स्वीडिश अकादमी ने शुक्रवार (6 अक्टूबर 2023) को नोबेल शांति पुरस्कार 2023 ईरान की मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को दिया। वहीं, गुरुवार (5 अक्टूबर 2023) को नॉर्वेजियन लेखक जॉन फॉसे को साहित्य में 2023 के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया।
नरगिस को स्वतंत्रता सेनानी बताते हुए नोबेल समिति ने कहा कि वो ईरान में महिलाओं के दमन के खिलाफ डटकर खड़ी रहीं। मोहम्मदी साल 2010 से लगभग जेल में ही हैं। बताते चलें कि बीते साल नोबेल शांति पुरस्कार बेलारूस के मानवाधिकार एक्टिविस्ट एलेस बालियात्स्की को दिया गया था।
समकालीन रंगमंच के हैं उस्ताद
समिति ने 64 साल के फॉसे के काम की तारीफ करते हुए कहा कि उनके नए विचारों से ओतप्रोत नाटक और गद्य अनकहे को आवाज देते हैं। बीते साल साहित्य का नोबेल फ्रांसीसी लेखिका एनी एर्नाक्स को गया था। हालाँकि फॉसे इस पुरस्कार के मिलने से पहले ही साहित्य जगत में खासे मशहूर है। उन्हें केवल एक वाक्य में उपन्यास रचने वाले लेखक के तौर पर जाना जाता है।
पुरस्कार के लिए फॉसे ने आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार साहित्य का सम्मान है, जिसका सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य बिना किसी विचार के सिर्फ साहित्य होना है। पुरस्कार के तौर पर उन्हें 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना दिए गए। भारतीय मुद्रा में देखा जाए तो ये करीब राशि 8 करोड़ 30 लाख रुपए है।
साहित्य की दुनिया में उनके लेखन को लेकर कहा जाता है कि वो जिंदगी लिखते हैं। उनका लेखन इंसानी असुरक्षा और चिंताओं पर केंद्रित है। नॉर्वे के तटीय शहर हाउगेसुंड में 1959 में पैदा हुए जॉन फॉसे को सबसे अहम समकालीन यूरोपीय लेखकों में से एक माना जाता है।
उन्हें फ्रांसीसी डेली अखबार ले मोंडे ने ’21वीं सदी का बेकेट’ और कनाडा के द ग्लोब एंड मेल ने उन्हें समकालीन थिएटर में सबसे प्रभावी लेखकों में से एक बताया है। फॉसे का पहला उपन्यास ‘रेड, ब्लैक’ 1983 में आया था।
तब से उन्होंने कई उपन्यास, कहानियाँ, कविताएँ, निबंध संग्रह और यहाँ तक कि बच्चों की किताबें भी प्रकाशित की हैं। उनका लिखा पहला अंग्रेजी नाटक टाइटल ‘एंड वी विल नेवर बी पार्टेड’ 1994 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद उन्होंने लगभग 40 नाट्य रचनाएँ लिखीं।
एक वाक्य वाला महान उपन्यास
फॉसे की महान कृति उनकी ‘सेप्टोलॉजी’ है। ये 2019-2021 तक तीन खंडों में ‘द अदर नेम’, ‘आई इज़ अनदर’ और ‘ए न्यू नेम’ टाइटल से प्रकाशित हुई हैं। ये 1250 पेज का गद्य है। ये एक उम्रदराज़ कैथोलिक कलाकार एस्ले की जिंदगी के बारे में है। वो सुदूर दक्षिण-पश्चिम नॉर्वे में रहता है और वक्त, कला और अपनी पहचान के लिए जूझ रहा होता है।
उसे अपने वजूद के खत्म होने, याददाश्त कम होने जैसी परेशानी से दो-चार होना पड़ता है। ये कलाकार खुद से कला और भगवान पर बात करता है। उसकी इसी बात और सोच को बगैर किसी पूर्ण विराम के एक वाक्य में फॉसे ने लिखा है। इसे इस तरह से लिखने की वजह है कि रीडर इस बुजुर्ग कलाकार के जीवन में खुद जी के देख सके। इसकी खासियत ही ये एकालाप है।
नोबेल समिति ने नरगिस को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ कहा
साल 2023 का नोबेल शांति पुरस्कार ईरान की 51 साल की नरगिस मोहम्मदी को दी गई। नोबेल समिति ने उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानी’ कहा। उन्हें ये नाम देश में महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ उनकी लड़ाई के लिए दिया गया है। मोहम्मदी को पुरस्कार देते वक्त नोबेल समिति के चीफ ने कहा कि उन्होंने सिस्टम में रचे-बसे भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं के लिए लड़ाई लड़ी, जिसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी।
साल 2010 से जेल में रहने के बावजूद वहाँ की महिलाओं के खिलाफ हो रहे बुरे व्यवहार को दुनिया को बताने और उसके खिलाफ आवाज उठाने में कामयाब रहीं। नरगिस ईरान में डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट्स सेंटर की उपाध्यक्ष हैं। इसकी स्थापना साथी नोबेल पुरस्कार विजेता शिरीन एबादी ने की थी। उनके पति बच्चों सहित निर्वासन में रहते हैं।
नरगिस मोहम्मदी को ईरान की इस्लामी शासन की पुलिस ने 13 बार गिरफ्तार किया। उन्हें पाँच बार दोषी ठहराया गया और कुल 31 साल जेल की सजा सुनाई गई। वह फिलहाल कथित प्रोपेगेंडा फैलाने के आरोप में जेल में हैं। बीते साल उन्होंने महसा अमिनी को लेकर भी विरोध जताया।
तेहरान के एविन जेल से एक पत्र में नरगिस ने बताया कि कैसे देश भर में चल रहे सरकार विरोधी प्रदर्शनों में हिरासत में ली गई महिलाओं का यौन शोषण किया जा रहा था। दरअसल ईरान में सख्त ड्रेस कोड न मानने आरोप में गिरफ्तार की गई 22 साल महसा अमिनी की सितंबर 2022 में हिरासत में मौत के बाद वहाँ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था।