चमत्कार कभी तर्कों और तथ्यों के मोहताज नहीं होते। जिनकी आस्था धर्म में होती है वो इसे स्वीकार कर लेते हैं और जिन्हें विज्ञान में भरोसा है वो कोई न कोई कारण ढूँढ ही लेते हैं, चमत्कारों को परिभाषित करने का। हालाँकि भारत के कई ऐसे मंदिर हैं, जिनके चमत्कार आज भी रहस्य ही बने हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में स्थित है, जहाँ अनंत काल से अग्नि की ज्वालाएँ प्रज्वलित हैं लेकिन इसके पीछे का कोई पुख्ता कारण किसी को ज्ञात नहीं है। इसी चमत्कार के कारण यह ज्वाला देवी जी मंदिर मुगल आक्रांताओं और अंग्रेजों की नजर में चढ़ा, जिन्होंने हिन्दू घृणा के चलते इन ज्वालाओं को बुझाने की बहुत कोशिश की लेकिन हर बार असफल रहे और हिन्दुओं की आस्था की यह ज्योति आज भी जल रही है।
ज्वाला जी का इतिहास
काँगड़ा जिले के ज्वालामुखी कस्बे में स्थित ज्वाला देवी जी मंदिर का इतिहास माता सती के अग्निदाह और भगवान शिव के क्रोध से जुड़ा हुआ है। अपने पिता महाराजा दक्ष के द्वारा जब भगवान शिव का अपमान किए जाने के बाद जब माता सती ने अग्निदाह कर लिया तब उनकी मृत देह को लेकर भगवान शिव क्रोध में आकर तांडव करने लगे। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता की मृत देह को कई भागों में विभक्त कर दिया था तब माता सती की जीभ इस स्थान पर गिरी थी। माना जाता है कि जीभ के साथ माता की दिव्य ज्योति भी इस स्थान पर गिरी, इसी कारण है कि यहाँ 9 ज्वालाएँ प्रकट हुईं, जो आज भी निरंतर प्रज्ज्वलित हैं।
इस मंदिर का वर्णन महाभारत समेत कई अन्य हिन्दू ग्रंथों में किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में कुल 9 ज्वालाएँ प्रज्वलित हैं, जिनमें से सबसे बड़ी ज्योति माँ ज्वाला देवी के नाम से जानी जाती हैं। इसके अलावा 8 अन्य ज्वालाएँ माँ अन्नपूर्णा, माँ विध्यवासिनी, माँ चण्डी देवी, माँ महालक्ष्मी, माँ हिंगलाज माता, माँ सरस्वती, माँ अम्बिका देवी एवं माँ अंजी देवी हैं।
माँ ज्वाला देवी के इस मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण राजा भूमिचंद के द्वारा कराया गया। इसके बाद 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने इस मंदिर का निर्माण कराया। माँ ज्वाला देवी लखनपाल, ठाकुर, गुजराल और भाटिया समुदाय की कुलदेवी मानी जाती हैं, ऐसे में इन सभी के द्वारा भी मंदिर में लगातार निर्माण कार्य कराए जाते रहे हैं।
चमत्कार को झुठलाने के प्रयास
यह हम सभी जानते हैं कि हजारों वर्षों से भारत विदेशी आक्रांताओं का गुलाम रहा, जिनके मन में हिन्दू धर्म के प्रति मात्र घृणा का भाव ही था। इसी भाव से ग्रसित होकर मुस्लिम आक्रांताओं ने हजारों हिन्दू मंदिरों को नुकसान पहुँचाने का कार्य किया। इसी क्रम में ये आक्रांता ज्वाला जी मंदिर भी पहुँचे। मुगल शासक अकबर तो अपनी सेना लेकर ज्वाला जी मंदिर पहुँचा, जिसने मंदिर में सहस्त्राब्दियों से प्रज्वलित इन ज्वालाओं को पानी डालकर बुझाने की कोशिश की। इसके अलावा इन ज्वालाओं को लोहे के तवे से भी ढका गया लेकिन ज्वाला के प्रभाव से तवे में भी छेद हो गया, अंततः उसे हार मान कर ज्वाला जी मंदिर से वापस लौटना पड़ा।
ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने भी उस ऊर्जा का पता लगाने का बहुत प्रयास किया जिसके कारण ये ज्वालाएँ कई वर्षों से लगातार प्रज्वलित हैं लेकिन वो भी असफल रहे। हालाँकि बाद में कई भू-गर्भ विशेषज्ञों ने भी जमीन के अंदर किसी ऊर्जा के भंडार की संभावना जताते रहे लेकिन वो भी कभी इसका पुख्ता प्रमाण नहीं दे सके। ऐसे ही कई प्रयास लगातार किए जाते रहे लेकिन विज्ञान के इस युग में हिन्दुओं की आस्था आज भी ज्वाला जी मंदिर में उसी प्रकार बनी हुई है, जैसे सदियों पहले हुआ करती थी।
कैसे पहुँचें?
गग्गल यहाँ का नजदीकी हवाईअड्डा है, जो ज्वाला जी मंदिर से 46 किलोमीटर (किमी) दूर है। इसके अलावा अमृतसर और चंडीगढ़ के हवाईअड्डे, ज्वाला जी मंदिर से क्रमशः 205 किमी और 195 किमी दूर हैं।
ज्वाला जी मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन कांगड़ा है, जो यहाँ से लगभग 31 किमी दूर है। इसके अलावा पर्यटकों की पसंदीदा जगह होने के कारण ज्वाला जी मंदिर तक पहुँचने के लिए शिमला, धर्मशाला और दूसरी अन्य जगहों से परिवहन के साधन आसानी से उपलब्ध हैं। यहाँ तक कि दिल्ली, लुधियाना, चंडीगढ़ और जम्मू जैसे शहरों से भी ज्वाला जी पहुँचने के लिए यातायात के साधन उपलब्ध हो जाते हैं।