ग्लोबल रेटिंग एजेंसी एस&पी ( S&P ) ने भारत का आउटलुक ‘स्टेबल’ से ‘पॉजिटिव’ कर दिया है। एस&पी ग्लोबल ने बुधवार को अपने आउटलुक में बदलाव किया है। एस&पी ग्लोबल ने ओवरऑल रेटिंग को ‘BBB-‘ रखा है। रेटिंग एजेंसी का कहना है कि भारत की आर्थिक ग्रोथ मजबूत है, जिसका क्रेडिट मेट्रिक्स पर पॉजिटिव असर है। ये मोदी सरकार की मजबूति कार्यशैली को दर्शाने वाला फैसला दिखता है।
एस&पी ग्लोबल ने अपने नोट में कहा है कि पॉजिटिव आउटलुक हमारे नजरिए को दर्शाता है कि लगातार पॉलिसी में स्थिरता, बेहतर होते आर्थिक रिफॉर्म्स और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ऊँचा निवेश लंबी अवधि की विकास संभावनाओं को बनाए रखेंगे। रेटिंग एजेंसी को उम्मीद है कि मौजूदा फिस्कल और मॉनिटरी पॉलिसी से सरकार का कर्ज और ब्याज दोनों कम होगा, जिससे आर्थिक लचीलापन बढ़ेगा, नतीजतन अगले 24 महीनों के भीतर ऊँची रेटिंग देखने को मिल सकती है। पिछले साल मई में, एस&पी ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत की ग्रोथ पर स्टेबल आउटलुक के साथ भारत की ओवरऑल रेटिंग को ‘BBB-‘ की थी, तब रेटिंग एजेंसी ने भारत के कमजोर वित्तीय प्रदर्शन और प्रति व्यक्ति कम जीडीपी को जोखिम के रूप में बताया था।
फिस्कल डेफिसिट कम हुआ तो रेटिंग अपग्रेड
मतलब ये कि अगर फिस्कल डेफिसिट आगे जाकर काफी हद तक कम होता है तो रेटिंग एजेंसी भारत की रेटिंग को अपग्रेड कर सकती है, जो कि अभी ‘BBB-‘ पर बरकरार है। इससे सामान्य सरकारी कर्ज में कमी आएगी और ये जीडीपी के 7% से भी नीचे चली जाएगी। इंफ्रास्ट्रक्चर और फिस्कल एडजस्टमेंट में लगातार पब्लिक इन्वेस्टमेंट आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है और भारत के कमजोर पब्लिक फाइनेंस में सुधार ला सकता है। साथ ही अगर सेंट्रल बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी की प्रभावशीलता और विश्वसनीयता में लगातार और पर्याप्त सुधार देखने को मिलता है, जैसे कि महँगाई को वक्त के साथ कम ब्याज दरों पर मैनेज कर लिया जाता है तो हम रेटिंग भी बढ़ा सकते हैं।
एस&पी ग्लोबल का कहना है कि सरकार का इंफ्रास्ट्रक्चर खर्च भारत के विकास की राह को आसान करेगा, हम उम्मीद करते हैं कि चुनाव के नतीजों की परवाह किए बिना भारत में सुधार जारी रहेंगे। हालाँकि, एस&पी ग्लोबल ने ये चेतावनी भी दी है कि अगर पब्लिक फाइनेंस के प्रति राजनीतिक प्रतिबद्धता में कमी देखने को मिलती है तो वो आउटलुक को फिर से स्टेबल भी कर सकते हैं।
बाकी रेटिंग एजेंसियों का क्या है नजरिया ‘बीबीबी-’
सबसे निचली निवेश श्रेणी रेटिंग है। एजेंसी ने पिछली बार 2010 में रेटिंग आउटलुक को ‘नकारात्मक’ से बढ़ाकर ‘स्थिर’ किया था।अमेरिका की एजेंसी ने कहा कि यदि भारत का राजकोषीय घाटा सार्थक रूप से कम होता है और परिणामस्वरूप सामान्य सरकारी ऋण संरचनात्मक आधार पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के सात प्रतिशत से नीचे आ जाता है, तो वह रेटिंग बढ़ा सकती है। सभी तीन प्रमुख वैश्विक रेटिंग एजेंसियों एसएंडपी, फिच और मूडीज ने भारत को सबसे निम्न निवेश ग्रेड रेटिंग दे रही है।
हालाँकि, फिच और मूडीज ने अपनी रेटिंग पर अब भी ‘स्थिर’ परिदृश्य कायम रखा है। निवेशक इन रेटिंग को देश की साख के मापदंड के तौर पर देखते हैं और इसका उधार लेने की लागत पर प्रभाव पड़ता है।