राहुल के वायनाड जाते ही ‘टोंटी-चोर’ के भुट्टे पर मर-मिटा मीडिया

बहराइच का भुट्टा और अध्यक्ष जी (तस्वीर साभार : न्यूज़ 18)

लोकसभा चुनावों के बाद ‘लगभग’ बेरोजगार चल रहे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की आज एक अँधेरे को चीरती हुई सनसनी जैसी खबर सामने आई है और ये खबर लाने का काम किया है ‘आज तक’ नाम के न्यूज़ चैनल ने। इसके बाद अन्य कई समाचार चैनल्स ने इस खबर को हवा देने का काम किया।

आज तक ने ट्विटर पर अखिलेश यादव का एक ‘एक्सक्लूसिव’ वीडियो शेयर करते हुए बड़े ही मार्मिक शब्दों में लिखा है – “U.P के पूर्व मुख्यमंत्री @yadavakhilesh का काफिला आज सड़क किनारे ठेले पर भुट्टा देखकर अचानक रुक गया। अखिलेश ने ठेले पर भुट्टा बेच रहे व्यक्ति से भुट्टे का रेट पूछा और एक भुट्टा भी लिया। उनकी ये सादगी देखकर बाराबंकी की जनता उनकी कायल हो गई।”

https://twitter.com/aajtak/status/1137372647363436551?ref_src=twsrc%5Etfw

गठबंधन के भविष्य पर मंडरा रहे संकट के बादलों से पर्दा हटाते हुए अब बुआ-बबुआ संबंधों से भी मीडिया की उम्मीदें ध्वस्त हो चुकी हैं। ऐसे में आज तक वाले अगर ‘टोंटी-चोर’ के भुट्टों की रिपोर्टिंग करते नजर आ जाएँ, तो समझ जाइए कि मीडिया के लिए राहुल गाँधी अब प्रासंगिक नहीं रहे।

आज तक ने अखिलेश यादव की भुट्टे का भाव पता करने की इस मार्मिक घटना को सनसनी बनाकर साबित कर दिया है कि मीडिया को अपने केजरीवाल तलाशने के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। वर्तमान राजनीति केजरीवालों से भरी पड़ी है। चुनाव से पहले कुछ निष्पक्ष पत्रकार जब राहुल-प्रियंका नामक भाई-बहनों की क्यूट तस्वीरों द्वारा माहौल बनाकर थक गए, तब उन्होंने गठबंधन के मंच पर चढ़कर बुआ-बबुआ के ऐतिहासिक क्षण को अपनी आँखों से देखकर कवर करने का फैसला लिया था और उनका फोटोग्राफर बनना तक पसंद किया।

लेकिन तैमूर की दिनचर्या और राजनीति के खानदान विशेष के मोह से निकलकर अखिलेश यादव के भुट्टों की ओर पलायन कर लेना एक सकारात्मक बदलाव है। आज तक को इस तरह के बदलाव के लिए पुरस्कार भी मिलना चाहिए। अगर अब भुट्टों की ओर नहीं बढ़ेंगे तो मीडिया के लाडले अरविन्द केजरीवाल आखिर कब तक सड़कों पर यहाँ-वहाँ रैपट खाकर खबरों में बने रहेंगे? चुनाव में भी अभी काफी समय बाकी है।

अखिलेश यादव इसी तरह सड़कों पर भुट्टे और खीरा का भाव पूछकर मीडिया का नया युवराज बन सकें तो यह मोदी सरकार के दौरान जनता को एक और सकारात्मक बदलाव देखने को मिल सकता है। हालाँकि, आज तक भी ये बात खूब जानता है कि अगर उनके प्यारे युवराज को अमेठी की जनता वायनाड न भगाती तो आज वो भुट्टों के भाव पूछने के लिए कहीं और खड़े होते। खैर, आजादी के बहुत साल बाद ही सही, लेकिन मीडिया को इस तरह से एक विशेष परिवार से बाहर निकलते हुए देखना अच्छा अनुभव है।

वैसे हकीकत तो ये भी है कि जनता भुट्टों की नहीं बल्कि ‘चाय’ की दीवानी है। फिर भी अगर मीडिया अभी भी भुट्टों के पीछे भाग रही है तो हो सकता है अभी भी एक आखिरी उम्मीद बाकी हो।

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