बड़े शहरों में रहने वाले लड़के लड़कियाँ अपने जीवन साथी का चुनाव अपने तरीके से करते हैं जिनमें डेटिंग करना आम बात है। डेटिंग में लड़का लड़की मिलते हैं, बातें करते हैं, खाते पीते हैं और एक दूसरे को जानने की कोशिश करते हैं। डेटिंग के बाद घर जाकर अपने परिवारवालों या दोस्तों को अपनी ‘डेट’ के किस्से सुनाते हैं।
लेकिन सवाल ये है कि कोई अपने जीवन साथी की तलाश में कितनी डेट पर जा सकता है। जवानी से बुढ़ापे तक के सफर में कोई कितनी दोस्ती या डेटिंग कर सकता है? दिल तो बेचारा एक ही होता है, एक व्यक्ति उसे कितनी बार टूटने दे सकता है? एक आकलन के मुताबिक यदि विश्व का प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से हाथ भी मिलाए तो उम्र कम पड़ जाएगी। ऐसे में हम सबसे ‘सूटेबल पार्टनर’ की खोज में कितना इंतज़ार कर सकते हैं?
इसका जवाब देते हुए पीटर बैकस ने 2010 में एक फॉर्मूला सुझाया था। वॉरविक इकोनॉमिक समिट में बैकस ने एक शोधपत्र पढ़ा था: “Why I don’t have a girlfriend” जिसमें बैकस ने 1961 में डॉ फ्रैंक ड्रेक द्वारा दिए गए एक फॉर्मूले का इस्तेमाल यह जानने के लिए किया था कि उनके आसपास रहने वाली कितनी लड़कियाँ गर्लफ्रेंड बन सकती हैं।
डॉ फ्रैंक ड्रेक एक एस्ट्रोनॉमर थे। उन्होंने एक फॉर्मूला दिया था जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारी गैलेक्सी में हमारे अलावा कितनी सभ्यताएँ फल-फूल रही हैं। ड्रेक के फॉर्मूले के हिसाब से हमारी आकाश गंगा में हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकने में सक्षम 10,000 के लगभग सभ्यताएँ हो सकती हैं।
अब यदि ड्रेक के फॉर्मूले पर अमल किया जाए तो यह कैलकुलेट किया जा सकता है कि किसी लड़के को गर्लफ्रेंड बनाने के लिए कम से कम कितनी लड़कियाँ मिल सकती हैं। हैना फ्राय ने अपनी पुस्तक “Mathematics of Love” में इस फॉर्मूले का सरलीकरण कर इस प्रकार समझाया है:
सबसे पहले तो यह सोचिए कि आपके शहर में कितने लड़के या लड़कियाँ हैं। चलिए मान लेते हैं कि आप पुरुष हैं और लंदन जैसे बड़े शहर में रहते हैं जहाँ तक़रीबन 40 लाख महिलाएँ हैं। अब इन 40 लाख महिलाओं में से कितनी होंगी जो आपकी उम्र के आसपास की होंगी? मान लेते हैं कि 40 लाख महिलाओं में से करीब 20% प्रतिशत अर्थात 8 लाख युवतियाँ होंगी। अब इन 8 लाख में से कितनी कुँवारी होंगी? मान लेते हैं कि 50% या 4 लाख युवतियाँ कुँवारी हैं।
अब यदि आप यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट हैं तो ज़ाहिर है कि अपना पार्टनर भी यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट ही चुनना चाहेंगे। अनुमान लगाइये कि इन 4 लाख कुँवारी युवतियों में से यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट कितनी होंगी? मान लेते हैं कि आधे से कुछ ज़्यादा यानि 26% युवतियाँ यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट हैं। चार लाख का 26% हुआ 1,04,000 मतलब अंदाज़न इतनी युवतियाँ यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट हैं।
अब केवल यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट होना ही तो काफ़ी नहीं। हर लड़का या लड़की अपना पार्टनर आकर्षक चुनने की ख़्वाहिश रखता है तभी तो ‘लाखों में एक’ वाला मुहावरा बना। तो चलिए मान लेते हैं कि 1,04,000 में से मात्र 5% युवतियाँ ही आकर्षक होंगी। अब यह आँकड़ा 5,200 युवतियों पर आ गया।
इन 5,200 युवतियों में से सबके साथ डेटिंग की जा सके यह भी संभव नहीं और सबको आप उतने ही आकर्षक लगें इसकी भी गारंटी नहीं। तो मान लेते हैं कि इनमें से 5% या 260 युवतियाँ आपके प्रति आकर्षित होंगी। लेकिन अभी भी डेटिंग के लिए 260 की संख्या बहुत ज़्यादा है। इन 260 में से 10% यानि कुल 26 लड़कियाँ ही ऐसी होंगी जिनके साथ दोस्ती कर और कुछ समय बिताने के बाद आप अपना जीवन साथी चुन सकते हैं।
गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड कैसा होगा उसमें कौन सी खूबियाँ होनी चाहिए वह क्राइटेरिया और उसका प्रतिशत आप अपने हिसाब से प्रयोग कर सकते हैं। यह तरीका केवल एक अनुमान बताता है न कि कोई सटीक संख्या। अनुमान लगाने या ‘एस्टिमेशन’ के इस गणित को ‘फर्मी एस्टिमेशन’ भी कहा जाता है और इसका प्रयोग फ़िज़िक्स से लेकर गूगल के इंटरव्यू तक में किया जाता है।
पीटर बैकस ने जब इस तरीके को गर्लफ्रेंड की संख्या का अनुमान लगाने के लिए प्रयोग किया तो कुछ लोगों ने उनकी हँसी भी उड़ाई लेकिन कहा जाता है कि प्रकृति की भाषा गणित है और हम सब भी प्रकृति की ही संतानें हैं। क्या पता सच्चा प्रेम मिलने या न मिलने में किसी छिपे हुए गणितीय सूत्र का हाथ हो!