बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सोमवार (12 नवंबर) को कहा कि ‘उत्पीड़न’ के कारण म्यांमार से भाग कर बांग्लादेश में आए 10 लाख से अधिक रोहिंग्या पूरे क्षेत्र की ‘सुरक्षा के लिए ख़तरा’ हैं। उन्होंने वैश्विक समुदाय से इस मुद्दे को हल करने का आग्रह किया है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 24 मई, 2018 तक 9,00,000 से अधिक रोहिंग्याओं ने म्यांमार के रखाइन प्रांत से पलायन किया है। 2017 में सैन्य कार्रवाई के बाद बड़े पैमाने पर हुई हिंसा के कारण ये भागे हैं। बड़ी संख्या में इनके शरण लेने से पड़ोसी देश बांग्लादेश में बड़ा संकट खड़ा हो गया है।
हसीना ने तीन दिवसीय ‘ढाका ग्लोबल डायलॉग -2019’ को संबोधित करते हुए कहा, “क्षेत्रीय सुरक्षा के संदर्भ में, मैं कहना चाहूँगी कि म्यांमार के 1.1 मिलियन से अधिक रोहिंग्या नागरिक उत्पीड़न के चलते भाग कर बांग्लादेश आ गए थे और वे न केवल बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए ख़तरा हैं।”
बांग्लादेश की आधिकारिक समाचार एजेंसी संगबाथा (बीएसएस) के अनुसार उन्होंने कहा,
“मैं विश्व समुदाय से आग्रह करती हूँ कि वह इस ख़तरे को गंभीरता से लेते हुए इस पर उचित कार्रवाई करे। शांति और सुरक्षा के बिना किसी भी देश के विकास और समृद्धि को सुनिश्चित करना संभव नहीं होगा।”
सोमवार को शुरू हुआ यह संवाद बांग्लादेश इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एंड स्ट्रैटेजिक स्टडीज (BIISS) और भारत स्थित स्वतंत्र थिंक-टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया है। 50 से अधिक देशों के 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने बातचीत, विचार-विमर्श करने और सबसे अधिक दबाव वाली वैश्विक अनिवार्यताओं पर बहस करने के लिए इसमें हिस्सा ले रहे हैं।
ख़बर के अनुसार, इस समारोह में बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमन, ओआरएफ अध्यक्ष समीर सरन और बीआईआईएसएस के महानिदेशक एकेएम अब्दुर रहमान ने भी बात रखी।
भारत और म्यांमार दोनों पड़ोसी हैं। इनके संबन्ध अत्यन्त प्राचीन और गहरे हैं और आधुनिक इतिहास के तो कई अध्याय बिना एक-दूसरे के उल्लेख के पूरे ही नहीं हो सकते। भारत और म्यांमार की सीमाएँ आपस में लगती हैं जिनकी लंबाई 1,600 किमी से भी अधिक है तथा बंगाल की खाड़ी में एक समुद्री सीमा से भी दोनों देश जुड़े हुए हैं। अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड की सीमा म्यांमार से सटी हुई है।