आज देश में जहाँ एक तरफ गणतंत्र मनाए जाने की धूम है, तो वहीं दूसरी तरफ सैनिकों का बलिदान भी यादगार है। भारतीय सैनिकों के बलिदान को देश की मिट्टी भला कैसे भूल सकती है। सेना के जाबाज़ जवानों और उनके जज़्बों के आगे देश का हर नागरिक हमेशा से ही नतमस्तक रहा है। दिन-रात देश की चौकसी में जुटे ये प्रहरी जैसे थकना ही ना जानते हों। नई दिल्ली के इंडिया गेट पर 24 घंटे और सातों दिन लगातार प्रज्वलित लौ ‘अमर जवान ज्योति’ उनके इसी जज़्बे और बलिदान को सलाम करती है।
अमर जवान ज्योति एक भारतीय स्मारक है जिसे 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में प्रज्वलित किया गया। 3 दिसम्बर से 16 दिसम्बर 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान अर्थात आज के बंग्लादेश में मुक्ति सेना की मदद करते हुए भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों को घुटने टेकने पर मज़बूर कर दिया। बांग्लादेश को पाकिस्तान से आज़ाद कराने के मुहीम में हज़ारों भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे।
शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में 26 जनवरी 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने आधिकारिक रूप से अमर जवान ज्योति स्मारक का उद्घाटन किया था। 1972 के बाद से प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर (गणतंत्र दिवस की परेड से पहले) देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, आर्मी चीफ़ के साथ वायु, जल एवं थल सेना प्रमुख़ एवं अन्य मुख्य अतिथि अमर जवान ज्योति पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।
राजपथ पर स्थित इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति वर्ष 1972 से लगातार प्रज्वलित है। इसका आसन संगमरमर का बना हुआ है जिस पर स्वर्ण अक्षरों से ‘अमर जवान’ अंकित है। स्मारक के ऊपर L1A1 आत्म-लोडिंग राइफ़ल भी लगी हुई है, जिसके बैरल पर सैनिक का हेलमेट लटका हुआ है।
अमर जवान ज्योति की प्रज्वलित लौ के पास तटस्थ मुद्रा में खड़े जवान की ज़िम्मेदारी होती है कि वो उस प्रज्वलित लौ का ध्यान रखे और उसे बुझने ना दे। साल 2006 तक अमर जवान ज्योति को जलाने के लिए एलपीजी का इस्तेमाल होता था, लेकिन अब सीएनजी का इस्तेमाल होता है। कस्तूरबा गाँधी मार्ग से इंडिया गेट तक क़रीब 500 मीटर लंबी गैस पाइप लाइन बिछी है। स्थापित चार में से एक मशाल साल भर प्रज्ज्वलित रहती है। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर ही चारों मशालों को प्रज्जवलित किया जाता है।
शहीदों की याद में प्रज्वलित इस लौ को ‘अजर अमर’ भी कहा जाता है। भारतीय सेना के बलिदान की भरपाई तो कभी नहीं की जा सकती। लेकिन हाँ इतना ज़रूर है कि देश का हर नागरिक उनके बलिदान से सदैव वाक़िफ़ रहेगा और नतमस्तक भी।