Friday, November 22, 2024
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यूपी में 37 साल बाद सत्ता में दोबारा वापसी कर CM योगी ने रचा इतिहास: ‘जो नोएडा आया, उसने सत्ता गँवाया’ मिथक को भी तोड़ा, भाजपा की जीत के 5 बड़े कारण 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के प्रदर्शन से साफ है कि किसान आंदोलन से बहुत बड़ा नुकसान नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी की जीत ने उत्तर प्रदेश में इतिहास रच दिया है। 

कुछ ही देर में यूपी चुनाव के फाइनल नतीजों के औपचारिक ऐलान हो जाएगा लेकिन रुझानों से साफ है कि बीजेपी एक बार फिर स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाती नजर आ रही है। चुनावी रुझानों को गौर से देखें तो दलबदलुओं और बाहुबलियों को यूपी की जनता ने करारा जवाब दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के प्रदर्शन से साफ है कि किसान आंदोलन से बहुत बड़ा नुकसान नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी की जीत ने उत्तर प्रदेश में इतिहास रच दिया है। 

उत्तर प्रदेश में करीब 37 साल बाद योगी आदित्‍यनाथ मुख्‍यमंत्री के रूप में वापसी करते दिख रहे हैं। यूपी में 37 साल में कोई सीएम दोबारा नहीं बना। ‘नोएडा आने वाला सीएम दोबारा नहीं बनता’, इस अंधविश्वास को भी योगी आदित्यनाथ ने ध्वस्त किया। साल 2017 में उत्तर प्रदेश की कमान सँभालने वाले आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद से दर्जनों बार नोएडा का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने नोएडा में मेट्रो के उद्घाटन के अलावा कई अन्य परियोजनाओं की शुरुआत की। जनवरी में उन्होंने गौतमबुद्ध नगर पहुँचकर कोविड-19 की स्थिति की समीक्षा की थी। 1985 में कॉन्ग्रेस पार्टी के मुख्‍यमंत्री जीबी पंत की मुख्‍यमंत्री के रूप में वापसी के करीब 37 साल बाद योगी आदित्‍यनाथ सत्ता में वापसी करने जा रहे हैं। 

अगर जीत के कारणों की बात करें तो इस विधानसभा चुनाव में कानून व्यवस्था, बुल्डोजर, विकास और मुफ्त राशन की डबल डोज भाजपा की जीत के बड़े कारण बने हैं। आइए उन वजहों के बारे में बात करते हैं, जो भाजपा की जीत में सारथी बने है।

कानून व्यवस्था 

उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत का एक बड़ा कारण योगी सरकार की कानून व्यवस्था रही फिर चाहे महिला सुरक्षा हो या गुंडागर्दी खत्म करने की बात। कानून व्यवस्था के मसले पर जनता ने भाजपा को वोट किया। भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति और अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई ने उनको एक बड़े वर्ग के बीच लोकप्रिय बना दिया। अवैध कब्जों पर बुल्डोजर चलाने से लेकर उत्तर प्रदेश को दंगा मुक्त और माफियाओं के दबदबे को कम करने के लिए दिखाई गई सख्ती हो, योगी सरकार ने इस मोर्चे पर खूब काम किया। इस कारण से लोग सुरक्षित महसूस करते हैं और इसका नतीजा जनता के वोटों से मिला है।

सरकार की लाभार्थी योजना

सरकार की लाभार्थी योजनाओं का लाभ भी भाजपा को मिला। फिर चाहे मुफ्त राशन की बात हो या फिर उज्जवला योजना या प्रधानमंत्री आवास योजना। आयुष्मान भारत, फ्री राशन, किसान सम्मान निधि योजना, शौचालय, आवास, उज्ज्वला जैसी योजनाओं का बड़ा फायदा महिलाओं को हुआ, जो इस चुनाव में वोट में तब्दील होता नजर आया। 

फ्री राशन और फ्री कोरोना वैक्सीनेशन

पूरे देश में कोरोना काल के दौरान केंद्र सरकार ने गरीब लोगों को फ्री में राशन दिया। उत्तर प्रदेश में कोरोना के दौरान केंद्र सरकार की इस योजना से 15 करोड़ लोगों को लाभ मिला। इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने भी 5 महीने का राशन फ्री में दिया। कोरोना काल में पूरे प्रदेश में कोई व्यक्ति भूखा नहीं सोया। इतना ही नहीं, कोरोना के दौरान प्रदेश सरकार ने मनरेगा के अंतर्गत अपना काम छोड़कर गाँव लौटने वाले मजदूरों को काम दिया था। इसके अलावा लोगों को कोरोना से बचाने के लिए योगी सरकार ने घर-घर सर्वे किया और लोगों को वैक्सीनेशन करवाने का प्रबंध किया। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अस्पतालों के प्रबंधन के मामले में भी योगी सरकार की तारीफ हुई थी। जिसका फायदा योगी सरकार को विधानसभा चुनाव में मिला है।

हिंदुत्व और मंदिर के मुद्दे पर मिले वोट 

यूपी की जनता ने तमाम पार्टियों के आरोपों को नकारते भाजपा को भारी संख्या में वोट दिया और पार्टी को दोबारा सत्ता में ला दिया। यूपी चुनाव में एक बार फिर से हिन्दुत्व का मुद्दा भारी रहा। भाजपा ने अपना पूरा चुनाव प्रचार हिंदुत्व के आसपास रखा। हिंदुत्व का यह कार्ड वोटरों का ध्रुवीकरण करने में सफल रहा और भाजपा ने आसानी से सत्ता में वापसी कर ली। विपक्ष की तमाम घेरेबंदी के बावजूद जनता ने एकजुटता दिखाते हुए बीजेपी को मंदिर निर्माण के आधार पर एक सिरे से पसंद किया।

कमजोर विपक्ष

इस चुनाव में असली जमीनी लड़ाई समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच देखने को मिली। प्रियंका गाँधी ने कॉन्ग्रेस संगठन में जान फूँकने की कोशिश जरूर की लेकिन वह वोटों में तब्दील नहीं हो पाई। ‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ’ का नारा भी कॉन्ग्रेस पार्टी के काम नहीं आया। वहीं बसपा जमीनी स्तर पर नजर नहीं आई। मायावती 2022 के चुनाव में बहुत कम एक्टिव रहीं, जिसका फायदा इस चुनाव में बीजेपी को कम लेकिन सपा को ज़्यादा मिला।

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