दलितों के सशक्तिकरण के नाम बना भेदभावपूर्ण SC-ST ACT आज समाज के लिए कितना भयानक साबित हो रहा है, इसका ताजा गवाह राजस्थान के जयपुर का रक्षित आत्महत्या मामला है। इस ऐक्ट ने एक हँसते-खेलते परिवार को पूरी तरह बर्बाद करके रख दिया। आर्थिक नुकसान को शायद वे सँभाल भी लेते, लेकिन संकट के दौर से गुजर रहे परिवार को अब पालनहार बेटे का नुकसान बर्दाश्त नहीं हो रहा है।
अपनी माँ के खिलाफ दायर झूठे एससी-एसटी केस के कारण जयपुर के मुहाना थाना क्षेत्र में रहने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट रक्षित खंडेलवाल ने गुरुवार (18 अगस्त 2022) को आत्महत्या कर ली है। अपने परिवार की बेइज्जती से परेशान होकर रक्षित चौथे माले पर स्थित अपने फ्लैट से कूद गए और अपनी जान दे दी।
रक्षित का एक सुसाइड नोट भी मिला है, जिसमें उन्होंने आपबीती लिखी है। उन्होंने लिखा है कि भीम सिंह नाम के एक व्यक्ति ने उनके परिवार, यहाँ तक कि उनकी माँ के खिलाफ SC-ST में झूठा मुकदमा लिखाया है। इसके कारण उनको परिवार को Dy SP सतीश वर्मा लगातार परेशान कर रहे थे।
रक्षित ने अपनी सुसाइड नोट में लिखा कि वे लोग बुरे लोग नहीं हैं। समय ने उन्हें बर्बाद कर दिया है और उनके परिवार के पास पैसा नहीं है। भीम सिंह लगातार उन्हें परेशान कर रहा है। उन्होंने डीएसपी से आग्रह कि उनके परिवार को परेशान ना करे। उन्होंने लिखा कि मरना बहुत जरूरी था।
चार पन्नों का सुसाइड लेटर आपको रुला देगा, मां, पापा, बहन,भाई, प्यार सबके लिए लिखा है.
— Shubham shukla (@ShubhamShuklaMP) August 21, 2022
और अंतिम में भ्रष्टाचारी डीएसपी सतीश वर्मा के लिए लिखा- प्लीज सर मेरे परिवार को परेशान करना छोड़ दो……
इस डीएसपी को @ashokgehlot51 कब हटाएंगे?@PoliceRajasthan pic.twitter.com/oswxXY2Fq9
अपनी चार पेज की सुसाइड नोट में रक्षित ने लिखा है कि भीम ने उनके परिवार के खिलाफ जयपुर और भरतपुर में 420 और एससी-एसटी ऐक्ट में झूठा केस दर्ज किया है। उन्होंने लिखा, “इसके कारण हमारा पूरा परिवार परेशान है। यहाँ तक उसने मेरी माँ खिलाफ तक केस कर दिया। इसमें उसका साथ डीएसपी सतीश वर्मा दे रहे हैं। आए दिन ये लोग हमें परेशान करते हैं और घर पर पुलिस टीम भेजते हैं। हम को क्रिमिनल नहीं हैं।”
सुसाइड नोट में रक्षित ने परिवार की आर्थिक तंगी का भी जिक्र किया है। उसने लिखा है, “बहुत लोगों को मैं सॉरी बोलना चाहता हूँ, लेकिन मेरी बात कोई क्यों नहीं मानता। मेरे पास पैसा नहीं है। वो बहुत पहले चले गए। कोई ये बात समझता ही नहीं कि नुकसान हो गया। प्लीज मेरे जाने के बाद मेरे परिवार को परेशान मत करना।”
उन्होंने उसमें आगे लिखा, “मैं एक सीधा-साधा लड़का था, जिसकी एक नॉर्मल लाइफ थी। बेहतर बनने के चक्कर में मेरी पूरी लाइफ खराब हो गई। हमारे परिवार की इज्जत, पैसा सब खत्म हो गया। आज मेरे लिए सभी बुरा-भला बोलते हैं। भीम सिंह जैसे लोग पैसे के लिए मुझे बुरा-भला बोलते हैं। हम इंसान खराब नहीं, वक्त खराब था, जो सब खत्म कर गया।”
रक्षित पर थी परिवार की जिम्मेदारी
25 साल के रक्षित के पिता रमाकांत खंडेलवाल का जयपुर में कपड़ों का शोरूम था। कोरोना महामारी के दौरान उनके व्यापार पर जबरदस्त चोट पहुँची और व्यापार पूरी तरह बर्बाद हो गया। रक्षित पर माँ मंजू खंडेलवाल एवं छोटे भाई आर्यन सहित परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी।
वे अपनी जिम्मेदारी को निभा भी रहे थे और मेहनत कर परिवार को एक बार फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे। इसी बीच उन्होंने आत्महत्या कर ली। सुसाइड के अगले दिन उनके कमरे से सुसाइड नोट मिला तो पता चला कि वे इस झूठे केस के कारण परिवार की हो रही बेइज्जती से विचलित हो गए थे।
उन्होंने सुसाइड नोट में अपने परिवार और लोगों से बहुत भावनात्मक अपील की। उन्होंने लिखा कि वे अपने माता-पिता और परिवार से बेहद प्यार करते हैं, लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी बन गई है कि वे आगे की जीवन-यात्रा को नहीं जारी रख सकते हैं। उन्होंने लोगों से भी अपील की कि वे उनके परिवार को परेशान ना करें, बल्कि सपोर्ट करें।
राजस्थान के जालौर में हेडमास्टर पर SC-ST एक्ट में कार्रवाई
बता दें कि राजस्थान के जालौर के सुराणा गाँव के एक विद्यालय के हेडमास्टर छैल सिंह पर मटका में पानी पीने को लेकर SC-ST एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया है। इसको लेकर देश भर में बवाल मचा हुआ है। वहीं, राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण आयोग और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी कह रहे हैं कि स्कूल में मटका था ही नहीं।
स्कूल के दलित शिक्षकों एवं छात्रों का भी कहना है कि स्कूल में मटका है ही नहीं पानी पीने के लिए और सभी लोग एक ही टंकी से पानी पीते हैं। वहीं, बच्चे के पिता ने इसे जातीय रंग देते हुए अपनी प्राथमिकी में पिटाई का कारण मटका से पानी बताया है।
अधिकारियों के अनुसार, स्कूल के दो आपस में किसी बता पर झगड़ा कर रहे थे, इसी दौरान वहाँ से गुजर रहे हेडमास्टर छैल सिंह ने दोनों को एक-दो थप्पड़ लगा दिए थे। बाद में उस दलित छात्र की अस्पताल में मौत हो गई थी। इसके बाद इसे राजनीतिक रंग दे दिया गया है।