पूरी दुनिया मानती है कि भारत के चारों वेद प्राचीन विज्ञान पर आधारित हैं और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिखे गए हैं। ‘सर्वविद्या की राजधानी’ कहा जाने वाला बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) अब इसे सार्थक करने जा रहा है क्योंकि यहाँ इंजीनियरिंग के छात्रों को भी वैदिक विज्ञान से रूबरू कराया जाएगा। नए सत्र में इसके लिए कोर्स की तैयारी भी कर ली गई है। इसके लिए अस्सिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति भी की जानी है।
NBT की खबर के अनुसार, वैदिक विज्ञान केंद्र के समन्वयक प्रफेसर उपेंद्र त्रिपाठी ने जानकारी दी है कि आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों के लिए इंजीनियरिंग से रिसर्च के साथ ही 12वीं तक संस्कृत की शिक्षा को अनिवार्य किया गया है। मौसम विज्ञान केंद्र में मौसम से जुड़ी गणनाएँ भी वेदों के आधार पर की जाएगी। भारत के ऋषि-मुनि प्राचीन काल में सनातन धर्म में ज्योतिष, अंक शास्त्र के साथ वेदों के आधार पर गणना करने में सफल रहते थे।
उनकी गणनाएँ और आकलन एकदम सटीक होते थे। BHU के नवनिर्मित भवन में उसी वैदिक पद्धतियों और तकनीकों के आधार पर मौसम की गणना की जाएगी। यहाँ वैदिक विज्ञान केंद्र की सौगात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही दी थी। इस भवन का शिलान्यास और लोकार्पण, दोनों ही उनके ही हाथों से हुआ था। भवन को शोध कार्य के लिए और हाइटेक बनाया जा रहा है। यहाँ एक आधुनिक लैब भी बनने वाला है।
वैदिक इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग स्टडीज नामक कोर्स की बात करें तो ये दुनिया में पहली बार होगा जब टेक्नोक्रेट वेदों में बताए गए प्रौद्योगिकी पर अध्यापन और शोध कार्य करेंगे। इसके अंतर्गत वैदिक प्रौद्योगिकी के प्रयोगशाला में काम आने वाले यंत्रों व उपकरणों का संचालन व निर्माण भी किया जाएगा। जल शोधन तकनीक, धातु विज्ञान, सूर्य विज्ञान, विमान विद्या और नौका शास्त्र सहित कई पद्धतियों पर शोध कार्य होगा।
दैनिक जागरण की खबर के अनुसार, इस केंद्र के अभ्यर्थियों के लिए संस्कृत का ज्ञान अनिवार्य रखा गया है, क्योंकि वेद इसी भाषा में हैं। बीटेक और एमटेक के लिए जो योग्यता माँगी गई है, वो तकनीकी कोर्स की ही है। इसके लिए आवेदन की अंतिम तारीख शुक्रवार (जनवरी 8, 2021) तक थी। यूपी सरकार ने इंजीनियरिंग के अलावा कई अन्य अध्यापन के पदों पर भर्तियों के लिए आवेदन माँगे हैं।
भारत में तो हमेशा से प्रकृति की पूजा होती आई है। यहाँ वैदिक काल से ही ये चला आ रहा है। दुनिया की सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद में अग्नि की स्तुति के साथ ही शुरुआत की जाती है। विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि गणित एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा एक नास्तिक भी ईश्वर की पूजा कर सकता है। इसी मामले में भारत हमेशा से सभ्यताओं से आगे रहा है। ऋषि-मुनियों ने प्राचीन काल में गणित और प्रकृति के संबंधों को समझा है और ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम बनाया है।