नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास मुद्दों का इतना अभाव है कि उन्हें ऐसे-ऐसे आलतू-फ़ालतू मुद्दे ख़ोज कर लाने पड़ते हैं, जिनकी न कोई प्रासंगिकता होती है और न प्रमाणिकता। विपक्षी नेता कभी ये बताते नहीं पाए जाते कि सरकार की किस योजना में क्या कमी है और कहाँ पेंच है। उल्टा उनके पास बस एक ही किस्म का रटा-रटाया बयान होता है, “मोदी ने मध्यम वर्ग के लिए कुछ नहीं किया” या “भाजपा ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया” या “राफ़ेल में घोटाला हुआ है” या “EVM हैक कर लिया गया”… और न जाने क्या-क्या!
यहाँ हम किसानों की बात करेंगे। कृषि की बात करेंगे और इस क्षेत्र में मोदी सरकार द्वारा किए गए कार्यों का ज़िक्र करेंगे, ताकि बिना फैक्ट और आँकड़ों के सरकार को घेरने वाले हवा-हवाई नेताओं और पत्रकारों को समझा सकें कि आँकड़ें उनकी और उनके दावों की पोल खोल देते हैं। कृषि क्षेत्र में सरकार ने कई नई योजनाएँ शुरू की हैं। कई पुरानी योजनाएँ, जो कछुआ चाल से चल रही थी- उनका जीर्णोद्धार किया है।
कृषि एक ऐसा क्षेत्र रहा है, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था में हमेशा से दबदबा रहा है। आज़ादी के बाद से ही इस बात को लेकर चिंता जताई जाती रही है कि किसानों को उनके फ़सल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता, खेती के आधुनिक तौर-तरीके सिखाने के लिए उन्हें नई तकनीक उपलब्ध नहीं कराई जाती, और अगर फ़सल ज्यादा हो गई तो उसके रख-रखाव की भी उचित व्यवस्था नहीं की जाती। किसानों के बारे में आम धारणा रही है कि फ़सल ज्यादा होने पर रख-रखाव की व्यवस्था न होने के कारण खराब हो जाती है और फ़सल कम होने पर उन्हें घाटा होता है। आर यह महज़ धारणा नहीं बल्कि हकीकत भी है।
मोदी सरकार ने कई योजनाओं के द्वारा किसानों को आधुनिक तकनीक उपलब्ध कराने, खेती की कठिन प्रक्रिया को सुगम व सरल बनाने और सुविधाओं को सीधा उन तक पहुँचाने की व्यवस्था की है। इन में से कुछ चुनिंदा योजनाओं के बारे में हम यहाँ बात करेंगे और आधिकारिक आँकड़ों द्वारा ये देखने की कोशिश करेंगे कि पिछले पाँच सालों में कृषि क्षेत्र में क्या बदलाव हुए हैं?
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
मोदी को विरासत में एक ऐसी कृषि अर्थव्यवस्था मिली थी, जिस में पैसे लगाने को कोई तैयार नहीं था। कृषि क्षेत्र निवेश की भारी कमी से जूझ रहा था। 2014 में देश के अधिकतर इलाकों में ऐसा भीषण सूखा पड़ा था, जिससे किसान तबाह हो गए थे। इसके अलावे बेमौसम बरसात ने किसानों के घाव पर नमक छिड़कने का काम किया था। ऐसे समय में कुछ ठोस फ़ैसलों की ज़रूरत थी और नरेंद्र मोदी सरकार ने ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)’ लाकर किसानों को बहुत हद तक राहत दी।
पानी के संकट से जूझते किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए PMKSY एक वरदान की तरह साबित हुआ। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2015 में इस योजना के बारे में बताते हुए कहा था कि सरकार जल संसाधन के संरक्षण एवं कुशल प्रबंधन के लिए जिला और गाँव स्तर पर योजनाएँ तैयार करेगी। सूखे से पीड़ित कृषि क्षेत्र को राहत देते हुए मोदी सरकार ने ₹50,000 करोड़ की फंडिंग के साथ सिंचाई के लिए तय बजट को दुगुना कर दिया। पानी के उचित संरक्षण और खेतों में पानी की उचित मात्रा में सप्लाई- सरकार ने एक तीर से दो निशाने साधे।
हर खेत को पानी पहुँचाने के लक्ष्य के साथ शुरू हुई इस योजना ने नए कीर्तिमान रचे हैं। सितम्बर 2018 तक सिंचाई संबंधित 93 प्रमुख प्रोजेक्ट्स के लिए सरकार ने ₹65,000 करोड़ से भी अधिक के फण्ड जारी किए। 75 प्रोजेक्ट्स को पूरा किया व अन्य पर काम चल रहा है।
