ऑपइंडिया की मंदिरों की श्रृंखला में हम आज आपको रामायण काल से स्थापित एक ऐसे दिव्य स्थान ले चलते हैं, जो भगवान शिव को समर्पित है और तीन ओर से अरब सागर से घिरा हुआ है। हिंदुओं के इस दिव्य स्थान की विशेषता है कि यहाँ स्थापित हैं भगवान शिव का ‘आत्मलिंग’ और मंदिर परिसर में ही स्थित है लगभग 250 फुट का गोपुरम, जो विश्व का सबसे ऊँचा गोपुरम है। इसके अलावा यहाँ भगवान शिव की एक विशालकाय 123 फुट ऊँची प्रतिमा भी बनाई गई है। तो आइए आपको बताते हैं उस प्राचीन मंदिर के बारे में, जिसे हैदर अली ने भारी नुकसान पहुँचाया था लेकिन बाद में एक स्थानीय व्यापारी ने मंदिर को प्रदान किया वर्तमान भव्य स्वरूप।
रामायण काल से जुड़ा हुआ है इतिहास
शिव पुराण में भगवान शिव के आत्मलिंग के बारे में बताया गया है। रावण ने अमरता का वरदान प्राप्त करने और महा-शक्तिशाली बनने के लिए भगवान शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न किया और उनसे आत्मलिंग प्राप्त किया। इसके बाद जब रावण ने उस आत्मलिंग को लंका ले जाने का प्रयास किया तब भगवान शिव ने यह शर्त रखी कि जहाँ भी यह आत्मलिंग जमीन पर रख दिया जाएगा, यह वहीं स्थापित हो जाएगा और उसके बाद इसे कोई उठा नहीं पाएगा। दैवीय कारणों से हुआ भी ऐसा ही। भगवान शिव को मुरुदेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए यह मंदिर जहाँ स्थित है, उस कस्बे का नाम मुरुदेश्वर और मंदिर का नाम मुरुदेश्वर मंदिर पड़ गया।
मुरुदेश्वर मंदिर कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के भटकल तहसील में स्थित है। यह मंदिर कंडुका पहाड़ी पर स्थित है, जो तीन ओर से अरब सागर से घिरा हुआ है। इसके अलावा यह क्षेत्र पश्चिमी घाट की पहाड़ियों की गोद में स्थित है। यही कारण है कि यहाँ आध्यात्मिक दिव्यता के साथ प्राकृतिक सौन्दर्य भी देखने को मिलता है।
मंदिर की संरचना
मुरुदेश्वर मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है, यहाँ स्थित भगवान शिव की विशालकाय प्रतिमा और मंदिर परिसर में स्थित ‘राज गोपुरा’ जो कि विश्व का सबसे ऊँचा गोपुरा है। मंदिर के अंदर की ओर जाने वाली सीढ़ियों के प्रारंभ में ही क्रॉन्क्रीट के दो जीवंत हाथी बनाए गए हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का आत्मलिंग स्थापित है।
इसके अलावा भगवान शिव की 123 फुट ऊँची विशालकाय प्रतिमा भी यहाँ का प्रमुख आकर्षण है। भगवान शिव की इस प्रतिमा के चार हाथ हैं, जिन्हें सोने से सजाया गया है। किसी भी द्रविड़ वास्तुकला के मंदिर के समान ही इस मंदिर में भी गोपुरा का निर्माण कराया गया है, जो 20 मंजिला इमारत के बराबर है और जिसकी ऊँचाई लगभग 250 फुट है।
इस्लामी आक्रमण में हुए नुकसान के बाद व्यापारी ने दिया वर्तमान स्वरूप
भारत के कई अन्य मंदिरों की तरह यह मंदिर भी इस्लामी कट्टरपंथ की भेंट चढ़ा। मुरुदेश्वर मंदिर का प्राचीन स्वरूप इस्लामी शासक हैदर अली के द्वारा नष्ट कर दिया गया था। इसके बाद इस मंदिर का वर्तमान दृश्य स्वरूप एक स्थानीय व्यापारी द्वारा बनवाया गया।
Murudeshwara temple was destroyed in one of Hyder Ali’s raids.
— Bharadwaj (@BharadwajSpeaks) June 2, 2021
This Majestic 20 storied gopura was rebuilt not by any Government.
It was built by son of a hereditary temple administrator who could make it big in business pic.twitter.com/VWE3af6rQe
मंदिर की विशालता और भव्यता को देखकर ऐसा प्रतीत हो सकता है कि इस मंदिर का निर्माण सरकार द्वारा कराया गया है लेकिन ऐसा है नहीं। मंदिर में स्थित विशाल गोपुरा का जीर्णोद्धार और भगवान शिव की विशालकाय मूर्ति का निर्माण स्थानीय व्यापारी और समाजसेवी आरएन शेट्टी के द्वारा कराया गया। मूर्ति के निर्माण में ही लगभग 2 साल का समय लगा और लगभग 5 करोड़ रुपए की लागत आई। इस मूर्ति के शिल्पकार शिवमोग्गा के काशीनाथ हैं। भगवान शिव की मूर्ति को इस प्रकार बनाया गया है कि इस पर सीधे ही सूर्य की किरणें गिरती रहें और यह मूर्ति लगातार चमकती रहे।
कैसे पहुँचें?
मुरुदेश्वर पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी हवाईअड्डा मैंगलोर है, जो मंदिर से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा यह स्थान गोवा के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से लगभग 200 किमी की दूरी पर स्थित है। मुरुदेश्वर रेलवे स्टेशन, मैंगलोर और मुंबई से रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। भारत के लगभग सभी बड़े शहरों से मैंगलोर ट्रेन की सहायता से पहुँच सकते हैं। इसके अलावा मुरुदेश्वर राष्ट्रीय राजमार्ग 17 पर स्थित है जहाँ कोच्चि, मुंबई और मैंगलोर से बस एवं टैक्सी आदि माध्यमों से आसानी से पहुँचा जा सकता है। कर्नाटक के प्रमुख तीर्थ स्थल गोकर्ण की मुरुदेश्वर से दूरी लगभग 55 किमी है। गोकर्ण भी ट्रेन और सड़क मार्ग से देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।