Sunday, November 17, 2024
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लालाजी के घर जन्माष्टमी, उनकी बेटी को धोखे से गोश्त खिला उर्दू लेखिका को मिलता था इत्मीनान: आत्मकथा में लिखकर गईं हैं इस्मत चुगताई

"फल, दालमोट, बिस्कुट में इतनी छूत नहीं होती, लेकिन चूँकि हमें मालूम था कि सूशी गोश्त नहीं खाती इसलिए उसे धोखे से किसी तरह का गोश्त खिलाके बड़ा इत्मीनान होता था। हालाँकि उसे पता नहीं चलता था, मगर हमारा न जाने कौन-सा जज़्बा तसल्ली पा जाता था।"

हर साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सोशल मीडिया में एक कहानी वायरल होने लगती है। यह कहानी उर्दू की लेखिका इस्मत चुगताई से जुड़ी है। इसे बीबीसी ने 2018 में जन्माष्टमी के मौके पर प्रकाशित किया था। यह कहानी चुगताई की आत्मकथा ‘क़ाग़ज़ी है पैरहन’ से लिया गया है। यह कहानी उर्दू लेखिका के जन्माष्टमी से जुड़े अनुभवों के बारे में बताती है।

इसमें चुगताई ने पड़ोस के लाला जी के घर में जन्माष्टमी के आयोजन के बारे में बताया है। लाला जी की बेटी सुशी के बारे में बताया है, जिससे बचपने में उनकी दोस्ती थी। यह कबूल किया है कि सुशी गोश्त नहीं खाती थी। लेकिन धोखे से उसे गोश्त खिलाकर लेखिका को बचपन में बड़ा इत्मीनान होता था।

बीबीसी ने उर्दू लेखिका का यह संस्मरण ‘जब इस्मत चुग़ताई पर लगा कान्हा को चुराने का इल्ज़ाम’ शीर्षक से प्रकाशित किया है। इसके अनुसार चुगताई ने आत्मकथा में लिखा है कि जन्माष्टमी के दिन सुशी के घर उन्हें चंदन और चावल का तिलक लगा दिया गया तो वे उसे मिटा देना चाहती थी। इसमें कहा गया है, “फल, दालमोट, बिस्कुट में इतनी छूत नहीं होती, लेकिन चूँकि हमें मालूम था कि सूशी गोश्त नहीं खाती इसलिए उसे धोखे से किसी तरह का गोश्त खिलाके बड़ा इत्मीनान होता था। हालाँकि उसे पता नहीं चलता था, मगर हमारा न जाने कौन-सा जज़्बा तसल्ली पा जाता था।”

चुगताई ने बताया है कि बकरीद के दौरान उनका सुशी से नाता टूट जाता था। बकरे उनके घर के अहाते के पीछे टट्टी खड़ी कर काटे जाते थे और कई दिन तक गोश्त बाँटा जाता था। बीबीसी के मुताबिक चुगताई ने लिखा है कि जन्माष्टमी का जश्न दोस्त सूशी के घर काफी धूमधाम से मनाया जाता था। पकवानों की खुशबू को सूँघकर वह उसके घर जाती हैं। सुशी से पूछती हैं कि क्या है, तो वह जवाब में कहती है- भगवान आए हैं।

इस्मत के मुताबिक, इसी दौरान वहाँ पर सभी को टीका लगी रहीं एक औरत उनके माथे पर भी टीका लगा गई। उन्होंने सुना था कि जहाँ टीका लगता है तो उतना गोश्त जहन्नुम को जाता है। यही सोचकर उसे उन्होंने मिटाना चाहा, लेकिन अचानक वह रुक गई। इस बीच माथे पर टीका लगा होने की वजह से वो बेधड़क पूजाघर में गईं, जहाँ भगवान बिराज रहे थे।

वो लिखती हैं कि पूजाघर में चाँदी के पालने में झूला झूल रहे भगवान श्रीकृष्ण को उठाकर उन्हें अपने सीने से लगा लिया, लेकिन इसी बीच सुशी की नानी ने उन्हें ऐसा करते हुए पकड़ लिया और वहाँ से हटाकर बाहर कर दिया।

वो लिखती हैं कि इस घटना के कई साल गुजरने के बाद जब वो अलीगढ़ से आगरा वापस गई तो वह सुशी की हल्दी की रस्म में गई। इस दौरान वो उसी कमरे में गईं, जहाँ जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण का मंदिर बना था। तब इस वाकए को यादकर उन्होंने लिखा, “सुशी ने अलमारी खोली और मिठाई की थाली निकाली। मैं लड्डू हाथ में लेने लगी कि बाहर जाकर कूड़े पर फेंक दूँगी। जो हमसे छूत करे, हम उसका छुआ क्यों खाएँ, लेकिन सुशी ने कहा मुँह खोल और मैंने मजबूरन लड्डू कतर लिया। बाक़ी का बचा हुआ लड्डू सुशी ने मुँह में डाल लिया।”

वो लिखती है कि देर तक हम बचपन की बातों को याद कर हँसते रहे। चलते वक्त सुशी ने एक छोटी सी पीतल की घुटनों चलती भगवान कृष्ण की मूर्ति उनकी हथेली पर रख दी। उन्हें ये मूर्ति देते वक्त दोस्त ने कहा, “ले चुड़ैल! अब तो तेरे कलेजे में ठंडक पड़ी।” इस पर उन्होंने आगे लिखा, “मैं मुस्लिम हूँ और बुतपरस्ती इस्लाम में गुनाह है।” गौरतलब है कि इस्मत चुगतई मशहूर उर्दू लेखिका थीं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूँ जिले में वर्ष 1915 में हुआ था और उनकी मौत साल 1991 में हुई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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