इस योजना के तहत किसानों को पम्पसेट ख़रीदने पर ₹10,000 का अनुदान भी दिया जाता है। किसानों को सिंचाई के आधुनिक तकनीक अपनाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। कुल कृषि क्षेत्र में से अधिकतर अभी भी सिंचाई के पहुँच से बाहर है और PMKSY द्वारा इसे लगातार कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
सॉइल हेल्थ कार्ड
सॉइल हेल्थ कार्ड (SHC) स्कीम को स्थाई आधार पर विशिष्ट फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए लाया गया। किसानों के खेतों की मिट्टी की जाँच कर सॉइल हेल्थ कार्ड बाँटा गया। इस से किसानों को ये पता चला कि उनके खेतों में किस न्यूट्रिएंट को कितनी मात्रा में डालना है। इस से फ़सल को रसायन की अधिकता से नुकसान भी नहीं होता और पैदावार भी अच्छी होती है। इसके लिए सरकार ने मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया।
इस योजना के पहले फेज़ (2015-17) में ही 10 करोड़ से भी अधिक सॉइल हेल्थ कार्ड बाँटे गए। इस से किसान अपने खेतों में अधिक या कम मात्रा में खाद डालने से बच गए। सॉइल हेल्थ कार्ड के द्वारा उन्हें ये पता चला कि खेतों में कितनी मात्रा में खाद डालनी है।
दूसरे साइकल के दौरान साढ़े साथ करोड़ से भी अधिक किसानों के लिए कार्ड्स बनाए गए।
किसानों को मुआवजा
किसानों के लिए उनके मेहनत से उगाए गए फ़सल का नष्ट हो जाना किसी बुरे सपने से कम नहीं है। किसानों की आत्महत्या के पीछे भी अधिकतर यही वज़ह होती है। प्रकृति पर किसी का ज़ोर नहीं होता। ओला-वृष्टि, अतिवृष्टि, सूखा या अन्य आपदाओं से नष्ट हुई फसलों के बदले किसानों को बहुत कम मुआवज़ा मिलता था। वो भी दलालों के बीच फँस कर रह जाता था।
नरेंद्र मोदी ने जनवरी 2018 में इस बारे में घोषणा करते हुए बताया कि सरकार अब किसानों के 50 प्रतिशत की जगह 33 प्रतिशत फ़सल नष्ट होने के बावजूद भी मुआवज़ा देगी। इसके अलावा सरकार ने मुआवज़े की रक़म को पहले के मुक़ाबले डेढ़ गुना बढ़ा दिया है।
अर्थात पहले किसानों की जब तक 50% फ़सल नष्ट नहीं हो जाती थी, तब तक उन्हें मुआवज़े से वंचित रखा जाता था। अब अगर किसानों की सिर्फ़ 33% फ़सल बर्बाद हो जाती है, तब भी उन्हें मुआवज़ा मिलेगा।
प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना
आपदाओं में नष्ट होने वाली फसलों के बदले किसानों को मुआवज़ा देने के लिए मोदी सरकार ने 2016 में प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना (PMFBY) शुरू किया। इसके तहत किसानों को खरीफ की फसल के लिए 2 फीसदी प्रीमियम और रबी की फसल के लिए 1.5% प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। PMFBY योजना वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए भी बीमा सुरक्षा प्रदान करती है।
जैसा कि ऊपर दिए ग्राफ से पता चलता है, 2016 के खरीफ सीजन में महाराष्ट्र एक करोड़ से भी अधिक किसानों को बीमा में एनरॉल कर इस मामले में टॉप पर रहा।
इन सबके अलावा मोदी सरकार ने किसानों को नीम कोटेड यूरिया उपलब्ध कराने के लिए भी नीतियाँ तैयार की है और उस पर अमल हो रहा है। नीम प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में भी कार्य करता है। नीम कोटेड यूरिया के लिए नीम के बीज इकट्ठे किए जाते हैं- इस से ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार का भी सृजन होता है।
ग्राम ज्योति योजना के तहत किसानों को सही समय पर बिजली आपूर्ति भी उपलब्ध कराई जा रही है। कुल मिला कर देखें तो मोदी सरकार को विरासत में जो नीतिविहीन कृषि व्यवस्था मिली थी, उसमें धीरे-धीरे सुधार किया जा रहा है और किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।