जियो-फेसबुक सौदे (Jio FaceBook Deal) पर सभी की निगाह अकड़ी हुई है। इस सौदे की नज़र भारत के रिटेल सेक्टर पर है। इस सेक्टर के काफी हिस्से आज भी असंगठित हैं। लेकिन यह इसकी अप्रयुक्त क्षमता ही तो है, जो इसे पारस्परिक रूप से आकर्षक बनाती है। इस सौदे के चलते फेसबुक ने जियो प्लेटफॉर्म्स के शेयर्स में 9.99% इक्विटी 43,574 करोड़ रुपए में खरीदी है। जहाँ एक तरफ अर्थशास्त्रियों को भारत की आर्थिक वृद्धि नज़र आ रही है, वही दूसरों को उपयोगकर्ता की निजता की सुरक्षा का डर सता रहा है। सब मींज माँज के असल मुद्दा ये बैठता है कि यह सौदा भारतीय अर्थव्यवस्था और नागरिकों के रोजमर्रा के जीवन को कैसे प्रभावित करेगा?
आर्थिक प्रभाव
COVID-19 महामारी से जूझते हुए भी, टेक्नॉलजी सेक्टर में अपना सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त करना, भारत की आर्थिक प्रगति का प्रारंभिक संकेत है। इस सौदे से एक तरफ समस्त उपभोक्ताओं को अत्यंत सहज एवं उच्च टेक्नॉलजी की सुविधा होगी तो दूसरी तरफ छोटे और मध्यम वर्गीय व्यापारियों के लिए बेहतर व्यवसाय के अवसर खुलेंगे, जिनको इ-कॉमर्स के माध्यम से बड़े बाजार की पहुँच प्राप्त होगी।
जियो मार्ट को इस सौदे से एक बहुत महत्वपूर्ण फायदा होगा। वह एक ऐसी वटवृक्ष बन जाएगी, जिसकी छाया में ग्राहक खरीदारी, भुगतान, त्वरित सन्देश एवं सोशल मीडिया का लाभ एक साथ उठा सकेंगे। यह सारी चीज़ें एक जगह होने से कुछ नवांकुर कंपनियों ने अपने गहन विचार व्यक्त किए हैं। नवांकुर कम्पनियों ने बड़ी-बड़ी कम्पनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थता दिखाई है और जब देश में दो बड़ी कंपनियाँ एक साथ आ जाए तो यह उनके लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है। बाजार में इस बात की भी हलचल है कि यह जोड़ी एकाधिकार (मोनोपोली) उत्पन्न करने में सक्षम है, जिसकी वजह से बाकी कम्पनियों को काफी नुक्सान हो सकता है।
अत: अब यह प्रश्न उठता है कि क्या यह सौदा जो विश्व की सबसे बड़ी सोशल मीडिया कंपनी और देश की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी के बीच है, वह भारतीय बाजार की प्रतिस्पर्धा पर कितना और किस प्रकार से असर डालता है? इन सभी बातों को मद्देनज़र रखते हुए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग एवं भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण का काम बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग इस सौदे पर कड़ी नज़र रखेगा ताकि किसी भी तरह से यह सौदा बाजार को हानि न पहुँचाए।
पारस्परिक लाभ
रिलायंस रिटेल को अपने किराने की डिलीवरी प्लेटफॉर्म जियो-मार्ट पर अधिक ग्राहक पाने में व्हाट्सएप अत्यंत मददगार साबित होगा। यह सौदा दोनों खिलाड़ियों के लिए एक जीत है। फेसबुक को ई-कॉमर्स की दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते बाजारों में से एक में अपना झंडा गाड़ने का मौका मिला है, वहीं रिलायंस को अपने साझेदार फेसबुक की सोशल मीडिया जगत में लोकप्रियता का लाभ उठाते हुए उसके उपयोगकर्ताओं को अपने रिटेल प्लेटफॉर्म की तरफ आकर्षित करने का। कई और भी रिश्ते हैं, जो इस साझेदारी के माध्यम से सँजोए जा सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय टेक्नॉलजी दिग्गज और भारतीय टेलिकॉम दिग्गज के हाथ मिलाने से ऑनलाइन दुनिया के अन्य क्षेत्रों जैसे- वर्चुअल रियलिटी, फिनटेक, मोबाइल गेमिंग और वीडियो स्ट्रीमिंग के दरवाज़े भी इनके लिए खुल गए हैं। इस दोस्ती ने भारत और अमेरिका के लिए द्विपक्षीय स्तर पर एक साथ आने और एक मज़बूत डेटा एवं टेक्नॉलजी पर साझेदारी हेतु चर्चा करने के लिए नींव तैयार कर दी है। भारत के लिए अमेरिकी डेटा का लाभ उठाने के लिए, CLOUD एक्ट के तहत एक व्यवस्था में प्रवेश करना अनिवार्य है। यह सौदा उस मंज़िल को पाने में अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
निजता पर प्रकोप
जहाँ फेसबुक के पास 400 मिलियन ग्राहक हैं, जियो के पास भी 388 मिलियन ग्राहक हैं। दोनों कंपनियों द्वारा उत्पन्न डेटा की विशाल मात्रा अपने आप में चिंताजनक है। इस डेटा के आदान-प्रदान और एकत्रीकरण का डर सामाजिक चर्चा में उत्पन्न हुआ है। यहाँ पर इतना कहना काफी होगा कि डेटा-शेयरिंग इस सौदे का भाग नहीं है। मल्टी-नेशनल कंपनी होने के कारण फेसबुक के पास उपभोक्ता-डेटा के संरक्षण का अनुभव है। फिर बड़ी कंपनियों के पास निजता बनाए रखने के लिए आधुनिक टेक्नॉलजी इस्तेमाल करने की क्षमता भी तो होती है।
इसके अलावा, भारत में एक मजबूत सिविल सोसाइटी की उपस्थिति एक पहरेदार के स्वरूप में किसी भी उल्लंघन का संकेत देती रहती है। इसके अतिरिक्त भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस पुट्टास्वामी के निर्णय में निजता के मौलिक अधिकार के संरक्षण हेतु कई नियम पारित किए, जिनका उल्लंघन एक दण्डनीय अपराध बताया गया है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट भी एक स्वतंत्र डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी की आवश्यकता पूरी नहीं कर सकता है। जैसे कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग, प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 के उल्लंघन की जाँच करती है उसी प्रकार से डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी उपयोगकर्ता की निजता के उल्लंघन पर सरकार एवं निजी कंपनियों पर मुकदमा चलाने का अधिकार रखती है। इस टेक्नॉलजी के दौर में, भारत की आर्थिक वृद्धि और नागरिकों की निजता के संरक्षण के लिए सरकार को जल्द से जल्द एक प्रगतिशील डेटा संरक्षण कानून पारित करने की ज़रूरत है।
जियो-फेसबुक की इस जोड़ी का योग भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत लाभदायक साबित होगा। यह सौदा भारतीय उपभोक्ताओं और व्यापारियों के सशक्तिकरण में अत्यंत प्रगतिशील होने के साथ साथ भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई दरवाज़े खोलने की क्षमता रखता है। आर्थिक एवं सामाजिक वृद्धि के मार्ग पर चलते रहने के लिए इस जोड़ी पर प्रतिस्पर्धा और निजता को संरक्षित रखने का दारोमदार भी रहेगा।
इस लेख के दूसरे लेखक हैं: प्रणव भास्कर तिवारी (नीति अनुसंधान सहयोगी – द डायलॉग)