिलें तो उसका परिणाम हम देख ही रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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