अमिताभ बच्चन की ‘झुंड’ (Jhund) शुक्रवार (4 मार्च 2022) को रिलीज हो गई। इस स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म को नागराज मुंजले ने डायरेक्ट किया है। यह फिल्म एक रियल लाइफ हीरो के पर आधारित है। ये हैं- रिटायर्ड स्पोर्ट्स प्रोफेसर विजय बरसे (Vijay Barse)। 77 साल के बरसे ने अपनी जिदंगी झुग्गियों में रहने वाले बच्चों का जीवन सँवारने में लगा दिया।
36 साल बतौर स्पोर्ट्स प्रोफेसर नौकरी करने वाले बरसे का यह सफर 2001 में शुरू हुआ। वे आमिर खान के शो ‘सत्यमेव जयते’ के एक एपिसोड में भी नजर आए थे। इस शो में उन्होंने बताया था कि 2000 में नागपुर के हिसलोप कॉलेज में खेल शिक्षक के रूप में काम करते हुए उन्होंने एक बार बारिश में कुछ बच्चों को टूटी हुई बाल्टी को लात मारकर खेलते हुए देखा था। इसे देख उनके दिमाग में एक आइडिया आया और फिर उस आइडिया को जमीन पर उतारने में वे जुट गए।
बरसे के मुताबिक जब उन्होंने उन बच्चों को पहली बार फुटबॉल खेलने के लिए बुलाया तो वे असहज थे। उन्होंने मटमैले कपड़े पहने हुए थे। फिर उन्होंने खुशी-खुशी फुटबॉल ले लिया। इसके बाद उन्होंने अपने कुछ सहयोगियों के साथ एक टूर्नामेंट आयोजित करने की प्लानिंग की, जिसमें सिर्फ झुग्गी-झोपड़ी वाले बच्चे ही भाग ले सकते थे।
2001 में उन्होंने स्मल सॉकर की स्थापना की और नागपुर में एक टूर्नामेंट आयोजित किया। इस टूर्नामेंट में 128 टीमों ने भाग लिया था। इसके बाद उन्होंने इन बच्चों को एक खेल मैदान दिया और महसूस किया कि जब तक ये बच्चे मैदान में है तब तक वे दुनिया की बुराइयों से दूर रहेंगे। तब उन्होंने सोचा कि ये बच्चे राष्ट्र के भविष्य निर्माण में सक्रिय रूप से योगदान दे सकते हैं। एक टीचर के तौर पर वे और क्या दे सकते थे। इस तरह उन्होंने 2002 में एक झोपड़पट्टी फुटबॉल की जर्नी की शुरुआत की।
उनकी बनाई झोपड़पट्टी फुटबॉल की जर्नी बाद में स्लम सॉकर के नाम से फेमस हुई। उनके कॉलेज के एक साथी ने पूछा कि उन्होंने इस टीम का नाम ‘झोपड़पट्टी फुटबॉल’ क्यों रखा। इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा था, “मैं जानता था कि सभी खिलाड़ी झोपड़पट्टी के रहने वाले हैं और मुझे केवल उनके लिए काम करना है इसलिए मैंने यह नाम चुना।”
धीरे-धीरे ये फुटबॉल टीम आगे बढ़ने लगी। शहर और जिला स्तर पर खेलने लगी। 2003 में विजय बरसे लाइमलाइट में आए। उनके काम को बड़े लेवल पर देखा जाने लगा। स्लम सॉकर लीग राष्ट्रीय स्टर पर पहचानी जाने लगी। कई कोच और बच्चे इससे जुड़ना चाहते थे। शुरुआती दिनों में बरसे के पास कोई स्पॉन्सर नहीं था, जो उनके प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए फंड दे सके। इसी दौरान 2006 में जब अमेरिका में रहने वाले उनके बेटे ने एक अमेरिकी अखबार में पिता के बारे में एक लेख पढ़ा तो वो अपने पिता की मदद के लिए देश लौट आए।
2007 में बरसे ने एक इंटरव्यू में बताया था कि स्लम सॉकर का राष्ट्रीय टूर्नामेंट बड़े लेवल पर कवर किया गया था। फिर होमलेस वर्ल्डकप के डायरेक्टर एंडी हुक ने उन्हें केप टाउन बुलाया था। यहाँ वे साउथ अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला से मिले थे। उन्होंने कहा, “मुझे उस दिन मेरे काम के लिए सबसे बड़ी पहचान मिली, जब उन्होंने मुझ पर हाथ रखा और कहा- मेरे बेटे, तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो।”
2018 में इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “मैं एक खेल शिक्षक हूँ। लेकिन मैं फुटबॉल के विकास को बढ़ावा नहीं दे रहा हूँ। मैं फुटबॉल के जरिए विकास को बढ़ावा दे रहा हूँ।” 2012 में उन्हें सचिन तेंदुलकर ने रियल हीरो पुरस्कार से सम्मानित किया था। 2016 में स्लम सॉकर ने फीफा डायवर्सिटी समेत कई अवॉर्ड अपने नाम किया। 2019 में बरसे को नागभूषण पुरस्कार से नवाजा गया।
बरसे को रिटायरमेंट के बाद 18 लाख रुपए मिले थे। उन्होंने इस पैसे से नागपुर से लगभग 9 किमी दूर जमीन खरीदी और यहाँ पर एक फुटबॉल एकेडमी का निर्माण किया, ताकि वह बच्चे भी फुटबॉल खेल सकें जो इस सुविधा से वंचित हैं।
अब इसी पूरी जर्नी को नागराज मंजुले ने अपनी फिल्म में उकेरा है। विजय बिरसे ने ETimes से बातचीत के दौरान कहा, “फिल्म का ट्रेलर देखकर मैं थोड़ा प्रभावित हुआ था। फिल्म में भावनाओं को बखूबी दिखाया गया है। फिल्म में मेरे ही कुछ स्लम सॉकर स्टूडेंट्स को देखकर बहुत खुशी हुई। साथ ही नागपुर की संकरी गलियों को भी अच्छे से दिखाया गया है। मेरी यात्रा, जो काफी मुश्किलों और चुनौतियों से भरी थी, उसे बड़े पर्दे पर दिखाया जाएगा, जिसे दिखने के लिए मैं बहुत उत्साहित हूँ।”
हाल ही में फिल्म की एक विशेष स्क्रीनिंग आयोजित की गई थी। इस स्क्रीनिंग में आमिर खान भी शामिल हुए थे। अभिनेता का कहना है कि इस फिल्म ने अपनी शानदार प्रतिभा से उन्हें भावनात्मक रूप से प्रभावित कर दिया है। इस दौरान वह अपने आँसू रोक नहीं पाए। टी-सीरीज ने एक्टर का वीडियो शेयर किया था। जिसमें उन्हें आँसू पोंछते हुए देखा जा सकता है।
आमिर खान इस वीडियो में कहते हैं, “मेरे पास अल्फाज नहीं हैं। जिस तरह से आपने लड़के-लड़कियों के इमोशन को दिखाया है, वह शानदार है। जिस तरह से बच्चों ने काम किया, वह अविश्वसनीय है।” उन्होंने इसे अमिताभ बच्चन की ग्रेट फिल्मों से एक बताया है।