Tuesday, May 21, 2024
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राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद दिल्ली सेवा बिल बना कानून, उपराज्यपाल की शक्तियाँ बढ़ीं: तीन अन्य बिल भी बने कानून

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने 11 मई 2023 को फैसला सुनाते हुए कहा था कि दिल्ली में जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सारे प्रशासनिक फैसले लेने के लिए दिल्ली की सरकार स्वतंत्र होगी। अधिकारियों और कर्मचारियों का ट्रांसफर-पोस्टिंग भी कर पाएगी।

संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिल्ली सेवा विधेयक सहित चार बिलों पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके बाद अब ये कानून बन गए हैं। दिल्ली सेवा बिल के कानून बनने के बाद दिल्ली का सेवा क्षेत्र उपराज्यपाल के अधीन आ गया है। बताते चलें कि सेवा क्षेत्र को दिल्ली सरकार के अधीन करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए पलट दिया था।

विपक्ष के विरोध के बावजूद यह बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास हो गया था। इसके बाद दिल्ली सेवा बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब यह बिल कानून बन गया है। कानून बनते ही भारत सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है।

राज्य सभा ने 102 के मुकाबले 131 मतों से ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक 2023’ को मंजूरी दी थी। लोकसभा ने इसे तीन अगस्त को पास कर दिया था। इसके अलावा, राष्ट्रपति ने तीन अन्य बिलों- डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल, जन्म-मृत्यु पंजीकरण बिल, जन विश्वास बिल पर भी हस्ताक्षर किए। ये बिल भी इस सत्र में पास हुए थे।

दिल्ली सेवा कानून की प्रमुख बातें

  1. दिल्ली सरकार के अधिकारियों का तबादला और उनकी नियुक्ति राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (NCCSA) करेगा। इसके चेयरमैन मुख्यमंत्री हैं और दो अन्य सदस्य मुख्य सचिव और गृह सचिव हैं। इसमें बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।
  2. दिल्ली विधानसभा द्वारा अधिनियमित कानून द्वारा बनाए गए किसी बोर्ड या आयोग के लिए नियुक्ति के मामले में NCCSA नामों के एक पैनल की सिफारिश उपराज्यपाल को करेगा।उपराज्यपाल अनुशंसित नामों के पैनल के आधार पर नियुक्तियाँ करेंगे।
  3. नए कानून के अनुसार मुख्य सचिव तय करेंगे कि कैबिनेट का निर्णय सही है या गलत।
  4. अगर किसी विभाग के सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश कानूनी रूप से गलत है तो वो इसे मानने से इंकार कर सकता है।
  5. सतर्कता सचिव अब दिल्ली सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे। वह उपराज्यपाल द्वारा बनाए गए प्राधिकरण के तहत जवाबदेह होंगे।
  6. उपराज्यपाल को यह शक्ति दी गई है कि वो कैबिनेट के किसी भी निर्णय को पलट सकते हैं।
  7. दिल्ली में कार्यरत अधिकारियों पर नियंत्रण मुख्यमंत्री के बजाय उपराज्यपाल का होगा।

दरअसल, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने 11 मई 2023 को फैसला सुनाते हुए कहा था कि दिल्ली में जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सारे प्रशासनिक फैसले लेने के लिए दिल्ली की सरकार स्वतंत्र होगी। अधिकारियों और कर्मचारियों का ट्रांसफर-पोस्टिंग भी कर पाएगी।

कोर्ट के फैसले के एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश ले आई। केंद्र ने ‘गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली ऑर्डिनेंस, 2023’ लाकर प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार वापस उपराज्यपाल को दे दिया था।

इस अध्यादेश के तहत राष्ट्रीय राजधानी सिविल सर्विसेज अथॉरिटी का गठन किया गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और गृह सचिव को इसका सदस्य बनाया गया। मुख्यमंत्री इस अथॉरिटी के अध्यक्ष होंगे और बहुमत के आधार पर यह प्राधिकरण फैसले लेगा। प्राधिकरण के सदस्यों के बीच मतभेद होने पर दिल्ली के उपराज्यपाल का फैसला अंतिम माना जाएगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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