राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने अपने भाषण के दौरान हिन्दुओं व दलितों को अलग-अलग दिखाने की कोशिश की। आज़ाद बार-बार ‘हिन्दू और दलित’ बोलते रहे, ताकि ऐसा प्रतीत हो कि हिन्दू और दलित अलग-अलग हैं। गुलाम नबी आज़ाद ने अपने भाषण के दौरान कहा, “मुस्लिम और दलित के पाँव में काँटा चुभता था तो चुभन हिन्दू भाई के दिल में लगती थी, और अगर हिन्दू भाई की आँख में घास का छिलका (तिनका) जाता था तो आँसू मुस्लिम और दलित भाई की आँखों से निकलता था।” नीचे संलग्न किए गए वीडियो में आप आज़ाद के भाषण के उस अंश को देख सकते हैं।
रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गया। काँग्रेस आज लगभग खाक में मिल गई है, लेकिन धर्म और जाति के नाम पर देश को बाँटने का एजेंडा यथावत है।
— Vikash Preetam Sinha (@VikashPreetam) June 24, 2019
वरना दलितों को हिंदुओं से अलग बताने का क्या औचित्य है ?
अगर काँग्रेस को लगता है कि वह इस एजेंडे से वापसी कर लेगी तो उसे भूल जाना चाहिए pic.twitter.com/VsdTMPd53W
यह पहली बार नहीं है जब कॉन्ग्रेस ने हिन्दू धर्म के अंतर्गत आने वाले समुदायों को अलग-अलग दिखाने या अलग करने की चेष्टा की हो। इससे पहले कर्नाटक में कॉन्ग्रेस ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देकर उनका वोट लेने की कोशिश की थी लेकिन लिंगायत समुदाय के ही कई नेताओं व धर्मगुरुओं ने इसका विरोध किया था। हालाँकि, कॉन्ग्रेस पार्टी की यह चाल कामयाब नहीं हो पाई थी।
कई लोगों ने गुलाम नबी को ही क़ानून की याद दिलाई। लोगों ने कहा कि संविधान के अनुसार भी जाति और जनजाति हों या फिर सामान्य वर्ग के लोग, ये सभी हिन्दू धर्म के अंतर्गत ही आते हैं। सोशल मीडिया पर लोगों ने यह भी पूछा कि क्या आज़ाद हिन्दू-मुस्लिम करने से पहले भारत के संविधान से चीजें भूल गए हैं?