Sunday, November 17, 2024
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जब पाकिस्तान ने गुजरात के द्वारका को बनाना चाहा था निशाना, नष्ट करने के लिए भेजे 7 जहाजों का नौसैनिक बेड़ा

अपने परिवार को लिखे पत्र में, सार्जेंट रमेश मदान ने कहा, "द्वारका में लोगों की तुलना में अधिक गधे हैं और कोई भी गधा घायल नहीं हुआ है, तो लोगों के बारे में कोई क्या ही कह सकता है।"

7 सितंबर, 1965 वह तारीख है जब पाकिस्तानी सेना ने जम्मू-कश्मीर के भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर लिया था। भारतीय सेना भी पाकिस्तानी सेना को मुँहतोड़ जवाब दे रही थी। पाकिस्तान उत्तर पश्चिमी भारत में गुजरात के पवित्र हिंदू शहर द्वारका पर हमला करने के फिराक में था, दोनों देशों के बीच युद्ध अपने चरम पर था।

इधर सशस्त्र बल पंजाब और कश्मीर में लड़ाई में व्यस्त थे, उधर पाकिस्तान ने अपनी नौसेना तैनात कर दी। पाकिस्तानी नौसेना की इस छापेमारी की विस्तृत जानकारी संदीप उन्नीथन ने DailyO में प्रकाशित किया है।

द्वारका कराची से लगभग 200 किमी दूर स्थित है। पाकिस्तान के प्रमुख बंदरगाह शहर से इसकी नजदीकी के कारण, पाकिस्तानी नौसेना ने 7 नौसैनिक जहाजों का एक बेड़ा भेजा। इसमें एक हल्का क्रूजर (PNS Babur), और 6 विध्वंसक- पीएनएस खैबर, पीएनएस टीपू सुल्तान, पीएनएस बद्र, पीएनएस जहाँगीर, पीएनएस शाहजहाँ और पीएनएस आलमगीर शामिल थे।

द्वारका पर हमले के पीछे पाकिस्तान की साजिश

दिलचस्प बात यह है कि बेड़े का नाम उन सभी इस्लामी आक्रमणकारियों के नाम पर रखा गया था जिन्होंने हिंदुओं के खिलाफ क्रूर अत्याचार किए थे। पाकिस्तान उत्तरी मोर्चे से भारतीय वायु सेना (IAF) का ध्यान हटाना चाहता था और भारतीय नौसेना को अपने जहाजों को मुंबई (तब बॉम्बे) से द्वारका की ओर लाने के लिए मजबूर करना चाहता था। पाकिस्तानी नौसेना ने द्वारका में कथित रडार प्रणाली को नष्ट करने और अपनी पनडुब्बी, पीएनएस गाजी का उपयोग करके भारतीय जहाजों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की।

पाकिस्तानी नौसेना मुख्यालय से एक संकेत भेजा गया था। इसमें लिखा था, “पीएनएस बाबर, पीएनएस खैबर, पीएनएस बद्र, पीएनएस जहाँगीर, पीएनएस आलमगीर, पीएनएस शाहजहाँ और पीएनएस टीपू सुल्तान का टास्क ग्रुप द्वारका लाइटहाउस से 120 मील की दूरी पर 071800 E सितंबर तक 239 डिग्री पर तैनात है।”

इसमें आगे कहा गया, “इसके बाद टास्क ग्रुप ने प्रति जहाज 50 राउंड का उपयोग करके लगभग आधी रात को द्वारका पर बमबारी की। फोर्स को 080030 E सितंबर तक बमबारी का काम खत्म करके पूरी गति से वर्तमान पेट्रोलिंग एरिया में वापस आना है। दुश्मन के हवाई खतरे के अलावा क्षेत्र में एक या दो दुश्मन युद्धपोतों के मुठभेड़ की उम्मीद की जा सकती है।” तत्कालीन कमोडोर एसएम अनवर की देखरेख में भयावह योजना को अंजाम दिया जाना था।

पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन द्वारका’ को बताया सफल

पाकिस्तानी दावों के अनुसार, उनके युद्धपोतों ने नौ गोले दागे, जिसने द्वारका में भारतीय नौसेना रडार स्टेशन के बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर दिया। पाकिस्तानी सेना ने 13 भारतीय नाविकों और दो अधिकारियों के मारे जाने का भी दावा किया। उन्होंने यह भी दावा किया कि भारतीय राडार प्रणाली का इस्तेमाल भारतीय वायुसेना द्वारा पाकिस्तान पर हमला करने के लिए किया जाना था, जो कथित तौर पर पाकिस्तान के नौसेना के जहाजों द्वारा गोलाबारी के कारण ठप हो गया था।

एक सफल ऑपरेशन के रूप में ‘छापे’ की सराहना करते हुए, Parhlo ने लिखा, “द्वारका ऑपरेशन की सफलता का श्रेय देशभक्ति और बलिदान की उच्चतम भावना द्वारा चिह्नित कर्तव्य से परे राष्ट्र की सेवा करने के लिए अडिग भावना को दिया जाता है। हालाँकि युद्ध अनिर्णायक था, भारत को पाकिस्तान की तुलना में बहुत अधिक सामग्री और कर्मियों के हताहत होने का सामना करना पड़ा।”

