भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ (रॉ) के पूर्व प्रमुख एएस दुलत ने जुलाई 2015 में खुलासा किया था कि हिज्बुल मुजाहिदीन के प्रमुख सैयद सलाउद्दीन ने अपने बेटे को मेडिकल कॉलेज में दाखिला दिलाने के लिए एक बार श्रीनगर में एक आईबी अधिकारी से संपर्क किया था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने दाखिले की व्यवस्था की थी। हालाँकि, 6 साल बाद शनिवार (10 जुलाई 2021) को जम्मू-कश्मीर सरकार ने सैयद सलाउद्दीन के दोनों बेटों (सैयद शकील अहमद और शाहिद यूसुफ) समेत कुल 11 सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है।
उस दौरान यानी साल 2015 के मीडिया रिपोर्ट्स में हिज्बुल मुजाहिदीन प्रमुख के बेटे अब्दुल वाहिद ने पूर्व रॉ प्रमुख के दावे का खंडन करते हुए इसे सबसे बड़ा झूठ बताया था। वाहिद ने कहा था कि उसके पिता सैयद सलाउद्दीन ने मेडिकल कॉलेज में सीट के लिए किसी से संपर्क नहीं किया। अब्दुल वाहिद ने इसे अपने पिता को बदनाम करने की साजिश बताई थी।
उसी साल सलाउद्दीन के बेटे वाहिद ने हिंदुस्तान टाइम्स को दिए अपने इंटरव्यू में दुलत (साल 2000 तक रॉ प्रमुख रहे) के सभी आरोपों को खारिज कर दिया था। इस इंटरव्यू में वाहिद ने कहा था, ”मेरे पिता की छवि खराब करने के लिए एक सोची समझी साजिश के तहत मनगढ़ंत कहानी बनाई गई है।”
वाहिद ने स्पष्ट किया था कि न तो उनके पिता ने किसी को फोन किया है और न ही उनके परिवार के सदस्यों ने पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला से कॉलेज में दाखिला दिलाने के लिए कभी मुलाकात की। सलाउद्दीन के बेटे वाहिद ने साथ ही यह दावा भी किया था कि उसे साल 2000 में एमबीबीएस के लिए आयोजित एक सामान्य प्रवेश परीक्षा के जरिए चुना गया था।
वाहिद ने कहा कि उसका जम्मू स्थित आचार्य श्री चंदर कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड हॉस्पिटल में दाखिला कराया गया था। मेरिट लिस्ट में उसकी रैंकिंग 92 थी। उसने बताया कि आतंकवादी पृष्ठभूमि वाले परिवार से होने के कारण जम्मू में अक्सर उसे सुरक्षा का डर सताता था, इसलिए वह अपना स्थानांतरण श्रीनगर करवाना चाहता था। उसने बताया कि उसे सुरक्षा और आईबी एजेंसियों के लोगों द्वारा अक्सर संदेह की दृष्टि से देखा जाता था। उसने आरोप लगाया था कि सुरक्षा जाँच के बहाने उसे धमकी और प्रताड़ना दी जाती थी और क्लास व लैब छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता था।
दुलत का दिमाग खराब
आतंकवादी के बेटे ने उस समय कहा था कि उसका परिवार चिंतित था, इसलिए उसने बीओपीईई (सीईटी आयोजित करने वाले बोर्ड) अधिकारियों से संपर्क किया। हालाँकि, अधिकारियों ने असहाय होने की बात कही। वहीं, कोर्ट ने भी स्थानांतरण को नियमों के खिलाफ मानते हुए मदद नहीं की। वाहिद ने कहा कि उसके परिवार ने मदद के लिए तत्कालीन राज्य सरकार से संपर्क किया, जिसने राजनीतिक गतिविधियों को भाँपते हुए उसे जम्मू से श्रीनगर में शिफ्ट करने में मदद की थी। वाहिद ने कहा था, “दुलत का दिमाग खराब हो गया है, वह पूरी तरह से बकवास कर रहे हैं। मेरा चयन मेरी योग्यता के दम पर हुआ था।”
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, हिजबुल के तत्कालीन प्रवक्ता सलीम हाशमी ने कहा था कि सलाहुद्दीन ने कभी किसी सरकारी अधिकारी से संपर्क नहीं किया। हाशमी ने एक बयान में कहा था, “यह आरोप निराधार है। कश्मीर के स्वतंत्रता संग्राम (आम जनता को भ्रमित करने के लिए आतंकवाद को ये लोग इसी शब्द से बुलाते हैं) को लेकर आम लोगों के मन में संदेह पैदा करने के मकसद से इस तरह की भ्रांतियाँ फैलाई जा रही हैं।” उसने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग जानते हैं कि भारतीय खुफिया एजेंसियाँ और उसकी लड़ाई को कमजोर करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं।
4 बेटे और एक बेटी सरकारी नौकरी में
चार साल पहले सामने आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, सैयद सलाउद्दीन के 4 बेटे और 2 बेटियाँ हैं। इनमें से 4 बेटे और एक बेटी सरकारी नौकरी में हैं। सलाहुद्दीन का बेटा वाहिद यूसुफ शेर-ए-कश्मीर हॉस्पिटल में डॉक्टर है। दूसरा भाई सैयद अहमद शकील मेडिकल असिस्टेंट है। जावेद यूसुफ एजुकेशन ऑफिस में कम्प्यूटर ऑपरेटर है। वहीं, शाहिद यूसुफ एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में है। इसके अलावा आतंकी सरगना की एक बेटी सरकारी टीचर है।
गौरतलब है कि सलाउद्दीन के बेटे सैयद अहमद शकील और शाहिद यूसुफ को आतंकी गतिविधियों के फंड मुहैया कराने का दोषी पाया गया है। इसके अलावा, जम्मू और कश्मीर पुलिस के दो कॉन्स्टेबल भी आतंकी गतिविधियों में संलिप्त पाए गए। इनमें से एक कॉन्स्टेबल अब्दुल राशिद ने तो सुरक्षा बलों पर हमले की प्लानिंग को अंजाम दिया था। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पावर डिपार्टमेंट का इंस्पेक्टर शाहीन अहमद लोन भी हिज़्बुल मुजाहिदीन के लिए हथियारों की तस्करी में संलिप्त था। इसके चलते उसे भी सेवा से बर्खास्त किया गया है।