Monday, November 18, 2024
Homeविविध विषयअन्यमाँ का किडनी ट्रांसप्लांट, खुद की कोरोना से लड़ाई: संघर्ष से भरा लवलीना का...

माँ का किडनी ट्रांसप्लांट, खुद की कोरोना से लड़ाई: संघर्ष से भरा लवलीना का जीवन, ₹2500/माह में पिता चलाते थे 3 बेटियों का परिवार

उन्हें 52 सदस्यीय दल के साथ ओलंपिक गेम्स की ट्रेनिंग के लिए यूरोप भी जाना था, लेकिन कोरोना होने के कारण ऐसा नहीं हो पाया। फिर सरकार ने लवलीना बोरगोहेन की मदद की और असम में उनके लिए एक व्यक्तिगत ट्रेनिंग सेंटर की व्यवस्था की।

भारत की बेटी लवलीना बोरगोहेन ने जापान की राजधानी टोक्यो में चल रहे ओलंपिक के खेलों के लिए अपना मेडल पक्का कर लिया है। उनकी कहानी बड़ी भरी रही है। वो असम के गोलाघाट स्थित एक छोटे से गाँव की रहने वाली हैं। पिछले मैच में जब उन्हें जीत मिली थी और मेडल पक्का हुआ था, तब उनके पिता टिकेन बोरगोहेन के दरवाजे पर भले ही पूरे ग्रामीणों की भीड़ लगी थी, लेकिन वो खुद टहलने निकल गए थे।

जब बेटी का ओलंपिक मेडल पक्का होने की खबर सुन ली, तब जाकर वो वापस आए। उनका कहना था कि कहीं उनके वहाँ रहने से वो हार जातीं तो? लवलीना बोरगोहेन (69 किलोग्राम) ने पूर्व चैंपियन निएन चिन चेन को हराया। इसके साथ ही वो टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुँच गईं। ऐसे करने वाली वो तीसरी भारतीय महिला बॉक्सर हैं। इससे पहले 2008 में विजेंद्र सिंह और 2012 में मैरी कॉम ने ये कारनामा किया था।

एक और बात जानने लायक है कि ये साल भी लवलीना बोरगोहेन के लिए काफी संघर्ष भरा रहा है। इसी साल लवलीना की माँ मैमोनी बोरगोहेन का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। डॉक्टरों ने बताया था कि उनकी दोनों किडनियाँ काम करने लायक नहीं बची हैं। इसके बाद लवलीना ने खुद डोनर खोजा था और अपनी कैश प्राइज से माँ का इलाज कराया। इस दौरान वो प्रैक्टिस भी करतीं और अस्पताल में माँ की सेवा भी। किडनी ट्रांसप्लांट में 25 लाख रुपए लग गए थे

अस्पताल में समय व्यतीत करने के कारण उन्हें कोरोना वायरस संक्रमण ने भी अपनी चपेट में ले लिया था। इसी बीच उन्हें 52 सदस्यीय दल के साथ ओलंपिक गेम्स की ट्रेनिंग के लिए यूरोप भी जाना था। कोरोना ने दुनिया भर में जैसा आतंक मचाया, भारत में भी उसका असर देखने को मिला। बॉक्सरों को प्रैक्टिस के लिए समय नहीं मिल पाया, इसीलिए ये ट्रेनिंग कैम्प ज़रूरी था। सरकार ने लवलीना बोरगोहेन की मदद की और असम में उनके लिए एक व्यक्तिगत ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किया।

लेकिन, तब भी अपने बाकी साथियों से दूर रह कर मेहनत करना उनके लिए कठिन था। पिछले महीने हुए एशियन चैम्पियनशिप में इसका असर भी देखने को मिला, जब उन्हें पहले ही मुकाबले में हार मिली थी मिली थी। लेकिन, एक कठिन ड्रॉ के बाद वो रजत पदक जीतने में कामयाब रही थीं। उनके पिता का कहना है कि लोग कहते हैं कि लड़के अपने माता-पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हैं, लेकिन तीन बेटियों के पिता होकर उन्हें एहसास हुआ है कि लड़कियाँ किसी से कम नहीं हैं।

उन्होंने बताया कि जब माँ का किडनी फेलियर हुआ था, तब लवलीना रात-रात भर जगी रहती थीं। वो चट्टान की भाँति अपनी माँ के साथ खड़ी थीं। तभी तो उनके पिता उन्हें परिवार की रीढ़ की हड्डी बताते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी को दूसरा जीवन मिला है बेटी को ओलंपिक में मेडल मिलने की खबर से वो और तेज़ी से ठीक होंगी। लवलीना बोरगोहेन के पिता गाँव के ही एक चाय बागान में काम करते थे।

लवलीना की दोनों बहनें लीचा और लीमा भी किक बॉक्सर्स हैं। कम संसाधन होने के बावजूद माता-पिता तीनों बेटियों को खेल के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए पूरा प्रोत्साहन देते रहे हैं। तीनों बेटियों के सपने को पूरा करने के लिए माँ स्थानीय कोऑपरेटिव से लोन लिया करती थीं। अब टिकेन के पास एक छोटा सा चाय का बागान भी है। लेकिन, कभी वो मात्र 2500 रुपए का महीना ही कमाते थे। उन्होंने कहा कि फिर भी वो कभी रुपयों की कमी को बेटियों के करियर के आड़े नहीं आने देना चाहते थे।

23 साल की लवलीना बोरगोहेन के गाँव का नाम बारोमुखिया है। जब उनकी माँ बीमार हुई थीं, तब वो आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टिट्यूट में प्रशिक्षण ले रही थीं। अपनी बीमार माँ के साथ उसी समय उन्होंने अंतिम बार समय बिताया था, क्योंकि तब से अब तक उन्हें घर जाने की फुरसत ही नहीं मिली है। लवलीना अब तक कई अंतरराष्ट्रीय मेडल जीत चुकी हैं। वो सब-जूनियर नेशनल चैंपियन भी रही हैं। 2016 में वो 75 किलोग्राम सीनियर कैटेगरी में आई थीं।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

महाराष्ट्र में महायुति सरकार लाने की होड़, मुख्यमंत्री बनने की रेस नहीं: एकनाथ शिंदे, बाला साहेब को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहने का राहुल गाँधी...

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने साफ कहा, "हमारी कोई लड़ाई, कोई रेस नहीं है। ये रेस एमवीए में है। हमारे यहाँ पूरी टीम काम कर रही महायुति की सरकार लाने के लिए।"

महाराष्ट्र में चुनाव देख PM मोदी की चुनौती से डरा ‘बच्चा’, पुण्यतिथि पर बाला साहेब ठाकरे को किया याद; लेकिन तारीफ के दो शब्द...

पीएम की चुनौती के बाद ही राहुल गाँधी का बाला साहेब को श्रद्धांजलि देने का ट्वीट आया। हालाँकि देखने वाली बात ये है इतनी बड़ी शख्सियत के लिए राहुल गाँधी अपने ट्वीट में कहीं भी दो लाइन प्रशंसा की नहीं लिख पाए।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -