जैसे ही चीन ने जैश आतंकी मसूद अज़हर पर प्रतिबन्ध लगाने में चौथी बार पलीता लगाया, सोशल मीडिया में आग की तरह पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के उस कदम पर चर्चा प्रारंभ हो गई जिसमें उन्होंने कथित तौर पर भारत को मिल रही सुरक्षा परिषद की सीट चीन की ओर घुमा दी थी।
फिर फँसा ‘द हिन्दू’
अंग्रेज़ी दैनिक ‘द हिन्दू’ ने इस मान्यता को नकारते हुए प्रधानमंत्री नेहरू का संसद में दिया गया एक बयान छापा जिसमें हिन्दू ने नेहरू के संसद में इस बात को खारिज करने का दावा किया। हिन्दू के अनुसार, नेहरू ने 27 सितम्बर, 1955 को डॉ. जेएन पारेख के इसी विषय पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में यह कहा कि उन्हें कोई औपचारिक या अनौपचारिक प्रस्ताव मिला ही नहीं।
एक ट्विटर यूज़र True Indology ने हिन्दू और कॉन्ग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी समेत कईयों के इस दावे के विपरीत यह दावा किया कि उपरोक्त बयान देने के पहले ही प्रधानमंत्री महोदय एक नहीं, दो-दो बार इस प्रस्ताव के दिए जाने और अपने उसे नकारने की बात स्वीकार चुके थे।
True Indology के मुताबिक मुख्यमंत्रियों को लिखे एक पत्र में नेहरू जी यह साफ तौर पर लिखते हैं कि भारत को चीन की जगह सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने का प्रस्ताव आया था जिसे उन्होंने चीन के साथ अन्याय न होने देने के लिए अस्वीकार कर दिया।
4) But just a month earlier,on August 2 1955, Nehru in his letter to Chief Ministers clearly mentions there was indeed an informal offer from US for a UNSC seat.
— True Indology (@TrueIndology) March 14, 2019
Nehru denied it because he didn't want to take the seat "because it would be unfair to a great country like China" pic.twitter.com/5mxJbLHjwK
True Indology ने यह भी दावा किया कि 5 वर्ष पूर्व (1950 में) भी प्रधानमंत्री नेहरू को यह प्रस्ताव दिया गया था, जिसे उन्होंने चीन को नाराज़ न करने के लिए नकार दिया। यह प्रस्ताव तो उनकी बहन और भारत की अमेरिका में राजदूत डॉ. विजयलक्ष्मी पण्डित के ज़रिए आया था।
9) In a letter to Nehru dated 24th August 1950, Indian Ambassador to US and Nehru's sister Vijayalakshmi Pandit reveals that US State department made a proposal to India for UNSC seat.
— True Indology (@TrueIndology) March 14, 2019
Those were the days of Cold War and US was looking at a potential ally in India pic.twitter.com/9JsWFczDNv
10) Nehru wrote a response to this letter on August 30
— True Indology (@TrueIndology) March 14, 2019
He unequivocally denied the offer.
He said the UNSC seat would break "the impeccable relations between India and China". He further said "it would be an affront to China" and he would "press for China's admission in UNSC" pic.twitter.com/rRborruOzx
कौन झूठा, कौन अनभिज्ञ
चूँकि प्रधानमंत्री नेहरू केवल कॉन्ग्रेस नहीं बल्कि पूरे देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं, और मृत होने के कारण अपना बचाव करने में अक्षम हैं, अतः उन पर तो हम झूठा होने का आरोप लगा नहीं सकते। तो अब बचा ‘द हिन्दू’।
राफ़ेल विवाद में रक्षा मंत्रालय का नोट क्रॉप कर भ्रष्टाचार के मनगढ़ंत सबूत बनाने के आरोपों का सामना पहले ही हिन्दू कर रहा है। ऐसे में हिन्दू को इसका स्पष्टीकरण देना चाहिए कि इन विरोधाभासी दस्तावेज़ों का तात्पर्य क्या है?
यदि हिन्दू कोई संतोषजनक उत्तर नहीं ला पाता है तो भारी दिल से हमें इस निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ेगा कि या तो देश के सबसे पुराने और ‘esteemed’ समाचार पत्रों में शुमार ‘द हिन्दू’ को ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी ही नहीं है, और या फिर हिन्दू ने जानबूझकर ऐसी बात कही जिसका तुरंत खण्डन होगा और हम बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू पर सवालिया निशान लगेंगे।
या फिर हिन्दू ने नेहरू जी का जो बयान छापा वह ही गलत है? देश के दूसरे सबसे मशहूर चाचा (पहले चाचा चौधरी हैं) के साथ इनमें से कोई-न-कोई एक साज़िश करने के लिए द हिन्दू की जितनी भर्त्सना की जाए, कम है!