रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध लगातार जारी है। अमेरिका समेत दुनियाभर के कई देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे हैं। बावजूद इसके जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन समेत कई देश अभी भी रूस के पेट्रोलियम औऱ गैस पर निर्भर हैं। इसे देखते हुए रूस ने ये ऐलान कर दिया कि दुनिया के जिस किसी भी देश को उसके साथ व्यापार करना है तो उसे रूबल में ही करना होगा।
इस ऐलान के बाद से पश्चिमी देशों में खलबली सी मच गई है। दुनियाभर के कई देश रूस के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं, तो कुछ अब रूस के इस फैसले के सामने झुकते भी नजर आ रहे हैं। पिछले गुरुवार (31 मार्च, 2022) को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक आदेश जारी किया, जिसके मुताबिक, रूसी गैस लेने वाले यूरोपीय देशों को रूसी बैंकों में खाते खोलने होंगे। साथ ही ये भी कहा गया कि अगर रूबल में भुगतान नहीं किया जाता तो वो उसे डिफॉल्ट मानेंगे। पुतिन के नए आदेश का अर्थ यह हुआ कि अब पश्चिमी देशों की कंपनियों को अपनी करेंसी रूसी बैंक में ट्रांसफर करनी पड़ेगी। रूस का यह आदेश 1 अप्रैल, 2022 से प्रभावी हो चुका है।
इस बीच अब स्लोवाकिया ने ऐलान कर दिया है कि वो रूस की माँग के मुताबिक, उसे रूबल में ही पेमेंट करेगा। स्लोवाकिया के आर्थिक मंत्री रिचर्ड सुलिक ने कहा कि उनका देश 85 फीसदी तक रूसी रूबल पर निर्भर है। वो इसके लिए मना भी नहीं कर सकते।
क्यों रूबल में व्यापार के लिए कह रहे पुतिन
जब से पुतिन ने केवल रूबल में व्यापार करने की बात कही है तभी से रूबल की कीमत बढ़ गई है। इससे पहले 24 फरवरी को जब युद्ध शुरू हुआ था तो रूसी रूबल की कीमतें काफी गिर गई थीं। पुतिन के रूबल में लेनदेन करने के ऐलान के बाद डॉलर के मुकाबले इसकी कीमतों में तेजी दर्ज की गई। यह डॉलर के मुकाबले 85 पर पहुँच गया है, जो कि 145 के निचले अंक से तो काफी बेहतर है।
दरअसल, अभी तक दुनियाभर का अधिकतर व्यापार अमेरिकन डॉलर में होता रहा है। लेकिन जब अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध का ऐलान किया तो उसे काउंटर करने के लिए पुतिन ने अपनी मुद्रा में ही व्यापार करने का फैसला किया। इसका फायदा यह होगा कि इससे रूस की मुद्रा मजबूत होगी और रूस को अधिक कैश मिलेगा।
ऐसे में अगर प्रतिबंधों को और अधिक कड़ा किया गया तो इससे डॉलर और यूरो को ही नुकसान होगा। इसका एक असर यह भी होगा कि डॉलर का अंतरराष्ट्रीय एकाधिकार भी खत्म होगा। उल्लेखनीय है कि यूरोप का एक तिहाई तेल और गैस रूस से आयात किया जाता है। अगर यूरोपीय देश रूबल में पेमेंट करने के लिए मान जाते हैं तो रूबल की वैश्विक डिमांड बढ़ जाएगी। इससे रूस औऱ मजबूत होगा। रूस ने तो बैंक विदेशियों के साथ लेनदेन के लिए गजप्रॉम बैंक का सेलेक्शन भी कर लिया है।
रूस का स्पष्ट रूप से कहना है कि न तो कोई हमें कुछ भी फ्री में देता है और न ही हम कोई चैरिटी चलाते हैं। खास बात ये है कि पुतिन की इस चाल में पश्चिमी देश फँस गए हैं। अभी हाल ही में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत का दौरा किया था। उन्होंने कहा था कि वो चाहते हैं कि लेनदेन रुपए और रूबल में हो। मार्च में जिस करेंसी ने सबसे ज्यादा तेज़ी दिखाई और सबसे बेहतर प्रदर्शन किया, वो रूबल ही है।