फ़ास्ट फ़ूड चेन McDonald’s के लिए ‘केवल हलाल’ मांस परोसने की नीति गले की हड्डी बनती जा रही है। इसके खिलाफ उन्हें जारी हुए पहले क़ानूनी नोटिस का जवाब देने में ज़रूरत से ज्यादा समझदार बनने के चक्कर में दूसरी नोटिस उनके दरवाज़े पहुँच गई है। अधिवक्ता ईशकरण सिंह भंडारी ने यह नोटिस अपने ट्विटर हैंडल पर साझा की है।
The 2nd Legal Notice to McDonald’s after their evasive interim reply to 1st legal Notice.
— Ishkaran Singh Bhandari (@Ish_Bhandari) October 3, 2019
They have to answer on the Policy of serving ONLY HALAL MEAT & either change it or court case pic.twitter.com/Xla5HeXOG0
पहली नोटिस हरीश शर्मा ने अधिवक्ता ईशकरण सिंह भंडारी के ज़रिए McDonald’s India और इसके एमडी अमित जटिया और विक्रम बक्शी को 26 अगस्त को भेजा था, जब McDonald’s ने यह स्वीकार किया था कि वह केवल हलाल मांस ही अपने रेस्तरां में परोसता है। चूँकि हलाल मांस के कारोबार में कोई गैर-मुस्लिम शामिल नहीं हो सकता, इसलिए यह गैर-मुस्लिमों के साथ भेदभाव था। यही नहीं, जानवरों की हत्या का ‘हलाल’ तरीका ‘झटका’ के मुकाबले कहीं अधिक ‘क्रूर’ होता है- अतः केवल और केवल वही मांस परोसने और झटका का विकल्प न रखने से McDonald’s ‘हलाल’ में निहित क्रूरता को न पसंद करने वालों की मज़हबी/आस्था से जुड़ी भावनाओं का भी असम्मान कर रहा था।
पहली नोटिस में McDonald’s के उस ट्वीट का हवाला दिया गया था, जिसमें वह अपने प्रतिष्ठानों में मौजूद सारे मांस के हलाल होने का दावा करता है। नोटिस में उससे झटका मांस को लेकर के उसकी नीति और हलाल मांस के साथ जुड़ी उपर्युक्त समस्याओं के बारे में स्पष्टीकरण की माँग की गई थी। इसके अतिरिक्त ‘केवल हलाल’ की नीति से SC/ST के विरुद्ध भी भेदभाव और ‘अस्पृश्यता’ सदृश व्यवहार का मामला बन सकता है, क्योंकि हिन्दू कसाई आम तौर पर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बीच से ही आते हैं।
इन्हीं सवालों का जवाब जब McDonald’s से माँगा गया तो उसने बेहद ‘लटकाने वाला’ जवाब भेजा कि उसे नोटिस का अध्ययन करने के लिए और समय चाहिए। पहली नोटिस में उन्हें 15 दिन का समय दिया गया था।
McDonald’s को क्या कहें, सरकार भी ‘हलाल-सर्टिफाइड’
McDonald’s तो एक निजी प्रतिष्ठान है। हलाल को विशेष तरजीह और झटका मांस के साथ भेदभाव तो खुद सरकार भी करती है- राष्ट्रपति भवन, भारतीय संसद तक सभी जगह केवल हलाल मांस ही परोसा जाता है। यही नहीं, जब कोई हलाल से अलग झटका मांस बेचने या उसका उत्पादन करने की कोशिश करता है तो और लोगों की बात तो अलग, सरकारी अमला भी उसे गैर-क़ानूनी रूप से हतोत्साहित करने में जुट जाता है। (इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए झटका सर्टिफिकेशन अथाॅरिटी के चेयरमैन रवि रंजन सिंह से ऑपइंडिया की विशेष बातचीत यहाँ पढ़ें।)
गौरतलब है कि जब हमने रेलवे से इस संदर्भ में बात की तो रेलवे के एक अधिकारी ने इस पर स्पष्टीकरण देते हुए बताया कि IRCTC खुद से झटका या हलाल में कोई अंतर नहीं करता। वह अंतरराष्ट्रीय मानककीकरण संस्था (International Organization for Standardization, ISO) और HACCP (Hazard Analysis and Critical Control Point, भोजन सामग्री में निहित जोखिमों को कम करने की प्रणाली) के मानकों के अनुसार फ्रोज़ेन चिकन के सप्लायर्स की छँटाई (shortisting) करती है। वह माँस के झटका या हलाल ही होने की शर्त अपने टेंडर दस्तावेज़ों में नहीं लिखती। भारत के भोज्य पदार्थ नियामक FS&SAI (Food Safety and Standards Authority of India) के मानकों में भी झटका या हलाल का ज़िक्र नहीं है।
अपडेट: अक्टूबर 4, 2019, 08:00 PM