छत्तीसगढ़ राज्य हमेशा से ही अपनी जनजातीय संस्कृति के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन राज्य में कई ऐसे स्थान हैं जो आज भी मुख्यधारा से कहीं दूर हैं। ऐसा ही एक स्थान है महासमुंद जिले में स्थित सिरपुर, जिसे प्राचीनकाल में श्रीपुर कहा जाता था। पौराणिक भूमि श्रीपुर में कई ऐसे देवस्थानों के अंश मिलते हैं जो कई सदियों पुराने माने जाते हैं। इन्हीं देवस्थानों में से एक है, सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर।
इतिहास में दर्ज कई विनाशकारी आपदाओं को झेलने वाला यह मंदिर भारत का पहला लाल ईंटों से बना मंदिर है। साथ ही प्रेम की निशानी छत्तीसगढ़ के इस मंदिर को नारी के मौन प्रेम का साक्षी माना जाता है।
मंदिर का इतिहास एवं संरचना
सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर का निर्माण सन् 525 से 540 के बीच हुआ। सिरपुर (श्रीपुर) में शैव राजाओं का शासन हुआ करता था। इन्हीं शैव राजाओं में एक थे सोमवंशी राजा हर्षगुप्त। हर्षगुप्त की पत्नी रानी वासटादेवी, वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखती थीं, जो मगध नरेश सूर्यवर्मा की बेटी थीं। राजा हर्षगुप्त की मृत्यु के बाद ही रानी ने उनकी याद में इस मंदिर का निर्माण कराया था। यही कारण है कि लक्ष्मण मंदिर को एक हिन्दू मंदिर के साथ नारी के मौन प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।
नागर शैली में बनाया गया यह मंदिर भारत का पहला ऐसा मंदिर माना जाता है, जिसका निर्माण लाल ईंटों से हुआ था। लक्ष्मण मंदिर की विशेषता है कि इस मंदिर में ईंटों पर नक्काशी करके कलाकृतियाँ निर्मित की गई हैं, जो अत्यंत सुन्दर हैं क्योंकि अक्सर पत्थर पर ही ऐसी सुन्दर नक्काशी की जाती है। गर्भगृह, अंतराल और मंडप, मंदिर की संरचना के मुख्य अंग हैं। साथ ही मंदिर का तोरण भी उसकी प्रमुख विशेषता है।
मंदिर के तोरण के ऊपर शेषशैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की अद्भुत प्रतिमा है। इस प्रतिमा की नाभि से ब्रह्मा जी के उद्भव को दिखाया गया है और साथ ही भगवान विष्णु के चरणों में माता लक्ष्मी विराजमान हैं। इसके साथ ही मंदिर में भगवान विष्णु के दशावतारों को चित्रित किया गया है। हालाँकि यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है लेकिन यहाँ गर्भगृह में लक्ष्मण जी की प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा 5 फन वाले शेषनाग पर आसीन है।
विनाशकारी आपदाओं को झेलने वाला प्रेम का प्रतीक
अक्सर हमें प्रेम के प्रतीक में आगरा के ताजमहल के बारे में ही बताया गया लेकिन एक नारी और पुरुष के वास्तविक प्रेम के प्रतीक सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर को हमारी जानकारी से हमेशा दूर रखा गया क्योंकि यह एक हिन्दू मंदिर था। एक रानी का अपने राजा के प्रति प्रेम इतना प्रगाढ़ था कि उन्होंने एक ऐसे मंदिर का निर्माण कराया, जो कई आपदाओं को झेलने के बाद भी आज उसी स्वरूप में है, जैसे आज से 1,500 वर्ष पहले था।
ऐतिहासिक जानकारियों के अनुसार 12वीं शताब्दी में सिरपुर में आए विनाशकारी भूकंप ने तत्कालीन श्रीपुर का पूरा वैभव छीन लिया था। इस भूकंप में पूरा श्रीपुर नष्ट हो गया था लेकिन यह लक्ष्मण मंदिर अप्रभावित रहा। उसके बाद 14वीं-15वीं शताब्दी के दौरान महानदी की भयानक बाढ़ ने सिरपुर में तबाही मचा दी थी। इन दोनों विनाशकारी आपदाओं के चलते सिरपुर के अनेकों मंदिर और धर्मस्थल तबाह हो गए लेकिन एक पत्नी के निश्छल प्रेम का यह प्रतीक बिना किसी नुकसान के सदियों से भक्ति और श्रद्धा की कहानी कहता आ रहा है।
कैसे पहुँचें?
सिरपुर स्थित लक्ष्मण मंदिर से महासमुंद जिला मुख्यालय की दूरी लगभग 38 किलोमीटर (किमी) है। यहाँ का नजदीकी हवाईअड्डा रायपुर में स्थित है, जो मंदिर से 75 किमी की दूरी पर है।
महासमुंद रेलवे स्टेशन, मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन है, जिसकी दूरी लगभग 40 किमी है। रायपुर जंक्शन से मंदिर की दूरी लगभग 83 किमी है। इसके अलावा लक्ष्मण मंदिर स्टेट हाइवे 9 पर स्थित है, जिसके माध्यम से यहाँ राज्य के विभिन्न शहरों से पहुँचा जा सकता है।