आज हम जिसे गोवा के नाम से जानते हैं, उसका त्रेतायुगीन इतिहास हमारी वर्तमान परिभाषाओं से कहीं अधिक समृद्ध और सुसांस्कृतिक रहा है। पौराणिक समय से ही गोवा सनातन के प्रमुख स्थानों में से एक था। हालाँकि समय के साथ गोमंतक या गोपपुरी को गोवा कहा जाने लगा लेकिन आज भी यहाँ कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं, जो गोवा के सनातन इतिहास की गाथा कहते हैं। गोवा के इन्हीं मंदिरों में से एक है श्री शांतादुर्गा मंदिर, जो गोवा की राजधानी पणजी से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्री शांतादुर्गा, माता पार्वती का ही रूप हैं, जिन्होंने महादेव और भगवान विष्णु के बीच छिड़े भयानक युद्ध को शांत करने के लिए अवतार लिया था।
मंदिर का इतिहास
वैसे तो भगवान विष्णु और भोलेनाथ एक दूसरे को ही अपना ईश्वर मानते हैं लेकिन आदिकाल में एक बार दोनों के बीच भयानक युद्ध प्रारंभ हो गया। ब्रह्मांड के पालक और संहारक के बीच शुरू हुए इस भीषण युद्ध से सम्पूर्ण संसार पर अनचाहा संकट आ पड़ा। इस युद्ध को लगातार बढ़ता हुआ देख ब्रह्मा जी ने आदिमाया दुर्गा अथवा माता पार्वती से प्रार्थना की।
ब्रह्मा जी की प्रार्थना सुनकर सम्पूर्ण पृथ्वी को इस युद्ध के दुष्परिणाम से बचाने के लिए माता पार्वती ने शांतादुर्गा का अवतार लिया। श्री शांतादुर्गा ने महादेव को अपने एक हाथ में पकड़ लिया और भगवान विष्णु को दूसरे हाथ में। इस तरह युद्ध रुक गया और ब्रह्मांड की रक्षा हो सकी। माता पार्वती के इसी शांत स्वरूप को समर्पित है श्री शांतादुर्गा मंदिर।
यह मंदिर गोवा की राजधानी पणजी से 30 किलोमीटर दूर पोंडा तहसील के कवलम नामक गाँव में स्थित है। श्री शांतादुर्गा देवी का मूल स्थान पहले केलोशी गाँव था लेकिन जब गोवा में पुर्तगालियों के शासनकाल में मूल मंदिर को 1566 में नष्ट कर दिया गया तब इन्हें कवलम स्थानांतरित किया गया। हालाँकि श्री शांतादुर्गा देवी का यह मंदिर हिन्दू गौर सारस्वत ब्राह्मणों का निजी मंदिर है लेकिन इसे गोवा के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है।
इस मंदिर का प्राचीनकाल से ही अस्तित्व रहा लेकिन वर्तमान दृश्य मंदिर की स्थापना सन् 1713 से सन् 1738 के दौरान सतारा के मराठा शासक छत्रपति साहू जी महाराज द्वारा की गई। साहू जी महाराज, मराठा गौरव और माँ दुर्गा के अनन्य भक्त छत्रपति शिवाजी महाराज के पोते थे।
मंदिर की संरचना और मुख्य देवी
श्री शांतादुर्गा मंदिर का सम्पूर्ण परिसर पश्चिमी घाट की पर्वत श्रृंखलाओं की तलहटी में स्थित है। इस परिसर में एक मुख्य मंदिर के साथ तीन अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर की छत का निर्माण पिरामिड आकार में किया गया है। इसके अलावा मंदिर के स्तम्भ और फर्श के निर्माण में कश्मीरी पत्थरों का उपयोग किया गया है।
मंदिर परिसर में मुख्य गर्भगृह के अतिरिक्त जल कुंड, दीपस्तंभ और अग्रशाला भी मौजूद हैं। मंदिर के शिखर और सभामंडप भी इसका मुख्य आकर्षण है। मंदिर में एक स्वर्ण पालकी भी है, जिसे त्यौहारों के दौरान मंदिर के देवी-देवताओं की शोभायात्रा के लिए उपयोग में लाया जाता है।
मंदिर के गर्भगृह में श्री शांतादुर्गा की एक महमोहक मूर्ति स्थापित की गई है। हालाँकि देवी की मूल प्रतिमा को 1898 में पठान चुरा कर ले गए थे। इसके बाद श्री लक्ष्मण कृष्णाजी गायतोंडे के द्वारा बनाई गई प्रतिमा 19 मार्च 1902 को मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की गई।
गर्भगृह में स्थापित देवी शांतादुर्गा की प्रतिमा के अलावा महादेव और भगवान विष्णु की दो छोटी प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं। देवी शांतादुर्गा ने अपने दोनों हाथों में दो साँप पकड़ रखे हैं, जो भगवान विष्णु और महादेव के प्रतीक स्वरूप माने जाते हैं। इसके अलावा गर्भगृह में देवी की प्रतिमा के अतिरिक्त एक शिवलिंग भी स्थापित है।
कैसे पहुँचें?
श्री शांतादुर्गा मंदिर का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट गोवा का डाबोलिम अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा है, जो यहाँ से लगभग 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाईअड्डे से मंदिर तक पहुँचने के लिए कई स्थानीय साधन उपलब्ध हैं। मंदिर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन वास्को डी गामा रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है।
सड़क मार्ग से भी श्री शांतादुर्गा मंदिर पहुँचा जा सकता है। पणजी का मुख्य बस अड्डा मंदिर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है, जहाँ से न केवल गोवा के अन्य शहरों बल्कि कर्नाटक, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के लिए परिवहन के साधन आसानी से उपलब्ध रहते हैं।