भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में एक ऐसा निर्देशक हुआ है, जिसके फैन हॉलीवुड के बड़े-बड़े नाम भी रहे हैं। बंगाली फिल्मों में क्रांति लाने वाले सत्यजीत रे को ‘भारत रत्न’, दादा साहब फाल्के पुरस्कार और ऑस्कर – ये तीनों मिला। उनकी ही कहानियों पर आधारित नेटफ्लिक्स की एक वेब सीरीज आई है ‘Ray’, जिसमें 4 एपिसोड हैं। हर एपिसोड अलग-अलग छोटी कहानियों पर आधारित है। उनमें से एक एपिसोड का नाम है – Spotlight, जो इसी नाम की कहानी पर आधारित है।
‘Ray’ वेब सीरीज के बारे में बता दें कि इसके पहले एपिसोड का निर्देशन अभिषेक चौबे ने किया है, जबकि अगले दो का निर्देशन श्रीजीत मुखर्जी ने किया है। इस सीरीज के चौथे एपिसोड के डायरेक्टर वसन बाला हैं। आज हम मुख्यतः इसी एपिसोड के बारे में बात करने जा रहे हैं, क्योंकि सत्यजीत रे के नाम पर जो परोसा गया है, उसमें सत्यजीत रे की ही कहानी को बदल डाला गया है। बड़ी चालाकी से ये खेल किया गया है।
‘Spotlight’ वेब सीरीज में मुख्य अभिनेता हर्षवर्धन कपूर हैं, जो अनिल कपूर के बेटे हैं। बतौर अभिनेता उनका रिकॉर्ड कुछ खास नहीं है। रिकॉर्ड के खास होने या न होने की तो बात ही छोड़ दीजिए, उनका फ़िलहाल कोई रिकॉर्ड ही नहीं है। वहीं राधिका मदन को भी इसमें एक बड़ा किरदार दिया गया है, जिसके इर्द-गिर्द सारी कहानी घूमती है, भले ही वो फ्रेम में रहें या नहीं। कहानी कुछ खास नहीं है, इसीलिए इसकी चर्चा कर ही लेते हैं।
इसमें हर्षवर्धन कपूर ने विक्रम अरोड़ा उर्फ़ विक नाम के एक सुपरस्टार अभिनेता का किरदार निभाया है, जिसके लुक्स पर लोग फ़िदा होते हैं। लेकिन, जब वो फिल्म शूटिंग के लिए एक जगह जाते हैं तो उसी समय वहाँ ‘दीदी’ नाम की साध्वी भी पहुँच जाती है। अब लोग दीदी को उससे ज्यादा भाव देने लगते हैं। उसकी गर्लफ्रेंड तक ‘दीदी’ की फैन है। उसके फिल्म का निर्माता ‘दीदी’ का ‘चरण कमल रज जल’ लाने को बोलता है।
इस वेब सीरीज में ऐसा दिखाया गया है जैसे अगर कोई व्यक्ति अमीर हो जाए या फिर कुछ ज्यादा ‘कूल’ हो जाए, तो इसके लिए उसे साधु-संतों से घृणा करनी चाहिए। जिस तरह विक्रम बार-बार सबसे पूछता रहता है, “यार, तुम इन चोजों को मानते हो क्या?”, उससे स्पष्ट लगता है कि ये आध्यात्मिक क्रियाकलाप से दूर होने वाले लोग ही ‘कूल’ होते हैं और जो इन चीजों को मानते हैं, वो रूढ़िवादी और पुराने ख्यालों वाले हैं।
बता दें कि ये ‘दीदी’ कोई और नहीं, बल्कि एक साध्वी होती है। साध्वी, जो पालकी में चलती है और उसके आसपास कई लोग चलते हैं। वो जहाँ जाती है, वहाँ लोग उसके भक्त हो जाते हैं और लोग उसमें आस्था रखते हैं। उसका सबसे खास आदमी भगवा चोले में रहता है और अवैध ड्रग्स का धंधा चलाता है। ‘दीदी’ के इस प्रभाव को देख कर अभिनेता के भीतर असुरक्षा की भावना घर करने लगती है और वो परेशान रहने लगता है।
