इतिहास गवाह है कि आक्रमणकारियों ने दिल्ली को कई बार तोड़ा, देशवासियों की भावनाओं और मान-सम्मान को अपने अभिमान और क्रूरता तले रौंदा। इन्हीं घटनाओं, क्रूरताओं और बर्बरताओं की निशानी आज भी नामों के रूप में हमें पल-पल डसती रहती हैं। मुगल शासकों ने भारत पर आक्रमण करने के बाद कई बार दिल्ली का नाम बदला। वहीं दिल्ली में बने छोटे बड़े गाँवों के नाम आज भी आक्रांताओं के नामों पर हैं।
दिल्ली को पहले ढिल्ली के नाम से बुलाया जाता था। फिर इसका नाम शाहजहाँनाबाद पड़ा। इसके बाद इसे इंद्रप्रस्थ के नाम से लोग जानने लगे। यहाँ के गाँव के नाम, हुमायूँ, तैमूर, औरंगजेब या फिर मोहम्मदपुर के नाम से होते थे। लेकिन सच तो यह है इनका नाम कुछ और था। कई अभिलेख, साक्ष्य मिले हैं, जिनसे यह पता चलता है कि इनके नाम पहले हिन्दूओं के भगवान के नाम पर थे। इस दिशा में काम कर रहे हैं लोगों का कहना है कि यह बदलाव हमारी संस्कृति और सभ्यता की वास्तविक पहचान का प्रतीक बनेंगे। उन नामों को तलाशना होगा जो इन आक्रमणकारियों से पहले थे, क्योंकि इतिहास के पन्नों में जिन नामों को पढ़ते हुए लोगों को घृणा होती है उन्हीं के नाम के गाँवों में रहने और सड़कों पर चलने को वे मजबूर होते हैं।
दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में करीब 365 गाँव ऐसे हैं, जिनमें अधिकतर के नामों में विदेशी आक्रमणकारियों की छाप मिलती है। पुरातत्व विभाग, दिल्ली के पूर्व निदेशक और यहाँ के 365 गाँवों पर अध्ययन करने वाले डॉ. धरमवीर शर्मा का कहना, ”बात सिर्फ दो गाँवों की नहीं है। दिल्ली में करीब 365 गाँव हैं, जिनमें से अधिकतर के नाम आक्रांताओं के नाम पर हैं।”
पुरातत्व विभाग को इससे जुड़े साक्ष्य भी मिले हैं। तेरहवीं शताब्दी में मिला सरवन अभिलेख इसकी पुष्टि करता है, जिसमें ‘इंद्रप्रस्थ मौजा हरियाणा लिखा’ हुआ है। दिल्ली ढिल्ली, ढिल्लू और ढिल्लिका होने से पहले पहले एक गाँव से विकसित हुई थी। इस गाँव का नाम किलोकड़ी था, जब यहाँ पर राजा ढिल्लू ने कील लगाई तो इसका नाम किलोकड़ी पड़ गया। इसी तरह से महरौली का नाम मिहिरावाली था जो आचार्य मिहिर के नाम पर रखा गया था। डॉ. धरमवीर का कहना है कि जो इतिहास पाँच सौ सालों में पढ़ाया गया है वह गाइड की कहानियों के अलावा कुछ नहीं है।
वहीं, पौराणिक इतिहासकार नीरा मिश्र का कहना है कि दिल्ली में गाँवों के नामों के साथ मुगलों के समय में बहुत खिलवाड़ हुआ है। पहले हौज खास और सिरी फोर्ट के इलाके का नाम शाहपुर जट था। इसी तरह मनीष कुमार गुप्ता बताते हैं कि पटपड़गंज का नाम मुगल शासन काल में साहिबगंज हुआ करता था, जो कि किसी मुगल बादशाह की प्रेमिका के नाम पर था।
आजकल मोहम्मदपुर गाँव का नाम बदलने की चर्चा जोरों पर है, जिसका प्राचीन नाम माधवपुर था। इतिहासकार मनीष कुमार गुप्ता बताते हैं कि पृथ्वीराज चौहान को हराकर जब मोहम्मद गौरी ने उत्तर क्षेत्र पर अपना कब्जा जमा लिया था, तब अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को उसने गवर्नर बना दिया था और खुद वापस गजनी लौट गया था। मोहम्मद गौरी की इच्छानुसार कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारतवर्ष में इस्लाम को फैलाने की कोशिशें शुरू कर दीं। इसके लिए उसने सबसे पहले स्थानों के नाम बदलने प्रारंभ किए। उसने माधवपुर गाँव का नाम बदलकर अपने मालिक यानी मोहम्मद गौरी के नाम पर मोहम्मदपुर कर दिया था, जिसे अभी तक इसी नाम से बुलाया जाता रहा है।
दक्षिणी दिल्ली के हुमायूँपुर गाँव को पहले हनुमानपुर के नाम से जाना जाता था। यह गाँव तकरीबन 350 साल पहले बसाया गया था। गाँव के बुजुर्गों का कहना है कि उस वक्त यहाँ फोगाट, महले, टोकस, गहलोत और गरसे गोत्र के लोग आए थे और गाँव की नींव रखी थी। यह असल में एक शिव और हनुमान का मंदिर था, जिसको तुगलक के समय में एक गुंबद का रूप देकर कोई गुमनाम सी कब्र बनाकर इसका इस्लामीकरण कर दिया गया।
आपको बता दें कि आक्रांताओं ने आखिरकार नाम क्यों बदले। दरअसल, विदेशी आक्रमणकारियों को अपनी जीत की निशानी के तौर पर गाँव, कस्बों और शहरों के नामों को बदलना शौक था। सेवानिवृत प्रोफेसर डीपी भारद्वाज कहते हैं कि लंबे समय तक उन्होंने यहाँ शासन किया और लोगों की मानसिकता बदली। हमें अपने देश के गौरव और स्वाभिमान के लिए कदम उठाने होंगे। ऐतिहासिक भूलों को सुधारना होगा। अगर डॉ. अब्दुल कलाम आजाद के नाम पर दिल्ली में सड़क बनती है तो किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वे हमारे प्रेरणास्नोत थे, लेकिन औरंगजेब के नाम सड़क होगी तो हमें ऐतराज होगा।