भारत ऐसे महान मंदिरों की भूमि है, जो अनूठी वास्तुकला और पौराणिक इतिहास के लिए जाने जाते हैं। इन मंदिरों में ऐतिहासिक तथ्यों के अलावा कोई न कोई ऐसे रहस्य जरूर होते हैं, जो इन्हें बाकी मंदिरों से अलग बनाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में स्थित है, सुप्रसिद्ध श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर, जिसे लेपाक्षी मंदिर भी कहा जाता है। भगवान शिव, भगवान विष्णु और वीरभद्र को समर्पित लेपाक्षी मंदिर सदियों से ऐसे रहस्यों से परिपूर्ण रहा, जिन्हें आज भी सुलझाया नहीं जा सका है।
मंदिर का इतिहास
मंदिर के निर्माण के बारे में दो मान्यताएँ हैं। पहली मान्यता यह है कि मंदिर का निर्माण अगस्त्य ऋषि ने करवाया था और मंदिर का इतिहास भी रामयणकालीन है। कहा जाता है कि जब लंका नरेश रावण, माता सीता का अपहरण करके ले जा रहा था, तब पक्षीराज जटायु ने माता सीता की रक्षा करने के लिए इसी स्थान पर युद्ध किया था। रावण के प्रहार से जटायु घायल होकर यहीं गिरे थे और बाद में माता सीता की खोज में आए श्री राम और अनुज लक्ष्मण से इसी स्थान पर मिले। यहाँ भगवान राम ने करुणा भाव से जटायु को अपने गले से लगा लिया था। उसी समय से इस स्थान के नाम ‘लेपाक्षी’ का प्रादुर्भाव हुआ।
हालाँकि वर्तमान दृश्य मंदिर के निर्माण के बारे में प्रारम्भिक प्रमाण सन् 1533 के दौरान विजयनगर साम्राज्य से संबंधित हैं। मंदिर में स्थित शिलालेख से यह जानकारी मिलती है कि मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के राजा अच्युत देवराय के अधिकारियों विरूपन्ना और विरन्ना ने करवाया था। कूर्मसेलम पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य की मुराल वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है।
मंदिर की संरचना
लेपाक्षी का यह वीरभद्र स्वामी मंदिर दो बाड़ों के अंदर स्थित है। पहले बाड़े में प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं। मुख्य द्वार पर एक शानदार गोपुरम का निर्माण किया गया है। उत्तरमुखी मुख्य मंदिर दूसरे बाड़े के केंद्र में स्थित है। मंदिर में गर्भगृह, अंतराल, प्रदक्षिणा मार्ग, मुखमंडप और कई स्तंभों वाला एक बरामदा है। मुखमंडप के समकोण पर एक पूर्व मुखी भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर है। भगवान विष्णु के मंदिर के ठीक सामने भगवान शिव को समर्पित एक दूसरा मंदिर है, जिन्हें पाप विनाशेश्वर के नाम से जाना जाता है। इनके साथ ही एक तीसरा मंदिर भी है, जो पार्वती तीर्थ कहलाता है।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान वीरभद्र विराजमान हैं। वीरभद्र, भगवान शिव का क्रोधी स्वरूप माने जाते हैं, जो राजा दक्ष के यज्ञ के समय माता सती द्वारा आत्मदाह किए जाने के बाद अवतरित हुए थे। गर्भगृह और अंतराल से जुड़े हुए तीन तीर्थ हैं, जो रामलिंग तीर्थ, भद्रकाली तीर्थ और हनुमलिंग तीर्थ कहे जाते हैं और तीनों ही पूर्वमुखी हैं। इसके अलावा मुख मंडप के उत्तरी भाग में नवग्रहों को समर्पित वेदी भी स्थित है।
मंदिर का मुख्य आकर्षण मंदिर का महामंडप है। यह महामंडप कई स्तंभों से मिलकर बना हुआ है, जिसमें मानव आकार के तुंबुरा, ब्रह्मा, दत्तात्रेय, नारद, रंभा, पद्मिनी और नटराज की मूर्तियाँ उत्कीर्णित की गई हैं। मंदिर के महामंडप और मुखमंडप में बनाई गई पेंटिंग विजयनगर साम्राज्य की मुराल वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मानी जाती हैं।
मंदिर के रहस्य
दरअसल अपनी वास्तुकला और पौराणिक इतिहास के अलावा लेपाक्षी का यह मंदिर अपने उस एक स्तंभ के लिए जाना जाता है, जो जमीन से आधा इंच ऊपर है, अर्थात हवा में लटका हुआ है। अंग्रेजों के समय में भी कई बार इस मंदिर में स्थित इस ‘हैंगिंग पिलर’ का रहस्य जानने का प्रयत्न किया गया। अंग्रेज अधिकारियों ने इस स्तंभ को उसकी जगह से हटाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। पहले तो ऐसा लगा कि इस स्तंभ का मंदिर की इमारत में कोई योगदान नहीं है लेकिन जब स्तंभ को हटाने का प्रयास किया गया तब मंदिर के दूसरे हिस्सों में भी विचलन देखने को मिला।
इसके अलावा लेपाक्षी के इस मंदिर में एक पैर का निशान भी स्थित है, जो त्रेतायुग का माना जाता है। कई मान्यताओं के अनुसार यह पैर का निशान भगवान राम का है जबकि कई लोगों का यह भी मानना है कि यह पैर का निशान माता सीता का है।
कैसे पहुँचें?
यह मंदिर लेपाक्षी गाँव में स्थित है, जो आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले का एक छोटा सा गाँव है। यहाँ से नजदीकी हवाईअड्डा बेंगलुरु में स्थित है, जो लगभग 120 किमी की दूरी पर है।
लेपाक्षी मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन हिंदूपुर में स्थित है, जिसकी दूरी मंदिर से लगभग 14 किमी है। इसके अलावा लेपाक्षी अनंतपुर, हिंदूपुर और बेंगलुरु से सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। आंध्र प्रदेश के कई शहरों से लेपाक्षी के लिए परिवहन के साधन आसानी से उपलब्ध हैं।