प्रसिद्ध गीतकार और शायर मनोज मुंतशिर ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना नायक माना है। ‘औरत पर हाथ डालने वाले का हाथ नहीं काटना चाहिए, काटना चाहिए उसका गला’ जैसे फेमस डॉयलॉग के रचनाकार मुंतशिर कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समाज के सबसे निचले तबके से आते हैं और देश के सबसे ऊँचे पद पर पहुँचते हैं। वो वहाँ पर बार-बार अपनी उपयोगिता को भी साबित करते हैं। वो कहते हैं कि 2014 से पहले तक लोग इंडिया में रहते थे, लेकिन अब वो भारत में रहते हैं। उन्होंने कहा कि यही है बदलाव।
दैनिक भास्कर को दिए एक्सक्लसिव इंटरव्यू में मनोज मुंतशिर ने कई ज्वलंत मुद्दों पर बात की। वो अकबर, हुमायूँ, बाबर, जहाँगीर और औरंगजेब को ग्लोरिफाइड डकैत बताते हैं। वो बड़ी ही शिद्दत से ये मानते हैं कि 2014 के बाद से ही भारत के भाग्य का उदय शुरू हुआ।
बातचीत के दौरान मुंतशिर कहते हैं कि कवि, गीतकार, शायर जन्मजात होतें हैं, लेकिन फिर भी इसके लिए एक ट्रिगर की जरूरत होती है। जब पहली बार मोहब्बत में दिल टूटता है, तो आप दर्द महसूस करते हैं। दर्द का गहरा रिश्ता कविता के साथ होता है।
वहीं इतिहास की जमीन पर लौटने सवाल पर मनोज मुंतशिर कहते हैं, “गीतकार को ही बदलना होगा। जो लिख, पढ़ और बोल सकते हैं वही चुप रह गए तो क्या होगा। मैं इसलिए जिंदा हूँ क्योंकि मैं बोल रहा हूँ, दुनिया किसी गूँगे की कहानी नहीं सुनती। पाठ्यपुस्तकों में जो भी पढ़ाय़ा गया वो एजेंडे के तहत था। मैंने इतिहास को बदलना नहीं चाहा, उसका दूसरा प्वाइंट सामने रखा है। मैं जिस चीज को बड़े ही गर्व से सीने से लगाकर घूमता था कि मैं सेक्युलर हूँ। बहुत दिनों के बाद पता चला कि मेरे साथ स्कैम हो गया है। सेक्युलर होना नागरिक का नहीं सरकार का काम है।”
देश की कड़वी सच्चाई रखी सामने
मनोज मुंतशिर ने देश की कड़वी सच्चाई को सामने रखा और कहा कि इस देश में अगर कोई हिंदू धर्मांतरण कर मुस्लिम या ईसाई हो जाए तो सब ठीक है, लेकिन एक हिंदू, हिंदू हो जाए तो बवाल खड़ा हो जाता है। उन्होंने समाज के दोगलेपन पर अपने तर्कों से कुठाराघात किया कि भगत सिंह खुद को नास्तिक कहते थे, लेकिन पगड़ी के साथ उन्हें सभी स्वीकार करते हैं तो फिर जनेऊ के साथ चंद्रशेखर आजाद को क्यों नहीं? इससे कौन से एजेंडे को चोट पहुँचती है। उन्होंने कहा, “लगता है चाय से अधिक गर्म केतली है।”
द कश्मीर फाइल्स और लिबरलरिज्म पर बड़ा बयान
मनोज मुंतशिर ने कहा, “लोग डरे हुए थे, सभी ओर डर का माहौल था। 2014 के पहले हम इंडिया में जी रहे थे, लेकिन उसके बाद हम भारत में रह रहे हैं। वो कहते हैं कि 2014 के पहले फिल्म इंडस्ट्री लिबरलिज्म के सबसे घटिया स्वरूप में था। गीतकार मानते हैं कि जिसके घर में कोई न मरा हो वहीं लिबरल हो सकता है। संवेदन शून्य होना ही लिबरल होना है। पहले लोग इतने खौफजदा थे कि वो चीखते तक नहीं थे, लेकिन अब जब चीख रहे हैं तो उन्हें असहिष्णु कहा जा रहा है।” वहीं फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ बनाने के लिए मनोज मुंतशिर ने निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री को बहादुर करार दिया। उनके मुताबिक, विवेक अग्निहोत्री इस फिल्म को बनाने की कीमत चुका रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें इसकी भरपाई करनी पड़ेगी।
अमेठी से चुनाव लड़ने के सवाल पर उन्होंने सीधा जबाव तो नहीं दिया, लेकिन कहा कि मैं अमेठी का रहने वाला हूँ औऱ जब भी अमेठी बुलाएगी, जरूर आऊँगा।