माता सती द्वारा अग्निदाह करने के बाद जब भगवान शिव माता के पार्थिव देह को लेकर भयानक क्रोध में ‘तांडव’ नृत्य करने लगे, तब उनके क्रोध को शांत करने और ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह के कई टुकड़े कर दिए। माता सती के शरीर के अंग और उनके आभूषण भूमि पर जहाँ भी गिरे वहाँ स्थापित हुए शक्ति पीठ। तंत्र चूड़ामणि में इन शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है। देवी भागवत और देवीगीता में क्रमशः 108 एवं 72 शक्तिपीठों का वर्णन है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ हैं और माँ दुर्गा के भक्त, विद्वतजन और धर्मगुरु भी सामान्य तौर पर शक्तिपीठों की संख्या 51 ही मानते हैं।
मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित सतना जिले के मैहर में माता शारदा का प्रसिद्ध मंदिर है, जो इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है। मैहर एक प्रस्तावित जिला है। फिलहाल यह सतना का हिस्सा है। मैहर का माता शारदा का मंदिर विंध्य पर्वत श्रेणी के त्रिकूट पर्वत की चोटी पर स्थित है। यहाँ माता सती के गले का हार गिरा था इस कारण इस स्थान का नाम मैहर (माई का हार) पड़ा।
मंदिर का इतिहास और माता शारदाम्बिका
मैहर में माता शारदा के वर्तमान मंदिर की स्थापना सन् 502 में हुई थी। मैहर के इस पवित्र मंदिर में जगत माता शारदाम्बिका की उपासना की जाती है। इसे मध्य भारत का श्रृंगेरी मठ भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ विराजित माता शारदाम्बिका श्रृंगेरी की पूज्य देवी का ही रूप मानी जाती हैं। साथ ही श्रृंगेरी मठ की पूजा पद्धति के अनुसार ही यहाँ भी तीन प्रहर की पूजा होती है। स्थानीय विद्वानों और मंदिर से जुड़े लोगों का मानना है कि आदि शंकराचार्य ने मैहर में सबसे पहले माता शारदा की विशेष पूजा की थी।
माता शारदाम्बिका, महासरस्वती की अवतार स्वरूप हैं जो पृथ्वी पर सनातन धर्म की स्थापना में आदि शंकराचार्य की सहायता के लिए आई थीं। उत्तर भारत में जो लोग श्रृंगेरी मठ तक नहीं जा सकते उनके लिए मैहर का माता शारदा मंदिर ही महान तीर्थ है।
नवरात्रि है प्रमुख त्यौहार
वैसे तो यह स्थान सदैव ही श्रद्धालुओं से भरा रहता है, किन्तु विशेष पर्वों पर यहाँ भीड़ बढ़ जाती है। दो मुख्य नवरात्रि के अलावा गुप्त नवरात्रि को भी यहाँ का विशेष त्यौहार माना जाता है। नवरात्रि में मध्य-भारत के अलग-अलग स्थानों से लोग माता शारदाम्बिका के दर्शन के लिए मैहर आते हैं। नवरात्रि पर्व का प्रारम्भ महाअभिषेक से होता है। इसके बाद चार दिन तक लक्षार्चन एवं देवी माहात्म्य परायण होता है। अंत में नवमी के दिन शत चंडी यज्ञ एवं विद्यारंभ की पूजा होती है। इस दिन लोग अपनी संतान के विद्यारम्भ के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए मैहर आते हैं।
इन नौ दिनों के दौरान माता शारदाम्बिका की उपासना महाकाली, ब्राह्मी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, इन्द्राणी, चामुण्डेश्वरी एवं गजलक्ष्मी के रूप में होती है। मंदिर परिसर माता शारदाम्बिका के अतिरिक्त काल भैरव, बाल गणेश, हनुमान, ब्रह्मा आदि देवों की प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जिनकी उपासना का विशेष महत्व है।
माता शारदा के परम भक्त आल्हा द्वारा की जाती है पहली पूजा
आल्हा और ऊदल दो भाई थे जो चंदेल राजा परमाल के सेनापति थे। दोनों ही माता शारदा के अनन्य भक्त थे। कहा जाता है कि आल्हा ने लगभग 12 वर्ष की तपस्या की जिससे उन्हें माता शारदा के दर्शन प्राप्त हुए और अमरत्व का वरदान मिला। मैहर के मुख्य परिसर से लगभग 2 किमी की दूरी पर आल्हा का मंदिर, तालाब एवं अखाड़ा है। इसी अखाड़े में आल्हा और ऊदल कुश्ती लड़ा करते थे।
इस स्थान की विशेषता है कि आज भी यहाँ लगभग हजार वर्षों से आल्हा अपनी आराध्य देवी की उपासना करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में आते हैं। ऐसा कई बार हुआ है कि जब सुबह मंदिर के कपाट खोले गए हैं तब मंदिर के गर्भगृह में जल और ताजे पुष्प मिले। यह कई वर्षों से होता आया है और आल्हा द्वारा सबसे पहले पूजा किए जाने की बात पर न केवल श्रद्धालु बल्कि कई विद्वान भी यकीन करते हैं।
अब तो मुख्य मंदिर तक पहुंचने के लिए प्रशासन द्वारा रोप वे की व्यवस्था कर दी गई है किंतु अभी भी श्रद्धालु लगभग 1100 सीढ़ियाँ चढ़कर अपनी जगतमाता के दर्शन के लिए जाते हैं। कई श्रद्धालु तो सैकड़ों किमी पैदल चलकर और पेट के बल लेटकर माता के दर्शन के लिए पहुँचते हैं। यह मंदिर न केवल मध्य प्रदेश बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान के श्रद्धालुओं के बीच भी काफी प्रसिद्ध है।
कैसे पहुँचे?
मैहर के सबसे नजदीक खजुराहो हवाई अड्डा है जो मंदिर से लगभग 140 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा मैहर जबलपुर-सतना रेल खंड से जुड़ा हुआ है जहाँ रेलवे स्टेशन भी है और यहाँ से शारदा माता मंदिर की दूरी लगभग 6 किमी है। हालाँकि मैहर पहुँचने के लिए सतना मुख्य रेलवे स्टेशन माना जाता है, क्योंकि सतना जंक्शन पर लगभग सभी ट्रेनें रुकती हैं। सतना जंक्शन से मैहर स्थित मंदिर की दूरी 43 किमी है। मैहर सड़क मार्ग से भी जबलपुर, खजुराहो, सतना और प्रयागराज से जुड़ा हुआ है।