अंत में ‘दीदी’ से उसकी मुलाकात होती है। एक साध्वी को जानबूझ कर नहाते हुए चित्रित किया गया है। इसके बाद जब विक्रम उससे अकेले में मिलता है तो फिर उसे आधुनिक कपड़ों में दिखाया गया है। ऐसा नहीं है कि कोई साध्वी इस तरह के कपड़े नहीं पहन सकती, बल्कि असली बात ये है कि आखिर इसके पीछे की मंशा क्या है? ‘दीदी’ को ‘बिहारी टोन’ में बोलता हुआ दिखाया गया है, जो खुद अपने गाने ‘दीदी के दरबार में’ से नफरत करती है और उनके पाँव धो कर पीने वालों का मजाक बनाती हैं।
वहीं अब थोड़ा पीछे चलते हैं। इसके पिछले एपिसोड का नाम ‘बहुरुपिया’ है, जो सत्यजीत रे की ही कहानी ‘बहुरूपी’ पर आधारित है। इसमें एक फ़क़ीर को दिखाया गया है, जो एकदम सीधा-सादा और चमत्कारिक है। वो सब कुछ जानता है। उसका कहा हो जाता है। उससे कुछ छिप नहीं पाता। लोग उसका सम्मान करते हैं। एक ‘पीर बाबा’ का चित्रण काफी स्वच्छ तरीके से किया गया है, जैसे उससे बड़ा ज्ञानी कोई है ही नहीं।
वहीं इसके ठीक अगले एपिसोड में साध्वी का चित्रण देख लीजिए। अंत में वो अमेरिका भाग जाती है और कहती है कि वहाँ आश्रम खोलने का बड़ा ‘स्कोप’ है। आप बस ऊपर की तस्वीर देख कर बता दीजिए कि आपने भला किस साध्वी को इस तरह से देखा है? उस साध्वी को खुद फ़िल्मी गानों और उक्त अभिनेता का फैन दिखाया गया है। वो फ़िल्मी गाने गुनगुनाती है, लेकिन अकेले में। अपने भक्तों का ही मजाक उड़ाती हैं।
अब आते हैं असली बात पर। क्या जिस ‘स्पॉटलाइट’ कहानी से इस एपिसोड को बनाया गया है और जिन सत्यजीत रे के नाम पर बेचा जा रहा है, उससे इसकी कोई समानता है? इसका जवाब है – नहीं। दूर-दूर तक कहीं भी इस एपिसोड की कहानी सत्यजीत रे की लिखी कहानी से नहीं मिलती है। हाँ, उस कहानी है, छोटानागपुर जगह है और एक बूढ़ा आदमी है, लेकिन कहीं कोई भी साधु-संत नहीं है, खासकर ‘फ्रॉड’ तो नहीं।
सत्यजीत रे ने उस कहानी में खुद को नैरेटर की जगह पेश करते हुए लिखा है कि उनका पूरा परिवार छोटा नागपुर में छुट्टियाँ मनाने जाया करता था, जहाँ वो एक महीने रुकते थे। इसी दौरान वहाँ अंशुमान चटर्जी नामक एक बड़ा अभिनेता भी छुट्टियाँ मनाने आया रहता है, जिससे वो सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाता है और सभी लोग उसकी बातें करते हैं। कहानीकार का परिवार भी उससे मिलना चाहता है, क्योंकि कोलकाता में ये मुश्किल होगा।
इसी बीच कोई परिचित आकर एक ऐसे व्यक्ति बारे में जानकारी देता है, जो अपनी उम्र 126 साल बताता है। इससे अभिनेता को कम अटेंशन मिलने लगता है और लोग उससे ही मिलने जाने लगते हैं। नैरेटर का परिवार भी उससे मिलता है और साथ ही एक पत्रकार भी होता है। वो पत्रकार पूरी डिटेल्स व तस्वीरें लेकर प्रेस में भेजता है, जिसके बाद अख़बार और पत्रिकाओं में आकर्षण का केंद्र बन जाता है।
बाद में पता चलता है कि वो झूठ बोल रहा है और उसकी उम्र 80s में है। अब भला कहानी में किसी बुजुर्ग और एक अभिनेता को दिखाने से नेटफ्लिक्स को चैन कैसे मिलता? इसीलिए, उसने इसकी जगह एक साध्वी को दिखा दिया है और हिन्दू धर्म को बदनाम किया है। थोड़ी हिन्दूफोबिया घुसाई और उसे सत्यजीत रे के नाम पर परोस दिया। जबकि इसका उस कहानी से कोई लेना-देना नहीं है और ये एकदम अलग है।