इसके बाद पाकिस्तानी रेडियो स्टेशन ने भी फर्जी सूचनाओं को आगे बढ़ाने में आग में घी डालने का काम किया। इसने दावा किया कि पीएनएस बाबर ने द्वारका पर बमबारी की और उसे इस तरह क्षतिग्रस्त किया कि धुएँ का छल्ला 10 मील से दिखाई दे रहा था।

भारतीय सेना ने बताई असली कहानी 

घटना को याद करते हुए भारतीय वायुसेना के पूर्व सार्जेंट रमेश मदान ने लिखा, “मैंने अपनी घड़ी की ओर देखा। 8 सितंबर, 1965 की सुबह के 01:15 बज रहे थे। मैं अपने साथी से कुछ कहना चाह रहा था, तभी जोर से SWIIISHHH और बूम की आवाज आई। मेरे दोनों साथी और मैंने उस दिशा की ओर देखा लेकिन पहले बूम के बाद और अधिक SWIIIISHES और BOOMS की आवाज आई! यूनिट और शहर में हर कोई चारों ओर दौड़ रहा था। लोग इस गोलाबारी से बचने के लिए खाइयों में कूद रहे थे या जमीन पर गिर रहे थे।”

उन्होंने कहा कि 10 मिनट के बाद ही गोलाबारी बंद हो गई, जिसके बाद सभी खाइयों से बाहर निकल गए। अपने परिवार को लिखे पत्र में, सार्जेंट रमेश मदान ने कहा, “द्वारका में लोगों की तुलना में अधिक गधे हैं और कोई भी गधा घायल नहीं हुआ है, तो लोगों के बारे में कोई क्या ही कह सकता है।” उन्होंने बताया कि पाकिस्तानियों ने जिस धुआँ का दावा किया था, वह वास्तव में एक एसोसिएटेड सीमेंट कंपनी के कारखाने से था। उक्त कारखाना द्वारका में भारतीय अड्डे से 0.5 मील की दूरी पर स्थित था और धुआँ 20 मील दूर तक देखा जा सकता था।

ग्रामीणों की मदद से उन्होंने करीब 25 से 30 गोले बरामद किए। उस पर 1940-1946 के बीच की तारीख अंकित था। इससे यह स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तानी जहाजों द्वारा दागे गए गोला-बारूद विभाजन के समय उन्हें सौंपे गए थे। द्वारकाधीश मंदिर और रेलवे स्टेशन के बीच मैदान पर भारी संख्या में गोले गिरे थे।

IAF सार्जेंट रमेश मदान ने कहा, “बाकी सब गोले गाँव में और खेतों में जा गिरे। इसके पीछे चमत्कार यह था कि पाकिस्तानी जहाज के अपनी स्थिति सँभालने के समय से लेकर गोलाबारी शुरू होने तक समुद्र का स्तर बढ़ गया था। इसके परिणामस्वरूप अधिकांश गोले द्वारका के ऊपर से गुजरे।” IAF सार्जेंट रमेश मदान ने निष्कर्ष निकाला।

फिर भी, पाकिस्तानी कोई नुकसान करने में विफल रहे और बाद में 1965 का युद्ध भी हार गए। लेकिन चूँकि पाकिस्तान झूठे इतिहास पर चलता है, इसलिए यह 8 सितंबर को ‘पाकिस्तान नौसेना दिवस’ के रूप में मनाता है। DailyO के अनुसार, द्वारका में पाकिस्तानी गोलाबारी में एकमात्र गाय की मौत हुई।

भारतीय नौसेना पर ‘ऑपरेशन द्वारका’ का प्रभाव

पाकिस्तान के छापेमारी के कारण बाद के दशकों में भारतीय नौसेना का जबरदस्त आधुनिकीकरण हुआ। भारतीय नौसेना के वाइस एडमिरल (सेवानिवृत्त) गुलाब हीरानंदानी ने लिखा,“भारत ने नवीनतम जहाजों और पनडुब्बियों के लिए भारतीय नौसेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सोवियत संघ के लंबित प्रस्ताव को स्वीकार करने का निर्णय लिया। द्वारका की तरह तटीय बंदरगाहों पर हमलों को रोकने के लिए, इंडोनेशियाई और मिस्र की नौसेनाओं को आपूर्ति की गई सोवियत मिसाइल नौकाओं को तैनात किया गया।”

1966 और 1971 के बीच, भारत ने सोवियत रूस से 5 गश्ती नौकाओं, 5 पनडुब्बी चेज़र, 2 लैंडिंग जहाजों, 4 पनडुब्बी, एक पनडुब्बी डिपो जहाज, एक पनडुब्बी बचाव पोत और 8 मिसाइल नौकाओं का अधिग्रहण किया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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