जब भी मंदिरों की बात होती है तो अक्सर हम दक्षिण भारत के मंदिरों की भव्यता एवं वास्तुकला की बात करते हैं। लेकिन भारत के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ स्थित मंदिरों का महत्व उस स्थान में निवास करने वाले हिंदुओं के लिए बहुत ज्यादा है। इनमें से कई मंदिर तो ऐसे हैं जिनकी जानकारी देश के अधिकांश लोगों को नहीं होती है। ऐसा ही एक मंदिर मेघालय के पश्चिम जयंतिया हिल्स जिले में स्थित है। मेघालय का यह मंदिर नर्तियांग दुर्गा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। जयंतिया पहाड़ी के हिन्दू इस मंदिर को माँ दुर्गा का स्थायी निवास मानते हैं।
इतिहास
यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है अतः इस मंदिर का इतिहास भी युगों पहले राजा दक्ष के यज्ञ से जुड़ा हुआ है। जब राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान हुआ तो माता सती यज्ञ कुंड में प्रवेश कर गईं और अपने प्राण त्याग दिए। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने माता सती की मृत देह को लेकर भयानक तांडव करना शुरू कर दिया। उन्हें शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की मृत देह को की भागों में विभक्त कर दिया। इस दौरान माता सती की बाईं जंघा जयंतिया पहाड़ी के नर्तियांग में गिरी थी, अतः यहाँ शक्ति पीठ स्थापित हुआ।
नर्तियांग के इस दुर्गा मंदिर में माँ दुर्गा जयंतेश्वरी के नाम से जानी जाती हैं। मंदिर की स्थापना के विषय में उपलब्ध जानकारी के अनुसार इसकी स्थापना लगभग 600 वर्ष पूर्व हुई थी। उस समय जयंतिया साम्राज्य के शासक राजा धन मानिक हुआ करते थे। उन्होंने नर्तियांग को जयंतिया शासनकाल की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। कहा जाता है कि एक रात राजा को स्वप्न हुआ। इस स्वप्न में स्वयं माँ दुर्गा ने राजा को नर्तियांग क्षेत्र के महत्व के बारे में बताया और कहा कि राजा इस क्षेत्र में एक मंदिर का निर्माण करें। माँ दुर्गा की आज्ञा पाकर राजा ने नर्तियांग में माँ दुर्गा के मंदिर का निर्माण कराया जो जयंतेश्वरी मंदिर के नाम से जाना गया।
परंपरा
जहाँ भी शक्ति पीठ स्थापित हैं वहाँ माता शक्ति के साथ पुरुष रूप में कालभैरव भी विराजमान हैं। नर्तियांग दुर्गा मंदिर में भी माँ दुर्गा के साथ कालभैरव उपस्थित हैं। मंदिर में माता शक्ति को जहाँ जयंती के नाम से नहीं जाना जाता है वहीं कालभैरव भी कामदीश्वर के रूप में पूजे जाते हैं। यह मंदिर मेघालय के हिन्दू जनजाति समुदाय के लिए अत्यंत महत्व का है क्योंकि यह मंदिर न केवल उनके लिए एक देव स्थान है, बल्कि यह उनकी संस्कृति, स्थानीय पहचान और रीति-रिवाजों का प्रतीक भी है।
नर्तियांग दुर्गा मंदिर में मनाए जाने वाले उत्सव भारत के दूसरे हिस्सों में मनाए जाने वाले दुर्गा मंदिरों से कहीं अलग हैं। मंदिर में दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान केले के पेड़ को सजाया जाता है और उसी की पूजा माँ दुर्गा के रूप में की जाती है। 4 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार के अंत में इस केले के पेड़ को मेघालय की मिंट्डू नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसके अलावा इस अवसर पर माँ दुर्गा को गन सैल्यूट भी दिया जाता है।
कैसे पहुँचे?
चूँकि मेघालय का पश्चिम जयंतिया हिल्स जिला एक लैंडलॉक स्थान है अतः यहाँ रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा मौजूद नहीं है। हालाँकि मेघालय की राजधानी शिलांग में हवाई अड्डा स्थित है जो राजधानी क्षेत्र से 30 किमी की दूरी पर उमरोई में स्थित है। नर्तियांग स्थित जयंती शक्तिपीठ से उमरोई स्थित हवाई अड्डे की दूरी लगभग 67 किमी है। यहाँ से कोलकाता और गुवाहाटी के लिए हवाई सेवा उपलब्ध है। इसके अलावा मेघालय के मेंदीपाथर में रेलवे स्टेशन स्थित है जहाँ से गुवाहाटी के लिए ट्रेन उपलब्ध है। इन सभी स्थानों से सड़क मार्ग का उपयोग करके नर्तियांग पहुँचा जा सकता है।