कर्नाटक के प्रसिद्ध मैसूर शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है श्री चामुंडेश्वरी मंदिर। 1000 साल से भी अधिक पुराना यह मंदिर माँ दुर्गा के चामुंडा रूप को समर्पित है। माँ दुर्गा ने यह रूप देवताओं को महाशक्तिशाली राक्षस महिषासुर के अत्याचार से मुक्त कराने के लिए लिया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिस चामुंडी पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, उसी स्थान पर माता चामुंडा ने महिषासुर का वध किया था। इसके अलावा यह तीर्थ स्थान 18 महा शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
चामुंडी पहाड़ी पर स्थित इस क्षेत्र का इतिहास
देवी माहात्म्य में जिन माता चामुंडा का प्रमुख रूप से वर्णन किया गया है, वही इस सदियों पुराने मंदिर की मुख्य देवी हैं। देवी पुराण और स्कन्द पुराण में इस दिव्य क्षेत्र का वर्णन किया गया है। पुराणों के अनुसार जब महिषासुर ने ब्रह्माजी की तपस्या से वरदान हासिल कर लिया तो वह देवताओं पर ही अत्याचार करने लगा था।
ब्रह्माजी ने महिषासुर को वरदान दिया था कि उसका वध एक स्त्री के माध्यम से ही होगा। यह जानकार सभी देवता माँ दुर्गा के पास पहुँचे और इस समस्या का समाधान करने के लिए कहा। तब माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के लिए चामुंडा का रूप धारण किया। इसके बाद इसी स्थान पर माता चामुंडा और महिषासुर में भयानक युद्ध हुआ और अंततः माता चामुंडा ने उस राक्षस का वध कर दिया।
इसके अलावा इस क्षेत्र को 18 महा शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। जहाँ देवी सती के मृत शरीर के अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए। अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार इनकी संख्या 51 अथवा 52 है लेकिन इनमें से 18 शक्तिपीठों को महा शक्तिपीठ कहा जाता है। ये अत्यधिक महत्व के देवी स्थान माने गए हैं। इनमें से ही एक है चामुंडेश्वरी मंदिर, जहाँ माता सती के बाल गिरे थे। पौराणिक समय में इस क्षेत्र को क्रौंच पुरी के नाम से भी जाना जाता था, जिसके कारण इस स्थान को क्रौंच पीठम भी कहा जाता है।
चामुंडेश्वरी मंदिर का निर्माण
श्री चामुंडेश्वरी मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में होयसल वंश के शासकों द्वारा कराया गया। इसके बाद विजयनगर साम्राज्य के शासकों के द्वारा भी इस मंदिर का लगातार जीर्णोद्धार कराया गया। मंदिर का सात मंजिला गोपुरा भी 17वीं शताब्दी के दौरान विजयनगर शासकों के द्वारा निर्मित कराया गया है।
माता चामुंडेश्वरी, मैसूर के महाराजाओं की कुलदेवी मानी जाती हैं, यही कारण है कि मैसूर के महाराजाओं ने मंदिर के लिए कई तरह के योगदान दिए हैं। सन् 1827 के दौरान कृष्णाराजा वाडेयर तृतीय ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। माँ दुर्गा के अनन्य भक्त वाडेयर ने मंदिर के लिए सिंह वाहन, रथ और बहुमूल्य रत्न अर्पित किए।
मंदिर का निर्माण द्रविड़ वास्तुशैली में हुआ है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले ही महिषासुर की एक बड़ी सी प्रतिमा स्थापित है। जिसमें राक्षस के एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में एक विशाल सर्प है। इसके अलावा जब सीढ़ियों के माध्यम से मंदिर के लिए जाते हैं तो रास्ते में एक विशाल नंदी की प्रतिमा स्थापित की गई है। 15 फुट ऊँचे इस नंदी का निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है। नवरंग हॉल, अंतराल मंडप और प्रकार मंदिर के प्रमुख हिस्से हैं। मंदिर के गर्भगृह पर विमानम का निर्माण किया गया है, जिसके शिखर पर 7 स्वर्ण कलश स्थापित हैं।
मंदिर का प्रमुख त्यौहार नवरात्रि है। साल में दो बार बार मनाए जाने वाले इस त्यौहार के दौरान मंदिर में पहुँचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में पहुँच जाती है। इसके अलावा आषाढ़ महीने के शुक्रवार को भी यहाँ भक्तों की संख्या बढ़ जाती है।
मैसूर का दशहरा पूरे भारत में प्रसिद्ध है और यह इस मंदिर का मुख्य त्यौहार भी है। चामुंडेश्वरी मंदिर में मनाया जाने वाला दशहरा इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन माता चामुंडेश्वरी की झाँकी निकाली जाती है। माता चामुंडा इस दिन स्वर्णिम पालकी में बैठकर भ्रमण के लिए निकलती हैं।
कैसे पहुँचें?
मैसूर के चामुंडी पहाड़ी स्थित इस मंदिर का नजदीकी हवाईअड्डा बेंगलुरू में स्थित है, जो यहाँ से 139 किलोमीटर दूर स्थित है। बेंगलुरु न केवल भारत बल्कि विदेशों के कई शहरों से भी वायुमार्ग के माध्यम से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा मैसूर में भी रेलवे स्टेशन है, जो भारत के लगभग सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। मैसूर जंक्शन से मंदिर की दूरी लगभग 13 किलोमीटर है।
कर्नाटक के राज्य परिवहन की सेवा का उपयोग करते हुए न केवल कर्नाटक बल्कि अन्य राज्यों से भी मैसूर पहुँचा जा सकता है। चामुंडी पहाड़ी तक पहुँचने के लिए परिवहन के अनुकूल सड़क का निर्माण किया गया है। हालाँकि मंदिर तक पहुँचने के लिए लगभग 1,000 सीढ़ियों का निर्माण भी किया गया है और श्रद्धालु भक्ति-भाव के चलते अक्सर इन सीढ़ियों का उपयोग करके मंदिर तक पहुँच कर माता चामुंडा के दर्शन करते हैं।