भारत के मंदिरों की विशेषता है उनकी संरचना और वास्तुकला। कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी वास्तुकला, विज्ञान के उत्कृष्ट स्वरूप पर आधारित है और इन मंदिरों की इसी वास्तुकला के कारण यहाँ कई ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ होती हैं जो इन मंदिरों को सबसे अलग बना देती हैं और श्रद्धालुओं को एक दैवीय अनुभव प्रदान करती हैं। ऐसा ही एक मंदिर कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के गवीपुरम में है, जिसे गवी गंगाधरेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। पूरे वर्ष में मकर संक्रांति के दिन इस मंदिर में एक ऐसी प्राकृतिक घटना होती है जो किसी दैवीय चमत्कार से कम नहीं है।
मंदिर का इतिहास
बेंगलुरु का गवी गंगाधरेश्वर मंदिर एक पौराणिक स्थान है। यहाँ गौतम ऋषि ने कई दिनों तक भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी, जिसके कारण इस स्थान पर भगवान शिव का प्रादुर्भाव हुआ था। यही कारण है कि इस क्षेत्र को गौतम क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान पर भारद्वाज ऋषि ने भी तपस्या की थी और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
यह एक गुफा मंदिर है और इसकी गिनती भारतीय रॉक कट वास्तुशैली के सबसे शानदार मंदिरों में से होती है। बेंगलुरु के इस प्राचीनतम मंदिर का आधुनिक इतिहास 9वीं एवं 16वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। इसका निर्माण कैम्पे गौड़ा द्वारा 9वीं शताब्दी में कराया गया जबकि 16वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार बेंगलुरु के संस्थापक कैम्पे गौड़ा प्रथम द्वारा कराया गया था।
मंदिर की संरचना
गवी गंगाधरेश्वर मंदिर की विशेषता इसकी संरचना ही है। दरअसल यह मंदिर विज्ञान और धर्म का एक अनूठा संगम है। दक्षिण भारत के अन्य मंदिरों से अलग इस मंदिर की दक्षिण-पश्चिमी दिशा अर्थात नैऋत्य कोण की तरफ है। यह बताता है कि मंदिर का निर्माण करने वाले वास्तुविद नक्षत्र विज्ञान के बहुत बड़े ज्ञाता थे। मंदिर के आँगन में चार ऐसी संरचनाएँ हैं, जिनका निर्माण एक ही पत्थर से हुआ है। इनमें से दो संरचनाएँ (एक खंभे पर गोल डिस्क) सूर्यपाण एवं चन्द्रपाण कहलाती हैं। इसके अलावा एक डमरू और एक त्रिशूल भी एक ही पत्थर से बनाया गया है।
सूर्यपाण एवं चन्द्रपाण के बीच में एक ध्वज स्तंभ है और नंदी मंडप है, जिसमें भगवान शिव के वाहन नंदी विराजमान हैं। मंदिर का गर्भगृह एक गुफा में स्थित है, जहाँ तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों से नीचे उतरना पड़ता है। गर्भगृह मात्र 6 फुट ऊँचा है और यहीं स्थापित है, एक विशाल शिवलिंग। शिवलिंग के आसपास अन्य देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रतिमाएँ स्थापित हैं।
मकर संक्रांति का प्रसिद्ध त्यौहार
वैसे तो मकर संक्रांति हिन्दुओं के सबसे पवित्र और सकारात्मक त्यौहारों में से एक है। लेकिन गवी गंगाधरेश्वर मंदिर में इस त्यौहार का महत्व कहीं अधिक बढ़ जाता है और इस दिन होने वाली अद्भुत प्राकृतिक घटना को देखने के लिए न केवल भारत बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ धार्मिक आस्था में विश्वास करने वाले ही इस घटना का साक्षी बनना चाहते हैं बल्कि जिन्हें विज्ञान में रुचि है, वो भी इस मंदिर में मकर संक्रांति के उत्सव पर पहुँचते हैं।
दरअसल मकर संक्रांति के दिन सूर्य भगवान उत्तरायण होते हैं। ऐसे में इस दिन सूर्यास्त के समय मात्र 5-8 मिनटों के लिए ही सूर्य की किरणें गर्भगृह तक पहुँच कर शिवलिंग का अपनी स्वर्णिम लालिमा से अभिषेक करती हैं। घटना कुछ ऐसी होती है कि सूर्यास्त के ठीक पहले सूर्य की किरणें मंदिर के स्तंभों को छूते हुए, नंदी की दोनों सींगों के एकदम मध्य से एक चाप से गुजरते हुए गर्भगृह तक पहुँचती हैं और पूरा गर्भगृह स्वर्णिम किरणों से अलंकृत हो जाता है। इस घटना को देखने के लिए हर साल हजारों लोगों की भीड़ मंदिर में इकट्ठा होती है।
मंदिर के रहस्य
ऐसा नहीं है कि गवी गंगाधरेश्वर सिर्फ अपनी अद्वितीय संरचना के लिए जाना जाता है बल्कि मंदिर के विषय में कुछ चमत्कार भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि गंगाधरेश्वर पर अर्पित किया गया घी पुनः मक्खन में बदल जाता है जबकि ऐसा असंभव है क्योंकि मक्खन से घी बनता है और घी को मक्खन में नहीं बदला जा सकता है।
इसके अलावा कहा जाता है कि मंदिर के गर्भगृह में तीन सुरंगों के द्वार हैं जो शिवगंगा, सिद्धगंगा और वाराणसी के लिए जाती हैं। इस मंदिर और यहाँ स्थित सुरंगों के संबंध में कहा जाता है कि दो युवक किसी तरह से वाराणसी जाने वाली सुरंग में घुसने में कामयाब रहे थे लेकिन कभी वापस नहीं आए।
कैसे पहुँचें?
भारत के महानगरों में से एक बेंगलुरु यातायात के किसी भी साधन से अछूता नहीं है और न केवल भारत बल्कि दुनिया के किसी भी कोने से यहाँ पहुँचना बहुत आसान है। मंदिर से बेंगलुरु के कैम्पे गौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे की दूरी लगभग 38 किलोमीटर (किमी) है। बेंगलुरु कैंट से मंदिर की दूरी लगभग 8.8 किमी है। इसके अलावा कैम्पे गौड़ा मैजेस्टिक बस स्टैंड से मंदिर मात्र 4 किमी है।