जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक दशक पहले बंद हो चुके नदीमर्ग नरसंहार केस में जम्मू-कश्मीर पुलिस की पुनरीक्षण याचिका को मंजूरी दे दी है। इस मंजूरी का मतलब है कि नदीमर्ग नरसंहार केस एक बार फिर से खोला जाएगा। नदीमर्ग नरसंहार मार्च 2003 में पुलवामा जिले के नदीमर्ग गाँव में हुआ था। लश्कर आतंकियों ने 24 कश्मीरी हिन्दुओं की निर्मम हत्या कर दी थी।
शनिवार (29 अक्टूबर 2022) को हुई सुनवाई में जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने निचली अदालत को आदेश देते हुए कहा है कि वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए (कमीशन जारी करके या रिकॉर्ड करके) गवाहों के बयान लेने और उसकी जाँच सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करें।
“The court below shall now take all necessary measures for ensuring the examination of witnesses concerned by issuing commission and/or recording their statement videoconferencing and shall ensure expeditious proceedings so as to conclude matter at the earliest,” court ordered.
— Live Law (@LiveLawIndia) October 29, 2022
कोर्ट ने निचली अदालत को यह भी कहा है कि नदीमर्ग नरसंहार मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करें ताकि इस मामले को जल्द खत्म किया जा सके।
अगस्त में खुली थी नरसंहार की फाइल
उल्लेखनीय है कि इससे पहले 26 अगस्त 2022 को न्यायमूर्ति संजय धर ने राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस केस को फिर से खोलने का आदेश दिया था। इस याचिका में दिसंबर 2011 के आदेश को वापस लेने की माँग की गई थी। उस समय आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई थी।
नदीमर्ग नरसंहार मामले में स्थानीय जैनपोरा थाने में धारा 302, 450, 395, 307, 120-बी, 326, 427 आरपीसी, 7/27 आर्म्स एक्ट और धारा 30 के तहत दर्ज किया गया था। शुरुआती जाँच के बाद 7 आरोपितों के खिलाफ प्रधान सत्र न्यायालय पुलवामा में चालान पेश किया गया। बाद में केस शोपियाँ के प्रधान सत्र न्यायालय में ट्रांसफर कर दिया गया था।
शोपियाँ की अदालत को अभियोजन पक्ष ने बताया था कि गवाह डर के कारण घाटी छोड़कर जा चुके हैं। वे सुनवाई के दौरान हाजिर नहीं हो सकते। इसके बाद केस बंद कर दिया गया। लेकिन, जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के ताजा आदेश से इस मामले में एक बार फिर न्याय की उम्मीद जगी।
क्या है नदीमर्ग नरसंहार
शोपियाँ जिले में नदीमर्ग (अब पुलवामा में) एक हिंदू बहुल गाँव था, जिसकी कुल आबादी मात्र 54 थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद के पैतृक गाँव से 7 किलोमीटर दूर स्थित इस गाँव में 23 मार्च, 2003 की रात सब तबाह हो गया। जब पूरा देश भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की याद में शहीद दिवस मना रहा था, तब नदीमर्ग में हिन्दुओं का नरसंहार हो रहा था। उस दिन 7 आतंकवादी गाँव में घुसे और सभी हिंदुओं को चिनार के पेड़ के नीचे इकठ्ठा करने लगे। रात के 10 बजकर 30 मिनट पर इन आतंकियों ने 24 हिंदुओं की गोली मार कर हत्या कर दी। गौर करने वाली बात थी कि 23 मार्च को पाकिस्तान का राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है।
मरने वालों में 70 साल की बुजुर्ग महिला से लेकर 2 साल का मासूम बच्चा तक शामिल था। क्रूरता की हद पार करते हुए एक दिव्यांग सहित 11 महिलाओं, 11 पुरुषों और 2 बच्चों पर बेहद नजदीक से गोलियाँ चलाई गई थी। कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि पॉइंट ब्लेंक रेंज से हिंदुओं के सिर में गोलियाँ मारी गई थी। आतंकी यही नहीं रुके उन्होंने घरों को लूटा और महिलाओं के गहने उतरवा लिए। न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार ने इस घटना का जिम्मेदार ‘मुस्लिम आतंकवादियों’ को बताया। अमेरिका के स्टेट्स डिपार्टमेंट ने भी इसे धर्म आधारित नरसंहार माना था।
आतंकियों को मदद पड़ोस के मुस्लिम बहुलता वाले गाँवों से मिली थी। उस दौरान जम्मू-कश्मीर पुलिस के इंटेलिजेंस विंग को संभाल रहे कुलदीप खोड़ा भी मानते हैं कि बिना स्थानीय सहायता के नदीमर्ग नरसंहार को अंजाम ही नहीं दिया जा सकता था।
नरसंहार के चश्मदीद बताते है कि आतंकियों ने हिंदुओं को उनके नाम से पुकारकर घरों से बाहर निकाला था। यानी वे पहले से ही इस योजना पर काम कर रहे थे। आतंकियों ने गाँव का दौरा किया हो, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इस प्रकरण में राज्य सरकार की भूमिका भी संदेह वाली बनी रही। उस इलाके की सुरक्षा में लगी पुलिस को हटा लिया गया था। घटना से पहले वहाँ 30 सुरक्षाकर्मी तैनात थे, जिनकी संख्या उस रात घटाकर 5 कर दी गई।
नदीमर्ग नरसंहार के बाद जम्मू-कश्मीर के हिंदुओं के मन में डर बैठ गया कि वे राज्य में सुरक्षित नहीं हैं। इस नरसंहार के करीब एक महीने बाद आतंकी जिया मुस्तफा गिरफ्तार किया गया था। वह पाकिस्तान के रावलकोट का रहने वाला था और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तय्यबा का एरिया कमांडर था। उसने बताया था कि लश्कर के अबू उमैर ने उसे ऐसा करने के लिए कहा था। मुस्तफा के मुताबिक वह उन बैठकों का हिस्सा रहा था, जहाँ भारत के हिंदू मंदिरों पर आतंकी हमले की योजना बनाई गई थी।
जम्मू-कश्मीर के पुंछ इलाके में 24 अक्टूबर 2021 को सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच एक मुठभेड़ में जिया मुस्तफा मारा गया था। कश्मीर की कोट बलवाल जेल में बंद मुस्तफा को 10 दिनों की रिमांड पर लिया गया था। भाटा दूरियान नाम की जगह पर पहचान के लिए उसे ले जाते वक़्त आतंकियों ने जवानों पर फायरिंग कर दी थी। आग से घिर जाने के चलते आतंकी मुस्तफा को निकाला नहीं सके। बाद में उसकी लाश बरामद की गई।