इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार (19 दिसंबर, 2023) को ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने की हिंदुओं की याचिका को चुनौती देने वाली मुस्लिम पक्ष की सभी याचिकाएँ खारिज कर दी हैं। दरअसल, इन याचिकाओं में मस्जिद की जगह पर मंदिर बनाने की माँग को चुनौती दी गई थी। वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर के बीच स्वामित्व को लेकर ‘सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड’ और ‘अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी’ ने ये याचिकाएँ दायर की थीं। याचिकाएँ खारिज करने का ये फैसला जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच ने सुनाया।
खारिज की गई 5 में से 2 याचिकाएँ 1991 में हिन्दू श्रद्धालुओं द्वारा दायर किए गए सिविल सूट पर सुनवाई जारी रखने के खिलाफ थीं। ये फ़िलहाल वाराणसी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में पेंडिंग हैं। वहीं बाकी की 3 याचिकाएँ ASI के सर्वे वाले आदेश के खिलाफ थीं। इन्हें भी खारिज कर दिया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में 3 याचिकाएँ ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की तरफ से और दो उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से दायर की गई थीं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रोहित रंजन अग्रवाल ने निचली अदालत से कहा है कि वो 6 महीने के भीतर इस मामले पर सुनवाई पूरी करें। हिन्दू पक्ष की याचिकाओं को चुनौती दिए जाने के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट पहले ही सुनवाई पूरी हो चुकी थी। इस केस में कोर्ट ने 8 दिसंबर, 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि अगर ASI के सर्वे में कुछ बचा रह गया है तो सर्वे फिर से कराया जा सकता है।
ये केस वाराणसी में प्रतिष्ठित काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में मौजूद ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा है। इसमें देवता आदि ‘विश्वेश्वर विराजमान’ की तरफ से वाराणसी अदालत में 1991 में दायर केस में विवादित परिसर को हिंदुओं को सौंपने और वहाँ उन्हें पूजा करने अनुमति माँगी गई थी।
इस मुकदमे को चुनौती देते हुए, ‘अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी’ और ‘यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड’ ने तर्क दिया था कि इस जगह का रखरखाव पूजा स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के तहत आता है और इसकी सुनवाई अदालत नहीं कर सकती है।
दरअसल ये अधिनियम देश में पूजा स्थलों को सुरक्षा देता है। ये कहता है कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद जो धार्मिक स्थल जिस हालात में था जिस समुदाय का था वो भविष्य में उसी का और वैसा ही रहेगा। इसे लेकर हिंदू पक्ष का तर्क है कि यह विवाद आजादी से पहले का है इस वजह से यहाँ ये अधिनियम लागू नहीं होगा।