Sunday, November 17, 2024
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भगवान विष्णु का मंदिर, कांचीपुरम के अथि वरदराजा: 40 साल में सिर्फ एक बार दर्शन, कारण – मुस्लिम आक्रान्ता

19 विमानम, 400 स्तंभों वाले मंडप के इस मंदिर में 16वीं शताब्दी तक हर दिन पूजा हुआ करती थी... फिर यह भी मुस्लिम आक्रान्ताओं की भेंट चढ़ गया। इसके बाद जो कुछ हुआ, उसी का कारण है कि भगवान श्री वरदराजा 40 वर्षों में सिर्फ एक बार दर्शन देते हैं।

भारत के तमिलनाडु में स्थित है, कांचीपुरम। हिन्दू धर्म में सात ऐसे तीर्थ हैं, जो सबसे पवित्र माने जाते हैं। उनमें से एक है कांचीपुरम। कांचीपुरम का अर्थ है, ‘ब्रह्मा का निवास स्थान’। वेगवती नदी के किनारे स्थित, मंदिरों की भूमि कहे जाने वाले इस दिव्य स्थान में स्थित हैं कई ऐसे हिन्दू मंदिर, जिनका इतिहास युगों पुराना है और जो आज भी उसी रूप में पूज्य हैं, जिस रूप में हजारों साल पहले हुआ करते थे।

इन्हीं महान मंदिरों में से एक है, श्री वरदराजा पेरुमल मंदिर। इसे श्री देवराज स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता रहा है। मंदिर समर्पित है भगवान विष्णु को, जो अथि वरदराजा या वरदराजा स्वामी के रूप में पूजे जाते हैं। संभवतः पूरे विश्व में यह एकमात्र ऐसा स्थान है, जहाँ मंदिर के इष्टदेव 40 सालों में एक बार पूजे जाते हैं क्योंकि 40 साल में एक बार ही भगवान वरदराजा स्वामी की मूर्ति मंदिर परिसर में स्थित पवित्र अनंत सरोवर से बाहर आती है।

अंजीर के पेड़ की लकड़ी से बनी है भगवान श्री वरदराजा की मूर्ति

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सरस्वती नाराज होकर देवलोक से इस स्थान पर आ गई थीं। इसके बाद जब सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी उन्हें मनाने के लिए आए तो ब्रह्माजी को देखकर माता सरस्वती वेगवती नदी के रूप में बहने लगीं। ब्रह्माजी ने इस स्थान पर अश्वमेध यज्ञ करने का निर्णय लिया। उनके यज्ञ का विध्वंस करने के लिए माता सरस्वती, नदी के तीव्र वेग के साथ आईं। तब माता सरस्वती के क्रोध को शांत करने के लिए यज्ञ की वेदी से भगवान विष्णु, श्री वरदराजा स्वामी के रूप में प्रकट हुए।

अब चूँकि इस क्षेत्र में अंजीर के पेड़ों का एक विशाल जंगल था इसलिए इन्हीं अंजीर के पेड़ों की लकड़ी से देवों के शिल्पकार विश्वकर्मा जी ने श्री वरदराजा की प्रतिमा का निर्माण किया। अंजीर को ‘अथि’ के नाम से जाना जाता है, इसी कारण भगवान श्री वरदराजा को ‘अथि वरदराजा’ के रूप में जाना जाने लगा। विश्वकर्मा जी ने अथि वरदराजा की 12 फुट की मूर्ति का निर्माण किया था। 11वीं शताब्दी के दौरान मंदिर का निर्माण महान चोल शासकों ने कराया था और इसके बाद लगातार हिन्दू राजाओं द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा।

