आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में स्थित है श्री यागंती उमा महेश्वर मंदिर, जो कई रहस्यों से परिपूर्ण है। भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप को समर्पित यह एक ऐसा पुरातन मंदिर है, जहाँ भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में नहीं बल्कि पत्थर से निर्मित प्रतिमा के रूप में होती है। ऐसी मान्यता है कि देवतुल्य ऋषि अगस्त्य के द्वारा निर्मित इस मंदिर में स्थापित नंदी की प्रतिमा लगातार बढ़ती जा रही है और इसके कारण मंदिर के कई स्तंभ भी हटाने पड़े।
मंदिर का प्राचीन इतिहास
महर्षि अगस्त्य उनमें से एक हैं, जिनकी आराधना भगवान श्री राम ने भी की है। कुरनूल में स्थित श्री यागंती उमा महेश्वर मंदिर की स्थापना अगस्त्य ऋषि ने ही की। दरअसल अगस्त्य ऋषि पहले इस स्थान पर भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर की स्थापना करना चाहते थे लेकिन उनकी प्रतिमा खंडित हो जाने के कारण यहाँ उनकी स्थापना नहीं हो सकी। इसके बाद अगस्त्य ऋषि ने भगवान शिव के आशीर्वाद से ही उनके अर्धनारीश्वर स्वरूप को समर्पित इस मंदिर की स्थापना की। इसके साथ ही प्रत्येक शिव मंदिर की तरह ही इस मंदिर में भी उनके प्रिय नंदी की प्रतिमा स्थापित की गई। वर्तमान दृश्य मंदिर की स्थापना 15वीं शताब्दी के दौरान विजयनगर साम्राज्य के संगम वंश के राजा हरिहर-बुक्का के द्वारा की गई। इस मंदिर में पल्लव, चोल, चालुक्य और विजयनगर साम्राज्य की परंपरा देखने को मिलती है।
भारत भर में स्थित शिव मंदिरों में भगवान शिव, शिवलिंग स्वरूप में पूजे जाते हैं लेकिन श्री यागंती उमा महेश्वर मंदिर में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप को पूजा जाता है। यहाँ स्थित भगवान शिव की अर्धनारीश्वर प्रतिमा एक ही पत्थर को तराश कर बनाई गई है। इसके अलावा मंदिर के पास दो गुफाएँ हैं। एक गुफा अगस्त्य ऋषि को समर्पित है, जहाँ उन्होंने भगवान शिव की आराधना की थी। दूसरी गुफा में भगवान वेंकटेश्वर की वही पहली प्रतिमा स्थापित है, जिसे अगस्त्य ऋषि यहाँ स्थापित करना चाहते थे। कहा जाता है कि जब भक्त तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन नहीं कर पाएँगे, तब श्री यागंती उमा महेश्वर मंदिर के पास स्थित गुफा में विराजमान भगवान वेंकटेश्वर ही कलियुग में भक्तों का कल्याण करेंगे।
मंदिर से जुड़े कुछ रहस्य
श्री यागंती उमा महेश्वर मंदिर अपने कुछ ऐसे रहस्यों के लिए जाना जाता है, जो आज भी अनसुलझे हैं। दरअसल इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ स्थापित नंदी की प्रतिमा अपने लगातार बढ़ते हुए आकार के कारण जानी जाती है। कहा जाता है कि मंदिर में स्थापित नंदी की मूल प्रतिमा काफी छोटी थी लेकिन उसका आकार लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके कारण नंदी की प्रतिमा के आसपास के एक या दो स्तंभ भी हटाए गए हैं। पुरातत्व विभाग यह मानता है कि संभवतः नंदी की प्रतिमा का निर्माण एक ऐसे पत्थर से किया गया है, जिसकी प्रवृत्ति विस्तार करने की होती है।
इसके अलावा मंदिर में कौवों का दिखाई न देना भी अपने आप में एक रहस्य है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार अगस्त्य ऋषि जब अपनी तपस्या कर रहे थे, तब कौवों द्वारा उनकी तपस्या में लगातार विघ्न उत्पन्न किया गया। इसके कारण अगस्त्य ऋषि ने कौवों को श्राप दे दिया, जिसके कारण इस स्थान से कौवे गायब हो गए।
मंदिर परिसर में स्थित एक पवित्र जल कुंड है जिसे पुष्करिणी कहा जाता है। पुष्करिणी कुंड में जल नंदी की एक छोटी सी प्रतिमा से निकलता है। इसी कुंड में स्नान करने के बाद भक्तगण भगवान शिव के दर्शन करते हैं। साल के 12 महीने इस कुंड में जल भरा रहता है, अर्थात इसे सूखा हुआ कभी नहीं देखा गया। हालाँकि यह भी एक रहस्य है कि इस छोटे से जल कुंड में जल कहाँ से आता है। इस कुंड के जल स्रोत का पता आज तक कोई भी नहीं लगा पाया।
कैसे पहुँचें?
श्री यागंती उमा महेश्वर मंदिर से कुरनूल की दूरी लगभग 84 किमी है। मंदिर का नजदीकी हवाईअड्डा कुरनूल का ही नरसिम्हा रेड्डी एयरपोर्ट है, जो मंदिर से लगभग 63 किलोमीटर (किमी) की दूरी पर है।
कुरनूल रेलवे स्टेशन, बेंगलुरु-हैदराबाद रेल लाइन पर स्थित है। कुरनूल सिटी रेलवे स्टेशन A-कैटेगरी स्टेशन माना जाता है, जो दक्षिण भारत के प्रमुख बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। श्री यागंती उमा महेश्वर मंदिर से कुरनूल स्टेशन की दूरी लगभग 85 किमी है।
इसके अलावा सड़क मार्ग से भी कुरनूल दक्षिण भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। कुरनूल, राष्ट्रीय राजमार्ग 40, 44 और 340C पर स्थित है, जहाँ से बेंगलुरु, हैदराबाद, श्रीशैलम और चित्तूर जैसे शहरों के लिए परिवहन की बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध हैं।