1962 के भारत-चीन युद्ध में अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले भारतीय सेना के परमवीर विजेता सूबेदार जोगिंदर सिंह की आज (23 अक्टूबर) पुण्यतिथि है। अकेले 200 चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ाने वाले जोगिंदर सिंह की बहादुरी को चीन ने भी सलाम किया था। आज हम आपको भारत माँ के लाल सूबेदार जोगिंदर सिंह की वीरगाथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
इनका जन्म 26 सितंबर 1921 को पंजाब के फरीदकोट जिले में मोगा के एक गाँव मेहला कलां में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई नाथू आला गाँव के प्राइमरी स्कूल और फिर दरौली गाँव के मिडिल स्कूल से पूरी की थी। उन्होंने महज 15 साल की उम्र में ब्रिटिश इंडियन आर्मी को ज्वॉइन कर लिया था।
28 सितंबर 1936 को वह सिख रेजीमेंट की पहली बटालियन का हिस्सा बन गए। फौज का हिस्सा बनने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और आर्मी एजुकेशन एग्जामिनेशन भी पास किया। उनको पढ़ाई में हमेशा से ही रूचि थी और इसलिए उनको यूनिट का एजुकेशन इंस्ट्रक्टर भी नियुक्त किया गया था।
फौज का हिस्सा बनने के बाद उन्होंने कई युद्ध लड़े। इनमें साल 1962 में हुआ भारत-चीन का युद्ध भी शामिल है। इस युद्ध में वह चीनी सेना से लोहा लेते हुए बलिदान हो गए थे।
पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया
बात है 9 सितंबर 1962 की। उस समय भारत और चीन के बीच युद्ध चल रहा था। इस दौरान 7 इन्फैंट्री ब्रिगेड को नामका चू में कमान संभालने का आदेश मिला था। इसमें एक सिख रेजिमेंट के सैनिक सूबेदार जोगिंदर सिंह भी शामिल थे।
सूबेदार सिंह को बुम ला के पास स्थित पोस्ट को संभालने का आदेश मिला था और उनके पास एक सिख रेजिमेंट के केवल 20 ही सैनिक थे। चीन की सेना ने इस पोस्ट पर लगातार तीन बार हमला किया और हर हमले में उन्होंने 200 सैनिक भेजे। पहला और दूसरा हमला जोगिंदर सिंह की प्लाटून ने नाकाम कर दिया था।
चीनी सैनिकों के तीसरे हमले से पहले हालाँकि सूबेदार जोगिंदर सिंह की आधी प्लाटून भी वीरगति को प्राप्त हो चुकी थी। उनकी गोलियाँ भी खत्म हो चुकी थीं और उनको पीछे हटने का आदेश भी मिल चुका था… लेकिन उन्होंने और उनके सैनिकों ने पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद वे चीन के तीसरे हमले का इंतजार करने लग गए।
थोड़ी ही देर बाद ही चीन के 200 सैनिकों ने तीसरा हमला भी कर दिया। भारतीय सैनिक भी सूबेदार जोगिंदर सिंह के नेतृत्व में बिना हथियारों के ही उन पर टूट पड़े। वो आखिरी दम तक चीनी सेना से डटकर लड़ते रहे और चीन के 50 से अधिक सैनिकों को भी मार गिराया। हालाँकि बुरी तरह घायल सूबेदार को चीनी सैनिकों ने बंदी बना लिया था।
23 अक्टूबर 1962 को सूबेदार जोगिंदर सिंह चीन द्वारा युद्धबंदी की हालत में ही बलिदान हो गए। उनके शव का अंतिम संस्कार चीनी सैनिकों ने ही किया था। चीन ने 17 मई 1963 को भारत को उनकी अस्थियाँ सौंपी थीं। सूबेदार जोगिंदर सिंह को इस असाधारण वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
सदमे से बड़ी बेटी ने भी दम तोड़ दिया
सूबेदार जोगिंदर सिंह के बलिदान होने की खबर जब उनके परिवार को पता चली, तो उस सदमे से उनकी बड़ी बेटी ने भी दम तोड़ दिया था। उनका नाम सरजीत कौर था। बस 11 साल की उम्र थी उनकी। अपने पिता से इतना प्यार करती थीं कि उनके बलिदान की खबर और सदमे को सह न सकीं और उनका भी निधन हो गया था।
आपको बता दें कि हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में 1962 के भारत-चीन युद्ध में बलिदान देने वाले सूबेदार जोगिंदर सिंह के सम्मान में बुम ला, सिख रेजिमेंट में युद्ध स्मारक भी बनाया गया है।