मुस्लिम आक्रान्ताओं का हमला झेल चुका है मंदिर

23 एकड़ में बने इस मंदिर में 19 विमानम के अलावा 400 स्तंभों वाले मंडप हैं, जो श्री वरदराजा को समर्पित हैं। 16वीं शताब्दी तक मंदिर के गर्भगृह में श्री वरदराजा की मूर्ति विराजित थी और पूरे रीति-रिवाज के साथ उनकी पूजा हुआ करती थी। लेकिन पूरे भारत की तरह अंततः यह मंदिर भी मुस्लिम आक्रान्ताओं की भेंट चढ़ गया। मंदिर में जब मुस्लिम आक्रान्ताओं का आक्रमण हुआ, तब भगवान की मूर्ति को सुरक्षित रखने के लिए उसे मंदिर परिसर में स्थित अनंत सरोवर के अंदर डाल दिया गया।

फोटो साभार : कांचीपुरम ppraprashprashaprashasprashasaprashasanप्रशासन

40 सालों तक मंदिर बिना मूर्ति के रहा। जब अंततः मूर्ति नहीं मिली तब मंदिर में श्री वरदराजा की पत्थर की एक मूर्ति बनवाई गई और उसकी स्थापना मंदिर के गर्भगृह में की गई। सन् 1709 में किसी अज्ञात कारण से अनंत सरोवर का जल कम हुआ, जिससे भगवान अथि वरदराजा की वही पुरानी मूर्ति बाहर आ गई।

स्वयं ही सरोवर के भीतर चली गई थी मूर्ति

मंदिर के मुख्य पुजारी धर्मकर्ता के दो पुत्रों ने लकड़ी की उस मूर्ति को सरोवर से बाहर निकाला और मंदिर के गर्भगृह में उसकी स्थापना की लेकिन गर्भगृह में 48 दिन तक रहने के बाद मूर्ति पुनः सरोवर में चली गई। उसी दिन से यही तय किया गया कि मूर्ति को 40 सालों में एक बार निकाला जाएगा। ऐसी मान्यता है कि चूँकि मुख्य मूर्ति की अनुपस्थिति में पत्थर की एक नई मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा पूरे विधि-विधान से की गई थी, इस कारण सनातन की मर्यादा का मान रखने के लिए भगवान श्री वरदराजा की पुरानी मूर्ति ने सरोवर के भीतर ही रहना स्वीकार किया, जिसकी पूजा गुरु बृहस्पति सरोवर के अंदर ही करते हैं।

21वीं शताब्दी में 2019 में मूर्ति सरोवर से बाहर आई थी। तब 48 दिनों का वरदार उत्सव मनाया गया था। 1 जुलाई से शुरू हुआ यह उत्सव 9 अगस्त तक चला था। इसके पहले 1979 में श्री वरदराजा की मूर्ति अनंत सरोवर से बाहर आई थी। अब आगामी 2059 में पुनः भगवान की मूर्ति सरोवर से बाहर आएगी, तब वरदार उत्सव का आयोजन किया जाएगा। एक सामान्य आयु वाला व्यक्ति अपने जीवन में एक या दो बार ही श्री वरदराजा के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर सकता है।

कैसे पहुँचे?

कांचीपुरम पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, जो वरदराजा मंदिर से मात्र 58 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा कांचीपुरम ट्रेन की सहायता से आसानी से पहुँचा जा सकता है। कांचीपुरम रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 4-5 किमी है। चेन्नई से ट्रेन के माध्यम से भी कांचीपुरम पहुँचा जा सकता है। चूँकि चेन्नई में कई रेलवे स्टेशन हैं, ऐसे में चेन्नई से कांचीपुरम पहुँचने के लिए कई अलग-अलग ट्रेनें विभिन्न समय पर कांचीपुरम पहुँचती हैं।

सड़क मार्ग से भी कांचीपुरम पहुँचना आसान है क्योंकि यहाँ सड़कों का एक बेहतर नेटवर्क है। चेन्नई से कांचीपुरम की सड़क मार्ग से दूरी लगभग 75 किमी है। इसके अलावा कांचीपुरम तमिलनाडु के कई शहरों और बेंगलुरू जैसे महानगरों से भी सड़क के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

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ओम द्विवेदी
ओम द्विवेदी
Writer. Part time poet and photographer.

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