दिल्ली यूनिवर्सिटी ने बीए (ऑनर्स) अंग्रेजी पाठ्यक्रम से महाश्वेता देवी की लघुकथा ‘द्रौपदी’ को सिलेबस से हटा दिया है। साथ ही तमिल लेखक बामा और सुकरिथरणी की रचनाओं को भी सिलेबस से हटाया गया है। इस पर जारी विवाद के बीच नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (NDTF) ने इस बदलाव का स्वागत किया है।
असल में महाश्वेता देवी की लघुकथा को लेकर कई प्रश्न उठे थे। इसके बाद यूनिवर्सिटी की अकादमिक परिषद ने मामले को संज्ञान में लेते हुए इसे हटाने का फैसला किया। अब ‘द्रौपदी’ के स्थान पर एक छोटी कहानी ‘ह्यसुल्तानाज ड्रीम्स’ को सिलेबस में शामिल किया गया है।
NDTF के अध्यक्ष एके भागी और महासचिव वीएस नेगी ने ऑपइंडिया को भेजे बयान में कहा है कि संगठन सेमेस्टर V और VI के लिए बीए (ऑनर्स) अंग्रेजी पाठ्यक्रम में हुए बदलावों का समर्थन करता है। उन्होंने बताया कि ये छोटे लेकिन महत्वपूर्ण संशोधन एम्पॉवर्ड ओवरसाइट कमेटी द्वारा किए गए थे, जिसे डीयू की एग्जीक्यूटिव काउंसिल (Executive council) ने 2019 में नियुक्त किया था।
तकरीबन 125 शिक्षविदों वाले अकादमिक काउंसिल ने इस संशोधन को स्वीकारा, जिनमें से 87 ने इस बदलाव को लेकर अपनी सहमति दी और 15 ने निर्णय के समय अपनी असहमति व्यक्त की। संगठन ने अपने बयान में अंग्रेजी विभाग के शिक्षकों के एक वर्ग की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने हिंदू धर्म और प्राचीन सभ्यता को बदनाम करने, सामाजिक जातियों के बीच दुश्मनी को कायम रखने, आदिवासियों के बीच उग्रवादी माओवाद और नक्सलवाद को प्रोत्साहित करने आदि के लिए अकादमिक स्वायत्ता का गलत उपयोग किया। इन सबके विरुद्ध जब आवाज उठाई गई और जाँच की गई, तो ये राजनीतिक शोर करने लगे।
बता दें कि ‘द्रौपदी’, महाश्वेता देवी द्वारा बंगाली में लिखी गई एक लघुकथा है और गायत्री स्पिवक द्वारा इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। इस कहानी को डीयू के पाठ्यक्रम में कई वर्षों से पढ़ाया जा रहा था। कहने को यह एक आदिवासी महिला के अपमान के इर्द-गिर्द घूमता है, लेकिन हिंदू धर्म को नीचा दिखाने का एक कपटी प्रयास है। कहानी में केवल महिला के प्राइवेट बॉडी पार्ट, यौन दुराचार और यौन हमलों का अश्लील विवरण है। NDTF का कहना है कि इस कहानी का परिचय प्रतिष्ठित महाभारत के चरित्र के लिए विशेष रूप से आपत्तिजनक है।
अपने बयान में संगठन ने वामपंथियों के फर्जी प्रोपगेंडा पर भी बल दिया जहाँ वो ये रोना रो रहे हैं कि पाठ्यक्रम से दलित लेखकों को हटाया जा रहा है। उदहारण के लिए एक संदेश वायरल है, जिसमें लिखा है-
“डीयू में सालभर पहले दलित टीचर डॉ. ऋतु सिंह को अपमानित करके निकाल दिया जाता है। फिर एक दलित एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नीलम को थप्पड़ जड़कर अपमानित किया जाता है। अब महाश्वेता देवी की लघु कहानी ‘द्रौपदी’ (आदिवासी महिला विद्रोह आधारित) को डीयू से हटाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं।”
संगठन ने बयान में खुल कर बताया कि कैसे वामपंथी संगठन हमेशा से राष्ट्रवादियों लेखकों द्वारा लिखित कहानियों का विरोध करता रहा है, क्योंकि वो उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठते।
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— University of Delhi (@UnivofDelhi) August 26, 2021
संगठन ने कहा है कि वामपंथियों का काम हमेशा से समाज को सामाजिक और धार्मिक संघर्षों के कैंसर के साथ इंजेक्ट करना रहा है। लेकिन देशभक्तों और राष्ट्रवादियों के रूप में एनडीटीएफ उनके जहरीले कैंसर वाले दृष्टिकोण का विरोध करने के लिए प्रतिबद्ध है और विश्वविद्यालय प्रशासन से अंग्रेजी विभाग द्वारा बनाए गए सभी पाठ्यक्रमों को स्कैन करने की माँग करता है।
डीयू ने जारी किया स्पष्टीकरण
इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय ने गुरुवार (अगस्त 26, 2021) को एक बयान जारी किया था। अपने बयान में डीयू ने पूरे मामले पर अपना रुख स्पष्ट किया। डीयू ने इसमें जोर देकर कहा था कि पाठ्यक्रम को ‘लोकतांत्रिक प्रक्रिया’ के माध्यम से पारित किया गया है।
बयान में कहा गया था, “वर्तमान पाठ्यक्रम का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने से स्पष्ट रूप से विषयवस्तु की विविधता के संदर्भ में पाठ्यक्रम की समावेशी प्रकृति का पता चलता है और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ख्याति के विभिन्न प्रसिद्ध विद्वानों के अग्रणी कार्यों को उनके धर्म, जाति और पंथ पर विचार किए बिना शामिल किया गया है। विश्वविद्यालय के अनुसार, अकादमिक क्षेत्र में उत्कृष्टता इन विशेषताओं के अधीन नहीं है।”