पुलवामा आतंकी हमले में जान गँवा बैठे नौजवानों में एक नाम देवरिया के सीआरपीएफ जवान विजय कुमार मौर्य का भी है। विजय के इस हमले में शिकार होने के बाद उनके कई रिश्ते ताउम्र सिसकियाँ भरने के लिए पीछे छूट गए।
इस हमले में सिर्फ़ देश की सेना का एक जवान ही नहीं बलिदान हुआ बल्कि बुजुर्ग पिता ने विजय के रूप में अपने घर के सबसे होनहार बेटे को गवा दिया। उस पत्नी का सुहाग भी उजड़ गया जिसके पास विजय की तीन साल की मासूम बच्ची है, जो अभी अपने पिता को ढंग से जान भी नहीं पाई थी। इसके अलावा दो भतीजियों की आस भी टूट गई, जिनकी जिम्मेदारी उनके पिता की मौत के बाद विजय ने ही उठाई हुई थी।
विजय भटनी ब्लॉक के गाँव छपिया जयदेव के रहने वाले थे। उनके घर की माली हालत बिल्कुल भी ठीक नहीं थी। घर की स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने बैंक से दस लाख रुपयों का ऋण भी लिया था। लोन के पैसों से विजय ने गोरखपुर में जमीन खरीदी और फिर बाक़ी के बचे पैसों से अपने गाँव के घर को दुरूस्त कराया था।
परिवार में एक तरफ जहाँ विजय की मौत का गम पसरा हुआ है वहीं उन्हें इस बात की भी चिंता है कि वो दस लाख रुपए का ऋण परिवार कैसे चुकाएगा।
विजय के पिता रमायन गाँव में आज भी बटाई ली हुई ज़मीन पर खेती करते हैं। अपने तीन भाइयों व एक बहन के बीच में विजय सबसे छोटे थे। विजय के सबसे बड़े भाई अशोक गुजरात में एक निजी कंपनी में नौकरी करते हैं। वहीं दूसरे नंबर का भाई हरिओम 2008 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे, लेकिन चार साल पहले उनका भी देहांत हो गया था।
भाई की मृत्यु के बाद हरिओम की पत्नी और दो बेटियों की जिम्मेदारी विजय पर ही आ गई थी। साल 2014 में शादी के बंधन में बँधे विजय की एक 3 साल की बिटिया आराध्या है।
घर के सिर्फ़ एक सदस्य के इस अकारण हुई मौत से सबकी उम्मीदों ने दम तोड़ दिया है। सवाल बहुत है लेकिन जवाब बस इतना कि अब बिगड़ी चीज़ों को सुधारने के लिए विजय दोबारा लौट कर नहीं आएगा।