Thursday, May 9, 2024
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गदर के ‘तारा सिंह’ की असली कहानी: इस्लाम कबूला, पाकिस्तान गया… फिर भी मुस्लिम बीवी ने नकारा, बेटी को भी दुत्कारा… ट्रेन से कट कर मर गया

गदर के 'तारा सिंह' मतलब असल जिंदगी के बूटा सिंह को इस्लाम कबूलने के बाद, मुस्लिम बीवी के धोखे और गम में आत्महत्या के बाद भी नसीब नहीं हुई ससुराल में कब्र। जहाँ दफनाया, उसे भी खोद डाला कट्टर मुस्लिमों ने।

साल 2001 में सनी देओल और अमीषा पटेल की फिल्म ‘गदर: एक प्रेमकथा’ आई थी। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया था। यही कारण है कि फिल्म की सफलता के 22 साल बाद इसका सीक्वल गदर-2 सिनेमाघरों में चल रही है और यह पहली फिल्म की तरह ही बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रही है।

फिल्म में निभाए गए सनी देओल के ‘तारा सिंह’ और अमीषा पटेल के ‘सकीना’ वाले किरदार को दर्शक खूब पसंद कर रहे हैं। हालाँकि, आप इसे एक काल्पनिक कहानी सोच होंगे, लेकिन सच ये है कि तारा सिंह का किरदार ब्रिटिश सेना में तैनात बूटा सिंह नाम के सैनिक की कहानी से प्रेरित है।

हालाँकि, इससे उलट फिल्म के निर्देशक अनिल शर्मा ने कहा था कि उनकी दोनों फिल्में रामायण और महाभारत से प्रेरित है। अब मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक, यह बूटा सिंह पर आधारित है। 24 साल पहले इस पर एक पंजाबी फिल्म ‘शहीद-ए-मोहब्बत बूटा सिंह’ बनी थी, जिसमें बूटा सिंह की कहानी को तस का तस दिखाया गया था। इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड भी मिला था।

कहा जा रहा है कि बूटा सिंह का जन्म पंजाब के जालंधर में हुआ था। वह ब्रिटिश सेना में सैनिक थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लॉर्ड माउंटबेटन की कमान के तहत बर्मा मोर्चे पर तैनात थे। साल 1947 में भारत के बँटवारे के समय दोनों तरफ से हिंदुओं और मुस्लिमों को खदेड़ा जा रहा था।

इसी दौरान पाकिस्तान जा रहे मुस्लिमों के एक काफिले में से जैनब नाम की लड़की का अपहरण कर लिया गया। बाद में बूटा सिंह ने जैनब की बचाई और उसे अपने घर में पनाह दी। इसके बाद दोनों के बीच प्यार हो गया। आखिरकार दोनों ने शादी कर ली।

बँटवारा के करीब एक दशक बाद भारत-पाकिस्तान सरकार ने निर्णय लिया कि दोनों तरफ की उन महिलाओं को उनके घर वापस भेजा जाए, जिन्हें अगवा कर लिया गया था। कहा जाता है कि बूटा सिंह के भतीजे ने जायदाद के चक्कर में जैनब के बारे में जाँच करने वालों को बता दिया था। उसके बाद जैनब को पाकिस्तान उसके परिवार के पास भेज दिया गया। उस सम जैनब की दो बेटियाँ थी। जैनब के साथ उसकी छोटी बेटी भी साथ गई।

रिपोर्ट्स के अनुसार, जैनब लाहौर में अपने परिवार से मिली। कुछ सालों बाद जब उसके माता-पिता का निधन हुआ तो जैनब की जिंदगी बदल गई। जैनब की बहन उसके माँ-बाप के जायदाद की कानूनी बन गई। जैनब के चाचा चाहते थे कि उनके भाई की संपत्ति उनके पास आ जाए, इसलिए वे जैनब पर अपने बेटे के साथ निकाह करने का दबाव बनाने लगे।

बतौर रिपोर्ट्स, इस बीच बूटा सिंह के पास एक पत्र आया था, जिसमें लिखा था कि जैनब पर उसके परिजन दूसरी शादी के लिए दबाव डाल रहे हैं। इसके बाद बूटा सिंह ने दिल्ली में अधिकारियों से उनकी पत्नी को वापस बुलाने की गुजारिश की, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। आखिरकार उन्होंने खुद पाकिस्तान जाकर अपनी पत्नी को अपने साथ लाने का निर्णय लिया।

इसके लिए उन्होंने अपनी जमीन बेच दी और इस्लाम अपनाकर अपना नाम जमील अहमद रख लिया। फिर वह अपने बच्चों और पत्नी को लाने के लिए गैर-कानूनी तरह से वह पाकिस्तान चले गए। जब बूटा सिंह पाकिस्तान पहुँचे तो जैनब के परिवार ने उन्हें अपने परिवार का हिस्सा बनाने से साफ मना कर दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने पाकिस्तानी पुलिस को बुलाकर बूटा सिंह को उसके हवाले कर दिया।

इसके बाद मामला कोर्ट में पहुँचा। कहा जाता है इस मामले में जैनब को कोर्ट में पेश किया गया। जैनब ने बूटा सिंह से प्यार करने के बावजूद दबाव में आकर उनके साथ जाने से इनकार कर दिया। हालाँकि, बेटी को बूटा सिंह के साथ भेज दिया।

कहा जाता है कि बूटा सिंह अपनी पत्नी से इस जुदाई को बर्दाश्त नहीं कर सके। उन्हें गहरा सदमा लगा। उन्होंने सामने से आ रही ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दे दी। इस घटना में उनकी बेटी बच गई। बूटा सिंह ने अपनी सुसाइड नोट में लिखा था कि उन्हें नूरपुर के कब्रिस्तान में दफनाया जाए, लेकिन जैनब के परिजनों ने ऐसा नहीं करने दिया। इसके बाद उन्हें लाहौर के मियाँ साहिब में दफनाया गया।

बूटा सिंह का यह मजार आज भी पाकिस्तान में स्थित है और यहाँ युवा प्रेमी आते हैं। उन्हें लोग शहीद-ए-आजम बूटा सिंह के नाम से याद करते हैं। जैनब और बूटा सिंह की दो बेटियाँ हैं, जिनका नाम तनवीर और दिलवीर है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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