कर्नाटक में नाम में मात्रा बदल जाने के कारण पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) से आए 727 हिंदू शरणार्थिर्यों की जमीन छिन जाने का मामला सामने आया है। जमीनी अभिलेखों में हुई गलती के कारण ये लोग दर-दर भटकने को मजबूर हैं। दरअसल, इन हिंदू शरणार्थिर्यों के बंगाली सरनेम में ‘सरकार’ लिखा हुआ था, जो गलती से ‘सरकारी’ लिख दिया गया। इसके बाद इन लोगों की जमीन को सरकारी घोषित कर दिया गया।
मालूम हो कि 1971 में हजारों की तादाद में हिंदू शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत आए थे। इन्हें कर्नाटक सहित सात राज्यों में शरणार्थी शिविरों में रखा गया था। हर परिवार को नई शुरुआत करने के लिए पाँच एकड़ जमीन दी गई थी, लेकिन एक मात्रा बदल जाने का खामियाजा इतना बड़ा होगा, ये इन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। इसके चलते बीते पाँच सालों से वे संघर्ष कर रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 65 वर्षीय किसान विभूति सरकार भी उन लोगों में से हैं, जिनको कई दशकों तक अपनी जमीन के लिए जूझना पड़ा है, जिसे एकाएक ‘सरकारी’ संपत्ति घोषित कर दिया गया। भले ही विभूति के सरनेम सरकार में बस एक मात्रा की गलती हुई है, लेकिन ‘सरकारी’ लिखने का मतलब उनसे अधिक कोई नहीं जान सकता। इसकी वजह से उन्हें रायचूर जिले के सिंधनूर तालुक में पाँच एकड़ में बोई गई ज्वार की फसल के लिए पिछले साल बीमा से वंचित कर दिया गया। उनकी शिकायत के आधार पर जब राजस्व विभाग में इसकी जाँच की गई तो नई जानकारी निकलकर सामने आई। जाँच में पाया गया कि तीन पुनर्वास शिविरों में बसे अन्य 726 हिन्दू शरणार्थियों की जमीन को भी सरकारी जमीन के रूप में चिन्हित किया गया है। कर्नाटक सरकार के भूमि रिकॉर्ड पोर्टल पर उपलब्ध आँकड़ों में इसकी पुष्टि हुई है।
Lost in translation: Why sarkar is taking away Sarkars’ lands
— The Times Of India (@timesofindia) March 31, 2023
The change in ownership from Sarkar to “sarkari” meant Vibhuti was denied insurance last year for the jowar crop he had sown on five acres in Sindhanur taluk of Raichur district.https://t.co/e7Prnq95uN
सिंधनूर तालुक के चार पुनर्वास शिविरों – आरएच2, आरएच3, आरएच4 और आरएच5 में बसे 22,000 हिंदू शरणार्थियों के प्रतिनिधि प्रसेन राप्टाना विभूति के लिए आगे आए। उन्होंने दिसंबर 2022 में तकनीकी समस्या के बारे में रायचूर डीसी को पत्र लिखा। एक महीने पहले, लिंगसुगुर के सहायक आयुक्त ने डीसी से बातचीत के बाद इस मुद्दे पर सहमति जताई। सभी प्रभावित किसान आरएच 2, 3 और 4 के निवासी हैं।
विभूति के अलावा एक अन्य हिन्दू शरणार्थी पंकज सरकार ने कहा, “हमें बिना किसी गलती के इस अजीब समस्या से जूझना पड़ रहा है। हम सरनेम ‘सरकार’ में ‘ी’ जुड़ जाने के कारण जमीन का मालिकाना हक पाने में फँस गए।” उन्होंने टीओआई को बताया, “हमने तहसीलदार से बात की। उन्होंने कहा कि यह एक सॉफ्टवेयर समस्या थी, जिसे बेंगलुरु में ठीक किया जाना था। हमें सरकारी विभाग की गलती का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। हमें इसे ठीक करने के लिए बेंगलुरु की यात्रा क्यों करनी पड़ रही है?”